दुनिया कितनी बदलेगी? किस तरह के समीकरण बनेंगे-बिगड़ेंगे?

नई दिल्ली। 2024 चुनावी साल है, न सिर्फ भारत के लिए बल्कि दुनियाभर के लिए अहम है। इस साल 70 से अधिक देशों में चुनाव होने हैं, जिनमें चार अरब से अधिक लोग वोट डालेंगे। एशिया से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक हर महाद्वीप चुनावी मूड में रहेगा। 27 देशों वाला यूरोपियन यूनियन भी चुनावी रंग में रंगने जा रहा है। इन चुनावों से दुनिया कितनी बदलेगी? किस तरह के समीकरण बनेंगे-बिगड़ेंगे? ये तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन पूर्व के घटनाक्रमों को देखें तो उनमें आने वाले समय की तस्वीर की कुछ झलक देखने को मिल सकती है।

शुरुआत करते हैं साल 2022 से, यह साल रूस और यूक्रेन युद्ध की त्रासदी लेकर आया। इस युद्ध ने वैश्विक समीकरण तेजी से बदले। पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी नजर आई। लेकिन 2023 में ये वैश्विक बदलाव और तेज हुआ। ताइवान की वजह से जहां एक तरफ अमेरिका और चीन की कड़वाहट बढ़ी। तो वहीं, इजरायल और हमास जंग ने जमकर तबाही मचाई, जिससे मिडिल ईस्ट का संकट और गहरा गया। इस तरह बीते कुछ सालों से पूरी दुनिया में जो उथल-पुथल मची है, उसमें इस चुनावी साल में बनने वाली नई सरकारों की क्या भूमिका रहने वाली है इसपर सबकी नजर रहेगी।

एशियाई देशों की बात करें तो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, भूटान, ताइवान, इंडोनेशिया और मालदीव में आम चुनाव हैं। बांग्लादेश में संसदीय चुनाव हो चुके हैं। यूरोप के भी दर्जनभर से ज्यादा देशों में इस साल वोट डाले जाएंगे, जिनमें पुर्तगाल से लेकर बेलारूस, फिनलैंड, यूक्रेन और स्लोवाकिया तक शामिल हैं। अफ्रीकी देशों में इस साल सबसे अधिक चुनाव हैं, जहां दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा एक बार फिर सत्ता में लौटने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं, चाड, घाना, कोमोरोस, अल्जीरिया, बोत्सवाना, मॉरीशस, मोजाम्बिक, मॉरिटानिया, रवांडा, सेनेगल, सोमालीलैंड और ट्यूनीशिया में भी वोट डाले जाएंगे। इसके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, मेक्सिको और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में भी चुनाव होने हैं।

चुनावों से कितनी बदलेगी जियोपॉलिटिक्स?

हर चुनाव में हार-जीत के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समीकरण बदलते हैं। सबसे ज्यादा असर पड़ता है, वहां की जियोपॉलिटिक्स पर इस साल भारत के लोकसभा चुनावों पर सभी की नजरें होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैट्रिक के इरादे से चुनावी मैदान में उतरेंगे। सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ मैदान में होगा INDIA गठबंधन। इन चुनावों में देश की 95 करोड़ जनता वोट डालेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीते दस सालों में भारत की फॉरेन पॉलिसी काफी बदली है। G20 की अध्यक्षता से लेकर ग्लोबल साउथ की मुखर आवाज बनने तक वैश्विक प्लेटफॉर्म पर भारत को तवज्जो मिली है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, यूक्रेन, ऑस्ट्रेलिया से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक भारत की धाक बनी है। ऐसे में रिकॉर्ड तीसरी बार बीजेपी के सत्ता में आने पर इस ग्राफ के और ऊपर जाने का अनुमान है। लेकिन अगर विपक्षी INDIA गठबंधन जीतता है तो स्थिति कुछ अलग हो सकती है।

ट्रंप की जीत से हो सकते हैं बड़े बदलाव

अमेरिका में इस साल नवंबर में चुनाव होने हैं। चुनाव में हमेशा की तरह अमेरिका की दो प्रतिद्वंद्वी पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक आमने-सामने होंगी। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से जो बाइडेन एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। तो रिपब्लिकन की तरफ से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आगे बताए जा रहे हैं। हालांकि, अपने ऊपर लगे कई कानूनी मुकदमों की वजह से ट्रंप पिछली कुछ प्राइमरी डिबेट से नदारद रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर सर्वे में उन्हें बाइडेन पर भारी पड़ते दिखाया गया है।

द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट पर गौर करें, इसमें कहा गया है कि अगर ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो इसे 2024 में दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा कहा जा सकता है।

ताइवान चुनाव से बदलेंगे समीकरण

ताइवान में 13 जनवरी को आम चुनाव होने जा रहे हैं जिनमें नया राष्ट्रपति चुना जाएगा। राष्ट्रपति चुनाव के साथ-साथ वहां नई संसद का भी चुनाव होगा। इस चुनाव पर चीन के साथ-साथ अमेरिका की भी नजर होगी। पिछले साल अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी बढ़ गई थी। चीन जहां एक तरफ ताइवान पर दावा करता है. वहीं, अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता की पैरवी करता है।

ताइवान चुनाव से एक बार फिर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है और इसका दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने की पूरी-पूरी संभावना है।

ताइवान की मौजूदा राष्ट्रपति और उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को चीन पसंद नहीं करता. उसे चीन अलगाववादी मानता है। इस बार डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी से लाई चिंग ते चुनावी मैदान में हैं। उन्हें चीन का धुर विरोधी और अमेरिका का पक्षधर माना जाता है। अगर वह चुनाव जीतते हैं तो इससे चीन और ताइवान का तनाव नए स्तर तक पहुंच सकता है और आने वाले दिनों में क्षेत्र की स्थिति गंभीर हो सकती है।

मेक्सिको को मिलेगी पहली महिला राष्ट्रपति

मेक्सिको में भी इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। यहां राष्ट्रपति पद की दौड़ में मुख्य मुकाबला दो महिलाओं के बीच है। यहां मुकाबला क्लाउडिया शीनबाम और जोचिटल गैल्वेज के बीच है। इस दौड़ में जीत चाहे किसी की भी हो लेकिन ये तय है कि मेक्सिको को अपनी पहली महिला राष्ट्रपति मिलने जा रही है।

रूस का राष्ट्रपति चुनाव महज एक औपचारिकता

रूस में भी इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। पुतिन ने पिछले साल ऐलान किया था कि वे 2024 का राष्ट्रपति चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने छह साल के एक और कार्यकाल की इच्छा जाहिर की थी। एक तरह से उनका जीतना तय माना जा रहा है। सभी को पता है कि रूस का यह चुनाव पुतिन के लिए महज एक औपचारिकता होगा।

रूस में हाल ही में संवैधानिक सुधार किए गए थे। इसके तहत पुतिन अपना मौजूदा राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद छह और साल के लिए इस पर बने रह सकते हैं। इस तरह 2036 तक उनके सत्ता में बने रहने का रास्ता साफ हो गया है।

लेकिन पुतिन की यह आसान जीत कई संभावनाओं को खत्म कर सकती है। मसलन, यूक्रेन युद्ध जारी रखने को लेकर उनकी जिद ज्यों की त्यों बनी रह सकती है। अमेरिका और यूरोपीय देशों से पुतिन के खराब संबंध और खराब हो सकते हैं।

ब्रिटेन चुनाव भारत के लिए अहम क्यों?

ब्रिटेन में साल के अंत में आम चुनाव हो सकते हैं। वैसे ऐसी संभावना भी जताई जा रही है कि ये चुनाव 2025 में भी हो सकते हैं। लेकिन देश में सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी को चुनावों में कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। 2019 में बोरिस जॉनसन के प्रधानमंत्री बनने से लेकर बेहद नाटकीय ढंग से पद छोड़ने, इसके बाद लिज ट्रस के पीएम बनने के कुछ दिनों के भीतर इस्तीफा देने से कंजरवेटिव पार्टी पर वोटर्स का भरोसा कम हुआ है। ऐसे में ऋषि सुनक को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

पाकिस्तान की नई सरकार और भारत से संबंध

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इस साल आठ फरवरी को आम चुनाव होने थे। लेकिन हाल ही में इन चुनावों की तारीखों को कुछ समय के लिए टालने के लिए एक प्रस्ताव को पारित किया गया। इसके बाद से ही फरवरी में पाकिस्तान चुनाव को लेकर संशय जताया जा रहा है। लेकिन यह तय है कि पाकिस्तान में चुनाव इसी साल होंगे।

इंडोनेशिया चुनाव से बदलेंगे क्षेत्रीय समीकरण

इंडोनेशिया में 14 फरवरी को राष्ट्रपति पद के लिए आम चुनाव होंगे। इस बार राष्ट्रपति चुनाव में मुकाबला तीन उम्मीदवारों गंजर प्रणोवो, अनीस बसवेडन और प्रबोवो सुबिआंतो के बीच है। इंडोनेशिया का ये चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी के आधार पर नया ऱाष्ट्रपति अपने पड़ोसियों के साथ अपने रिश्ते तय करेगा।

मलेशिया के साथ सीमा विवाद और चीन के साथ उसके रिश्तों को लेकर इंडोनेशिया की नई सरकार के कदम पर सबकी नजर होगी। वहीं, कई देश ऐसे भी हैं, जहां सरकारें बदलने से पूरी दुनिया पर उसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है। कई देशों में सरकारें नहीं बदलने से परिवर्तन की चाहत भी दम तोड़ सकती है। लेकिन इन सबके बीच एक दिलचस्प बात ये भी है कि 2024 में जहां एक साथ इतने देशों में चुनाव हो रहे हैं। वहीं, अगली बार ऐसा संयोग 2048 में देखने को मिलेगा।

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