रायपुर: दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में जिनके टिकट कटे है। वो इसे इतनी आसानी से भूल नहीं पा रहे है। टिकट कटने का दर्द चुनाव परिणाम आने् तक सालता रहेगा। विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी दल कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए अंदर खाने पनपने वाला असंतोष बड़े संकट के संकेत दे रहा है।

भाजपा के 85 उम्मीदवार घोषित होने के बाद पनप रही नाराजगी पर नियंत्रण पाने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस के सामने संभावित उम्मीदवारों की घोषणा के बाद असंतोष को दबाना चुनौती बनेगा। जो दल असंतोष को काबू में रखेगा उसके लिए जीत की राह आसान रहने की संभावना जताई जा रही है। राज्य में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है।

मुकाबला बराबरी का रहने के आसार हैं। कांग्रेस पूरी तरह भूपेश बघेल सरकार के पांच साल की उपलब्धियां के आधार पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं भाजपा प्रदेश सरकार की नाकामियां और केंद्र सरकार की उपलब्धियां को मुद्दा बनाने में जुटी है।

राज्य में दो चरणों में सात नवंबर और 17 नवंबर को मतदान होना है। भाजपा राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 85 के लिए उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर चुकी है उसके सिर्फ पांच उम्मीदवारों के नाम घोषित होना शेष रह गए हैं।

भाजपा ने एक केंद्रीय मंत्री सहित चार सांसदों को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारा है तो वहीं कई दावेदारों के टिकट काटे हैं। इसके चलते कई स्थानों से विरोध के स्वर उठे हैं, मगर खुलकर कोई भी नेता पार्टी के फैसले का विरोध नहीं कर रहा है।

पार्टी को आशंका है कि चुनाव के दौरान असंतुष्ट और नाराज चल रहे है वे लोग नुकसान पहुंचा सकते हैं, लिहाजा पार्टी ऐसे लोगों को मनाने में जुटी है जो नाराज हैं और टिकट वितरण से खुश नहीं है। राज्य की लगभग एक दर्जन सीटों से भाजपा नेताओं में नाराजगी की खबरें आ रही हैं। एक तरफ जहां भाजपा में असंतोष बढ़ रहा है तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवारों के ऐलान के बाद बढ़ने वाले असंतोष को रोकने की तैयारी में लगी हुई है।

ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस के लगभग दो दर्जन विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चाएं जोरों पर है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जिन विधायकों की जमीनी रिपोर्ट नकारात्मक आई है, उन्हें पार्टी उम्मीदवार नहीं बनाएगी और इसी को लेकर असंतोष के साथ बगावत के आसार भी बने हुए हैं।

राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अगले चुनाव में जीत की उम्मीद बांधे हुए है। वह उम्मीदवार चयन में सतर्कता बरत रही है तो दावेदारों को भी लगता है कि अगर उन्हें इस मौका नहीं मिला तो वह दूसरे दल का दामन थाम कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा कर सकते हैं।

इसी के चलते कांग्रेस की सूची आने के बाद भाजपा और कांग्रेस में दल बदल की संभावना को बल मिल रहा है। इसके बावजूद जो दल बगावत को रोक लेगा उसके लिए जीत की राह आसान होगी। कहा तो यह भी जा रहा है कि असली मजा तो परिणाम आने के बाद आएगा जब दोनों दलों को सरकार बनाने के लिए नंबर बढ़ाने के लिए जोड़तोड़ करना पड़े, तब कौन कहां कूदेगा कोई नहीं जान सकता । वो तो वहीं जानता है जिसने बड़ी मशक्कत के बाद टिकट हासिल करने एड़ी चोटी का जोर लगाया है या फिर जो दोनों सरकारों में उपकृत नहीं हो पाए। इन सभी गंभीर विषय को लेकर दोनों दल गहन चिंतन करने में जुट गई है।

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