टीआरपी डेस्क। उत्तरकाशी के सिल्कयारा टनल से बाहर आ चुके मजदूरों का स्वागत पूरा देश कर रहा है। उनके बाहर निकलने के साथ ही उन्हें बाहर निकाले जाने की तकनीक पर काफी चर्चा हो रही है। बता दें कि सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद उसमें फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए ‘रैट-होल’ तकनीक एवं खनिकों की मदद ली गई।

‘रैट-होल’ मजदूरों ने 24 घंटे से भी कम समय में 10 मीटर की खुदाई करके असंभव लगने वाले राहत कार्य को आसान कर दिया। बता दें कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में मेघालय में ‘रैट-होल’ खनन तकनीक का उपयोग करके कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था।

‘रैट-होल’ खनन में श्रमिकों के प्रवेश तथा कोयला निकालने के लिए आमतौर पर 3-4 फुट ऊंची संकीर्ण सुरंगों की खुदाई की जाती है। क्षैतिज सुरंगों को अक्सर ‘चूहे का बिल’ कहा जाता है, क्योंकि प्रत्येक सुरंग लगभग एक व्यक्ति के लिए ही उपयुक्त होती है।

उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में मुख्य संरचना के ढह गए हिस्से में क्षैतिज रूप से ‘रैट-होल’ खनन तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और नवयुग इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कम से कम 12 विशेषज्ञों को बुलाया गया था। वे दिल्ली, झांसी और देश के अन्य हिस्सों से आए थे।

क्या है यह तकनीक

‘रैट-होल’ शब्‍द जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों को दर्शाता है। इस तकनीक के जरिए संकरे क्षेत्रों से कोयला निकालने का काम किया जाता है। कुशल कारीगर मैनुअल तरीके से बेहद संकीर्ण सुरंग तैयार करते हैं। जिसके बाद खदानों में काम करने वाले लोग सुरंगों में नीचे उतरते हैं और कोयला निकालने का काम करते हैं।

ये सुरंग इतनी संकीर्ण होती है कि बमुश्किल एक समय में एक आदमी ही सुरंग में घुस पाता है। गड्ढे के खुदने के बाद कोयले तक पहुंचने के लिए मजदूर रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करते हैं। जिसके बाद कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे उपकरणों के इस्‍तेमाल से मैन्युअली निकाला जाता है। आज इसी तकनीक की मदद से टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकाला गया है।

महाभारत काल में भी मिलता है जिक्र !

बता दें कि वर्तमान समय में खुदाई की इस तकनीक को भले ही रैट होल तकनीक कहते हैं। मगर इस तकनीक का जिक्र महाभारत महाकाव्य में भी मिलता हौ। पुराने समय में राजे महाराजे अपनी सुरक्षा के लिए ऐसे ही रैटमाइन्स से सुरंगे बनवाते थे, ताकि मुसीबत के समय वो बाहर निकल सकें। हस्तिनापुर में लाक्षागृह में फंसे पांडवों को भी इस तकनीक के जरिए गुप्त सुरंग खोद कर बचाया गया था।

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