रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने हार्ट अटैक (दिल का दौरा) के कारण लगभग सौ प्रतिशत अवरूद्ध (ब्लॉक) हो चुके दिल की धमनी को मैकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट सिस्टम डिवाइस इम्पेला की सहायता से एंजियोप्लास्टी करके खोला और मरीज को नई जिंदगी दी।

डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार इम्पेला दुनिया का सबसे छोटा हृदय पम्प है जो अवरूद्ध हृदय की धमनियों को खोलते समय शरीर के वाइटल ऑर्गन (हृदय, फेफड़ा, किडनी, लीवर एवं मस्तिष्क) को हेमोडायनामिकली रूप से स्थिर करने के काम करता है जिससे मरीज की सफलतापूर्वक एंजियोप्लास्टी की जा सके। पूरे विश्व में तीन लाख मरीजों का इस विधि से उपचार हो चुका है और पूरे भारत में 240 मरीज का इस विधि से उपचार हुआ। एसीआई राज्य का पहला शासकीय संस्थान है जहां इस विधि से उपचार किया गया है।

डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार 50 वर्षीय एक मरीज हमारे यहां मेडिसिन विभाग में भर्ती हुआ। मरीज का ईएफ काफी कम था और हार्ट के पंप करने की क्षमता भी काफी कम थी। मैंने देखा कि नस बंद होने के कारण हार्ट फेल हो गया था, तो नस को खोलने से फायदा हो सकता था। जब देखा तो दाहिने तरफ की नस ठीक है और बायीं तरफ की मुख्य नस 100 प्रतिशत बंद थी जिसे लेफ्ट मेन आर्टरी कहते हैं। हार्ट अटैक के कारण अब समस्या यह थी कि हार्ट का फंक्शन 15 से 20 प्रतिशत ही था। कार्डियक सर्जनों ने कहा कि बाईपास की संभावना काफी कम है। फिर मरीज का उपचार दूसरी विधि से करने की योजना बनाई जिसमें मरीज का जब एंजियोप्लास्टी करेंगे तो हार्ट के अंदर सबमर्सिबल पंप की तरह एक छोटा डिवाइस डालेंगे जिसे इम्पेला कहते हैं जिससे जब नसों पर काम करते रहेंगे तो हार्ट चलता रहेगा। एंजियोप्लास्टी के दौरान ब्लड सर्कुलेशन को ठीक करने के लिए इस मशीन का प्रयोग करते हैं।

हृदय में एक बार स्थापित होने के बाद, इम्पेला हृदय पंप चालू हो जाता है, जो बाएं वेंट्रिकल से रक्त खींचता है और इसे महाधमनी में छोड़ता है। बाएं वेंट्रिकल की यह सक्रिय ‘अनलोडिंग’ मस्तिष्क और अन्य महत्वपूर्ण अंगों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती है और मरीजों के दिल को आराम देते हुए किडनी को गंभीर चोट से बचाती है।

ऐसे किया गया प्रोसीजर

दायें पैर की सहायता से हृदय की दाहिनी नस तक पहुंचे। बहुत कठिनाई के साथ माइक्रोकैथेटर, कोरोनरी गार्ड वायर का यूज करते हुए नस के उद्गम से अंतिम छोर तक रास्ता बनाया। इस दौरान मरीज को कोई समस्या नहीं आयी क्योंकि उस दौरान यह पंप काम कर रहा था। चूंकि मरीज प्रोसीजर के बाद बिल्कुल ठीक हो गया इसलिए इम्पेला को पैर के रास्ते निकाल दिया गया। हृदय की बायीं नस, लेफ्ट मेन आर्टरी से एंजियोप्लास्टी की गई। मोटे वायर की सहायता से इम्पेला को बायें तरफ से मरीज के हृदय तक पहुंचकर धमनियों के माध्यम से हृदय में स्थापित किया गया। एक बार स्थापित होने के बाद इम्पेला हृदय पंप चालू हो जाता है। प्रोसीजर के बाद मोटर को बंद कर दिया और खींच कर बाहर निकाला। यह सब प्रोसीजर आधे घंटे में हो गया।

हार्ट अटैक आने की वजह से पहले हृदय के रक्त पम्पिंग की क्षमता डेढ़ लीटर प्रति मिनट थी जो मशीन के साथ 5 लीटर प्रति मिनट हो गया। यह बहुत जरूरी था। प्रोसीजर के बाद काफी इंप्रूवमेंट दिखा। इस पंप की सहायता से प्रोसीजर के दौरान वाइटल ऑर्गन कम्प्लीटली परफ्यूज्ड रहता है यानी चालू रहता है। हार्ट के प्रोसीजर के बाद 90 दिनों के अंदर जो कॉम्प्लीकेशन आते हैं उनके आने की संभावना कम हो जाती है।

ये सदस्य रहे टीम में शामिल

प्रोसीजर करने वाले डॉक्टरों की टीम में कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ रेसिडेंट डॉ. बलविंदर सिंग, डॉ. अनमोल अग्रवाल एवं डॉ. प्रतीक गुप्ता, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौडा, सीनियर टेक्नीशियन आई. पी. वर्मा, जितेंद्र, खेम सिंग, नीलिमा, निशा एवं नर्सिंग स्टाफ में हेमलता देवांगन, बुधेश्वर साहू, डिगेंद्र शामिल रहे।

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