नई दिल्ली। केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, बीमा कंपनियों और केंद्र सरकार के विभागों से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को शामिल नहीं करने को कहा है। यह निर्देश तब आया है जब यह देखा गया कि कुछ संगठन जांच अधिकारी के तौर पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को जांच अधिकारियों के तौर पर नियुक्त कर रहे हैं जो इस संबंध में उसके मौजूदा करीब दो दशक पुराने निर्देश के विपरीत है।


आयोग ने कहा कि साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि सतर्कता पदाधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाए और अगर वे उन्हें दिए गए दायित्वों के निर्वहन में गोपनीयता, निष्पक्षता या सित्यनिष्ठा से समझौता करते हुए पाए जाते हैं तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।


आयोग ने अपने नये आदेश में कहा कि यह सेवानिवृत्त अधिकारियों के मामले में संभव नहीं है क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी कदाचार के लिए अनुशासनात्मक नियम उन पर लागू नहीं होते। आयोग ने अगस्त 2000 में निर्देश दिया था कि किसी भी संगठन में सतर्कता पदाधिकारी पूर्णकालिक कर्मचारी होने चाहिए और सतर्कता संबंधी कार्यों के लिए परामर्शक के तौर पर किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी को नियुक्त न किया जाए।


आयोग ने 13 जनवरी के अपने आदेश में कहा, हालांकि, यह देखा गया है कि कुछ संगठन अब भी जांच करने के लिए जांच अधिकारी के तौर पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को नियुक्त कर रहे हैं। यह आदेश केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उपक्रमों, बैंकों और बीमा कंपनियों के मुख्य कार्यकारियों को जारी किया गया है।


सीवीसी ने कहा कि जांच अधिकारी और अन्य सतर्कता पदाधिकारी अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे बयान दर्ज करने, किसी मामले के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करने, जांच रिपोर्ट तैयार करने और गोपनीय दस्तावेज समेत अन्य दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। भ्रष्टाचार रोधी कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा कि सभी संबंधित प्राधिकारियों को सीवीसी के निर्देश का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।