नयी दिल्ली। क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार के नियमन के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने को लेकर केंद्र और अन्य को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से उच्चतम न्यायालय ने इनकार कर दिया है। क्रिप्टोकरेंसी ऐसी डिजिटल या आभासी मुद्राएं हैं, जो केंद्रीय बैंक से स्वतंत्र रूप से संचालित होती हैं।

याचिकाकर्ता का वास्तविक उद्देश्य कुछ और

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि याचिका में जिस राहत का अनुरोध किया गया है, उसकी प्रकृति विधायी अधिक है। पीठ ने इस बात पर गौर किया कि उक्त याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत आती है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इसका ‘‘वास्तविक उद्देश्य याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित कार्यवाही में जमानत लेना है।’’

पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘हम इस प्रकार की कार्यवाही का समर्थन करने में सक्षम नहीं हैं। याचिकाकर्ता नियमित जमानत के लिए उचित अदालत में जाने के लिए स्वतंत्र होगा। जहां तक मुख्य राहतों का सवाल है, तो ये विधायी निर्देश की प्रकृति की हैं, जिन्हें अदालत संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जारी नहीं कर सकती।’’

अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपायों के अधिकार से संबंधित है और 32 (1) नागरिकों को अधिकारों के क्रियान्यवयन के लिए शीर्ष अदालत में जाने का अधिकार देता है।

पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश के व्यक्ति द्वारा दायर याचिका में डिजिटल संपत्ति/क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े मामलों में मुकदमा चलाने के निर्देश देने संबंधी अनुरोध भी शामिल है। उसने कहा, ‘‘हम याचिका का निपटारा करते हैं और याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार अन्य उपाय अपनाने की छूट देते हैं।’’