0 राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने कहा- ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में कागजी शिक्षक

रायपुर। देश भर में मेडिकल कॉलेजों का निरीक्षण करने के बाद उन्हें मान्यता देने वाले राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) का कहना है कि वर्ष 2022-23 में मूल्यांकन के दौरान ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी और सीनियर रेजिडेंट सिर्फ कागजों पर ही पाए गए हैं। यही नहीं, कोई भी संस्थान 50 फीसदी न्यूनतम उपस्थिति के मानक पर खरा नहीं उतरा है। NMC ने मेडिकल कॉलेजों की जो हकीकत बयां की है, हालात उससे भी बदतर हैं। ठीक इसी तरह छत्तीसगढ़ में संचालित अधिकांश निजी अस्पतालों में भी डॉक्टरों की सूची तो चस्पा रहती है मगर डॉक्टर उपस्थित नहीं रहते। इन्हीं परिस्थतियों में मरीज का इलाज भी हो जाता है। ऐसा कैसे संभव है, ये एक बड़ा सवाल है।

मान्यता जारी रखने किया गया था मूल्यांकन

NMC ने बताया कि यह मूल्यांकन कुल मिलाकर 27 राज्यों में 246 स्नातक मेडिकल कॉलेजों को शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए मान्यता देने या मान्यता जारी रखने के लिए किया गया था। आयोग के मुताबिक, इस दौरान यह बात भी सामने आई कि विभिन्न खामियों पर ध्यान आकृष्ट करने और उन्हें दूर करने के लिए आगाह किए जाने के बावजूद कोई भी संस्थान पर्याप्त समय मिलने के बावजूद 50 प्रतिशत उपस्थिति के मानक को पूरा नहीं करता है। यही नहीं शून्य उपस्थिति की समस्या अभी भी बरकरार है।

बायोमेट्रिक हाजिरी की जांच में हुआ खुलासा

मेडिकल कॉलेजों में आपातकालीन चिकित्सा विभागों की वास्तविक स्थिति कागजों पर दिखाई गई तस्वीर से एकदम भिन्न है। आयोग के मुताबिक, एमएसआर यानी न्यूनतम मानक आवश्यकता, 2020 की बात करें तो कॉलेजों में आधार आधारित बायोमेट्रिक हाजिरी की जांच करते समय यह देखकर बेहद हैरानी हुई कि फैकल्टी और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति के मामले में शत-प्रतिशत सभी संस्थान नाकाम रहे हैं। अधिकांश संस्थानों ने इसके नाम पर सिर्फ काजगी खानापूरी ही की है। NMC ने पाया कि कोई भी नियमित तौर पर आपातकालीन विभाग नहीं जाता, क्योंकि आपातकालीन चिकित्सा विभाग में आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी को छोड़कर कोई भी बातचीत के लिए होता ही नहीं है।

छत्तीसगढ़ के मेडिकल कॉलेजों का हाल

छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां AIIMS को मिलाकर 11 शासकीय और 3 निजी मेडिकल कॉलेज हैं, अधिकांश में MBBS के अलावा PG डॉक्टर्स की भी पढ़ाई होती है। इन कॉलेजों में पढ़ने वाले फैकल्टी की जानकारी ली गई तो पता चला कि NMC के निरीक्षण के दौरान सभी जगह जरुरत के मुताबिक फैकल्टीज दर्शा दिए जाते हैं। शासकीय मेडिकल कॉलेजों में तो स्थिति तो लगभग सही होती है, क्योंकि वहां तो बाकायदा सरकारी सेवा में नियुक्त डॉक्टर ही संलग्न होते हैं, मगर निजी मेडिकल कॉलेजों में तो केवल NMC के निरीक्षण के दिन ही छात्रों को पढ़ाने वाले डॉक्टर नजर आते हैं। छत्तीसगढ़ के निजी मेडिकल कॉलेजों में श्री बालाजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस रायपुर, श्री शंकराचार्य आयुर्विज्ञान संस्थान, भिलाई और रायपुर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स), रायपुर शामिल हैं।

औचक निरीक्षण में गायब मिलेंगे डॉक्टर्स

हकीकत तो यह है कि यहां के निजी मेडिकल कॉलेजों में केवल और केवल NMC की टीम के दौरे के समय ही यहां दर्शाये गए डॉक्टर उपस्थित नजर आते हैं, बाकी समय सभी अपने अस्पतालों में मौजूद रहते हैं। ये सभी एक या दो दिन के ठेके पर लाये गए होते हैं। इनमें से कोई भी कभी भी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाते हुए नजर नहीं आता है। औचक निरीक्षण में यह सब कुछ उजागर हो जायेगा। सच तो यह है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में कुछेक फेकल्टीज होते हैं जो छात्रों को पढ़ाते हैं। संबंधित मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में मरीज भी कम होते हैं, इसलिए छात्रों के पास मरीजों के इलाज का अनुभव भी कम ही होता है। इसके विपरीत शासकीय मेडिकल कॉलेजों में मरीजों की भरमार होती है, इसलिए मेडिकल छात्रों को इलाज का अनुभव भी काफी होता है।

क्या कर रहा चिकित्सा शिक्षा विभाग

डॉक्टर को ‘भगवान’ का दर्जा दिया जाता है, और अगर लोग बिना किसी सुविधा के इस तरह फैकल्टीज के बिना पढ़ाई करके डॉक्टर बन जाएं तो वे किस तरह मरीजों का इलाज करते होंगे इसका अंदाजा तो सहज ही लगाया जा सकता है। मेडिकल कॉलेजों की मॉनिटरिंग का जिम्मा संबंधित मेडिकल यूनिवर्सिटी और चिकित्सा शिक्षा विभाग का होता है, मगर जिस तरह की व्यवस्था यहां के निजी मेडिकल कॉलेजों की है, उसे देखकर तो कहीं भी नजर नहीं आता कि यूनिवर्सिटी और चिकित्सा शिक्षा विभाग अपनी भूमिका का निर्वहन सही तरह कर पाते हैं।

निजी अस्पताल और “घोस्ट डॉक्टर्स”

अभी तक हम बात कर रहे थे निजी और शासकीय मेडिकल कॉलेजों की, अब बात छत्तीसगढ़ में संचालित निजी अस्पतालों की। यहां के प्रमुख शहरों में संचालित ख्यातिनाम निजी अस्पतालों में आप प्रवेश करें तो आपको वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की लंबी चौड़ी लिस्ट मिल जाएगी। इनके बारे में पूछने पर कहा जाता है कि ये डॉक्टर्स “ऑन कॉल” यानि बुलाने पर तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं। पहली हकीकत तो ये है कि इनमें से अधिकांश डॉक्टरों के नाम दूसरे कई निजी अस्पतालों के बोर्ड पर भी चस्पा मिल जाते हैं। दूसरी हकीकत ये है कि इन विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपस्थिति के बिना ही संबंधित मरीज का इलाज उस अस्पताल में हो जाता है, और फीस विशेषज्ञ डॉक्टर की वसूली जाती है। राजधानी रायपुर सहित दूसरे बड़े शहरों के निजी अस्पतालों में ऐसे “घोस्ट डॉक्टरों” की भरमार है और ये हकीकत जानने के बावजूद जिले के CMHO हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। जागरूकता के अभाव में मरीज या उनके परिजन भी कुछ नहीं कर पाते।

गड़बड़ी रोकने स्वास्थ्य मंत्री ने दिए दिशा-निर्देश

दरअसल छत्तीसगढ़ में अधिकांश बड़े निजी अस्पताल केंद्र और राज्य सरकार की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के तहत पंजीकृत हैं, और इनकी सबसे ज्यादा कमाई इस योजना के तहत इलाज करने से होती है। TRP NEWS से चर्चा के दौरान स्वास्थ्य मंत्री और उप मुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने बताया कि राज्य स्तरीय समीक्षा बैठक के दौरान यह हकीकत सामने आयी है, जिसके बाद अब शहरों की कैटेगेरी और अस्पताल में उपलब्ध बेड के हिसाब से बड़े अस्पतालों का पंजीयन स्वास्थ्य बीमा यजना के तहत इलाज के लिए किया जायेगा। इसके अलावा अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता का भी ध्यान रखा जायेगा। इसके तहत संबंधित अस्पतालों में आधार आधारित बायोमेट्रिक उपस्थिति भी अनिवार्य करने को कहा गया है। यही नहीं मरीजों का फर्जी तरीके से इलाज रोकने के लिए उनकी भी बायोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज की जाएगी। उम्मीद की जा रही है कि इस तरह के उपाय अपनाने से अस्पतालों में होने वाले फर्जीवाड़े पर रोक लग सकेगी।