17 मार्च 2023 को जूलॉजी विभाग, कलिंगा विश्वविद्यालय द्वारा “जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और लचीलापन को बढ़ावा देने के लिए सुझाव और सिफारिशें” पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसे नाबार्ड छत्तीसगढ़ द्वारा प्रायोजित और माइक्रोबायोलॉजिस्ट सोसाइटी, भारत द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था। सम्मेलन का उद्घाटन नाबार्ड छत्तीसगढ़ के मुख्य महाप्रबंधक डॉ. ज्ञानेंद्र मणि (कार्यक्रम के मुख्य अतिथि) ने दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के बाद किया।

डॉ. मणि ने पर्यावरण और कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में सस्टेनेबल डेवलपमेंट के साथ पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के साथ कृषि क्षेत्र में आ रही चुनौती को दूर करने के संदर्भ में नाबार्ड की भूमिका को साझा किया। श्री संजय गजघाटे, संयुक्त निदेशक, उद्योग निदेशालय, छत्तीसगढ़ सरकार ने पर्यावरण और जलवायु को ध्यान में रखते हुए उद्योग नीति बनाने पर बल दिया। श्री कपिल देव दीपक, संयुक्त निदेशक कृषि एवं संयुक्त सीईओ, राज्य वाटरशेड प्रबंधन छत्तीसगढ़ ने कृषि और जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर चर्चा की। उन्होंने जैविक खेती के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करने और स्वस्थ पर्यावरण के लिए संतुलन बनाए रखने का आग्रह किया।

कलिंगा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आर. श्रीधर ने सभी से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए जिम्मेदार कदम उठाने का अनुरोध किया। कलिंगा विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. संदीप गांधी ने कहा कि सरकारी एजेंसियों, निजी भागीदारों और नागरिकों के संचयी प्रयास से ही कार्बन फुट प्रिंट को कम किया जा सकता है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. एस.के. त्यागी, पूर्व अतिरिक्त निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), भारत सरकार ने बताया कि कैसे हमारा व्यवहार और जीवन शैली जलवायु में बदलाव को कम कर सकती है।

उन्होंने ई-कचरे, सिंगल यूज प्लास्टिक को रिसाइकिल करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला और जलवायु परिवर्तन के संबंध में वर्तमान नीतियों पर अपने विचार भी साझा किए। केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड रायपुर के डॉ. रजनीकांत शर्मा द्वारा भूजल स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का वर्णन करते हुए एक शोध से परिपूर्ण अपना व्याख्यान दिया। सिपेट रायपुर की सुश्री अंबिका जोशी ने प्लास्टिक के उपयोग और इसके कम करने और पुनर्चक्रण के विभिन्न तरीकों के बारे में बताया।

इसके बाद जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए के लिए क्या कदम उठाये जा सकते हैं इन्हीं रणनीतियों पर एक पैनल चर्चा हुई। सत्र का संचालन डायरेक्टरेट ऑफ इंडस्ट्रीज रायपुर के डॉ ईश्वर कुमार ने किया। दोपहर के भोजन से पहले जलवायु परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।

दोपहर के सत्र में राज्य वाटरशेड प्रबंधन छत्तीसगढ़ के जीआईएस विशेषज्ञ श्री सूरजदेव कुमार कुशवा ने जल स्तर में होने वाले गतिशील परिवर्तनों को समझने में जीआईएस तकनीक के अनुप्रयोग के बारे में चर्चा की। विभिन्न स्ट्रीम और राज्य के शोध विद्वानों, अध्यापकों और प्रोफेसरो ने अपने शोध कार्यों का प्रस्तुतिकरण किया । इसके बाद एक पोस्टर प्रस्तुति सत्र आयोजित किया गया। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के डॉ. अनिल प्रकाश ने उष्णकटिबंधीय रोगों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में चर्चा की।

इस सम्मेलन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से कुल 134 प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया था। अंत में धन्यवाद ज्ञापन जूलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज सिंह ने किया। डॉ. सुषमा दुबे, कार्यवाहक डीन ऑफ लाइफ साइंसेज भी कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थीं और उन्होंने छात्रों को प्रेरित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अजय हरित (संयोजक) एवं डॉ. सोहिनी भट्टाचार्य (संगठन सचिव) जूलॉजी विभाग द्वारा किया गया। जीव विज्ञान संकाय के अन्य शिक्षण और गैर-शिक्षण सदस्यों ने आयोजन के सुचारू संचालन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।