जयपुर। कोरोना महामारी के बाद रूस युक्रेन युद्ध ने दुिनयाभर के देशों में आर्थिक मंदी की स्थित पैदा कर दी है । संकट के दौर से गुजर रहे दुनियाभर के देशों में हाहाकार मचा हुआ है। वहीं भारत विकट परिस्थित के बावजूद विकास के पथ पर तेजी से दौड़ रहा है। वस्तु कीमतों में वैश्विक गिरावट और वैश्विक मांग में कमी के बीच भारत एक मजबूत और संपन्न अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है।

मंदी के बावजूद भारत की सेवाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पश्चिमी देशों और अमेरिका में ज्यादा वेतन लागत और अधिक ‘बैक-ऑफिस’ व्यवसाय के कारण पिछले एक साल से अप्रैल तक भारत का सेवा निर्यात 26 प्रतिशत बढ़कर 30.36 बिलियन डॉलर हो गया, जिसके चलते भारत व्यवसाय के लिए एक उचित स्थान के रूप में दिखाई दे रहा है।

यही नहीं, वैश्विक व्यापार में भी मंदी के बावजूद भारत से इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 26 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में वित्त वर्ष 2022-2023 के दौरान भारत के कुल निर्यात में 14.68% की वृद्धि के साथ 775.87 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात हासिल करने का अनुमान है।

आयात में लगभग 14% गिरावट के बावजूद भी उपकरण, लोहे और स्टील के आवक लदान में 15% की वृद्धि हुई है, जो की भारत के संपन्न उद्योग का एक संकेतक है। इसके अलावा, अन्य आयातित वस्तुओं में गिरावट का कारण उनकी कीमतों में गिरावट है ना कि भारत की खपत में गिरावट है।

2023 में अब हर महीने व्यापार घाटे के एकल अंक तक सीमित रहने और विश्व स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतर प्रतिस्पर्धात्मकता, देश की व्यापर प्रवृत्ति को दर्शाता है। 15.26 बिलियन डॉलर के माल व्यापार घाटे और 13.86 बिलियन डॉलर के सेवा अधिशेष के साथ, कुल घाटा मात्र 1.38 बिलियन डॉलर ही है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विश्व स्तर पर देखी गई मंदी में भारत आशा का एक द्वीप बना हुआ है।

देश पूंजीगत वस्तुओं की बढ़ती खपत के साथ अपने विकास पथ पर ओर आगे बढ़ रहा है, जो एक समृद्ध घरेलू उद्योग के साथ-साथ बढ़ती सेवाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात को दर्शाता है। भारत के व्यापार के बढ़ते प्रदर्शन, विशेष रूप से निर्यात में कई सकारात्मक बाहरी कारण भी हैं।

वहीं देश में संतुलित चालू खाता नीति निर्माताओं को रुपये पर प्रभाव के बारे में चिंता किए बिना नीतिगत दरों पर स्वतंत्र कार्रवाई करने का अवसर प्रदान कर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये के निवेश के माध्यम से भारतीय रुपये को मजबूत करने के लिए अनुकूल व्यापार परिदृश्य का उपयोग कर रहा है।

यह विकास के लिए बहुत जरूरी नकदी प्रदान कर रहा है। आरबीआई नीतिगत दर में बढ़ोतरी के साथ-साथ महंगाई को भी काबू में रख रहा है। इसके अलावा, परिणामस्वरूप स्थिर रुपये के साथ परिवर्तन के अनुकूल निर्यात आरबीआई को एक स्वतंत्र मौद्रिक नीति का पालन करने के लिए विस्तार देगा।