गरियाबंद: सावन का पवन महीना चल रहा है। आज सावन का तीसरा सोमवार है। सावन के पूरे महीने में लोग धूमधाम से भगवान शिव को पूजते है। देशभर में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनके प्रति भगवान शिव के श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। छत्तीसगढ़ में एक ऐसा शिवलिंग है, जिसकी मान्यता ज्योतिर्लिंग की तरह ही है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में मौजूद भूतेश्वर महादेव अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग है, जो राजधानी रायपुर से 90 किमी। दूर, गरियाबंद जिला मुख्यालय से लगभग 4 किमी। दूर और महासमुंद से 80 किम। दूर घने जंगलों में बसा है। गरियाबंद जिले में स्थित भूतेश्वर महादेव का मंदिर जहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलता है। कहा जाता है कि भूतेश्वर महादेव कल शिवलिंग की लंबाई हर साल बढ़ती है।

बता दें कि राज्य के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच गांव मरौदा भूतेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। इस शिवलिंग की ऊंचाई 18 फीट तथा गोलाई 21 फीट है। शिवलिंग की ऊंचाई और गोलाई धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। राजस्व विभाग के अनुसार, प्रतिवर्ष इसमें 6 से 8 इंच की बढ़ोतरी हो रही है। भूतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध यह शिवलिंग मरौदा में पहाड़ियों के बीच स्थित है। यहां भूतेश्वर महादेव को भर्कुरा महादेव भी कहा जाता है।

भर्कुरा महादेव
भूतेश्वर नाथ महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी जाना जाता हैं। छत्तीसगढ़ की भाषा मे हुँकारना (आवाज़ देना) की ध्वनि को भकुर्रा कहा जाता हैं। इसलिए भूतेश्वर महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी पुकारा जाता हैं।

भूतेश्वर नाथ महादेव के पीछे भगवान शिव की प्रतिमा स्थित है, जिसमे भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक, नंदी जी के साथ विराजमान है। इस शिवलिंग मे हल्की सी दरार भी है, इसलिए इसे अर्धनारीश्वर के रूप मे पूजा जाता हैं। इस शिवलिंग का बढ़ता हुआ आकार आज भी शोध का विषय है।

भूतेश्वर नाथ महादेव का इतिहास
भूतेश्वर महादेव शिवलिंग स्वयं-भू शिवलिंग है, क्युंकी इस शिवलिंग की उत्पत्ति व स्थापना के विषय मे आज भी कोई सटीक तर्क मौजूद नहीं है। परंतु जानकारों व पूर्वजो के अनुसार कहा जाता हैं, कि इस मंदिर की खोज लगभग ३० वर्ष पहले हुई थी। जब चारो तरफ घने जंगल थे। इन घने जंगलो के बीच मौजूद एक छोटे से टीले से, आसपास के गाव वालो को किसी बैल के हुँकारने की आवाज़ आती थी। परंतु जब ग्रामीण वासियो द्वारा टीले पर जाकर देखा गया तो वहाँ न ही कोई बैल था और न ही कोई अन्य जानवर । ऐसी स्थिति को देख धीरे-धीरे ग्रामीण वासियो की आस्था उस टीले के प्रति बढ़ती गयी और उन्होंने उसे शिव का स्वरूप मानकर पूजा अर्चना आरंभ कर दी। तभी से वह छोटा सा शिवलिंग बढ़ते-बढ़ते विशालतम शिवलिंग का रूप ले चुका है। अब इसे भक्तो की आस्था कहे या भगवान का चमत्कार, तब से लेकर अब तक शिवलिंग का बढ़ना जारी है।

सावन मास मे यहाँ आपको विशेष रूप से भक्तो की भीड़ नज़र आयेगी। भक्तजन दूर- दूर से बाबा का चमत्कार देखने व दर्शन करने आते है। कावड़ियों के लिए यहाँ विशेष रूप से व्यवस्था की गयी है, इसके साथ ही साथ शिवरात्रि मे यहाँ तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता हैं। भूतेश्वर नाथ, पंच भूतो के स्वामी है और भक्तजन महाशिवरात्रि को यहाँ पहुँच कर अपने आप को काफी सौभाग्यशाली मानते हैं।