0 हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दिया निर्देश

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ सरकार को हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि धारा 498 (ए) के तहत दर्ज किए जाने वाले मामलों में सीधे गिरफ्तारी न करें। कोर्ट ने संबंधित न्यायालयों से भी कहा है कि यदि किसी मामले में गिरफ्तारी हो तो वे इसकी आवश्यकता को लेकर खुद को संतुष्ट करें।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मो.अशफाक आलम बनाम झारखंड राज्य और अन्य को लेकर 31 जुलाई 2023 को एक दिशा निर्देश सभी अदालतों के लिए जारी किया है। इसके अनुपालन में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया है।

गिरफ़्तारी को लेकर चेकलिस्ट करें तैयार

हाईकोर्ट ने यह आदेश जारी करते हुए कहा है कि राज्य सरकार अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दें कि IPC की विवाहित महिला को ससुराल पक्ष द्वारा प्रताड़ित करने की धारा 498-ए के तहत मामला दर्ज होने पर स्वमेव गिरफ्तार न करें, बल्कि निर्धारित मापदंडों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को संतुष्ट करें। राज्य सरकार सभी पुलिस अधिकारियों को CRPC की धारा 41(1)(बी)(2) के तहत निर्दिष्ट उप-खंडों वाली एक चेक लिस्ट प्रदान करे, जिसका पालन करने के बाद ही गिरफ्तारी की जाए। इसके अलावा पुलिस अधिकारी अभियुक्त को आगे की हिरासत के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करते समय विधिवत भरी हुई चेक लिस्ट भी प्रस्तुत करेगा, जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि गिरफ्तारी की आवश्यकता क्यों हुई।

इधर मजिस्ट्रेट अभियुक्त की हिरासत को अधिकृत करते समय उपरोक्त शर्तों के अनुसार पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अवलोकन करेगा और संतुष्ट होने पर हिरासत को अधिकृत करेगा। दूसरी ओर अपराध दर्ज होने के दो सप्ताह के भीतर किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाता तो उसकी जानकारी मजिस्ट्रेट तथा पुलिस अधीक्षक को दी जाएगी।

संबंधित अधिकारी होंगे जिम्मेदार

हाईकोर्ट ने कहा है कि उपरोक्त निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर संबंधित पुलिस अधिकारी विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होने के अलावा उच्च न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित किए जाने के लिए भी उत्तरदायी होंगे। इसी तरह न्यायिक मजिस्ट्रेट उपरोक्त कारणों के बिना हिरासत को अधिकृत करते हैं तो उच्च न्यायालय विभागीय कार्रवाई करेगा।

7 साल से कम की सजा में भी लागू

हाईकोर्ट ने कहा है कि उपरोक्त निर्देश केवल न केवल धारा 498ए या दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज मामलों में लागू होंगे बल्कि ऐसे मामलों में भी होंगे जहां अपराध के लिए सात साल से कम की सजा हो सकती है।