कवि- समालोचक डॉ विजयदेव नारायण साही जन्मशती पर प्रेस- क्लब में हुआ आयोजन

रायपुर। देश के विचारवान व्यक्ति व समूहों को कवि- आलोचक- समीक्षक डॉ. विजयदेव नारायण साही से प्रेरणा लेकर सार्वजनिक जीवन में न केवल हस्तक्षेप करना चाहिए बल्कि संसदीय लोकतंत्र को सार्थक बनाने के लिए खर्चीले चुनावों के जवाब में विकल्प खड़ा करते हुए खुद भी चुनाव लड़ना चाहिए। यह दायित्व हर विचारवान बुद्धिजीवी का है। यह समय की जरूरत भी है। डॉ लोहिया के प्रियपात्र साही जी पढ़ाते थे, बंचितों की लड़ाई लड़ते थे और चुनाव भी लड़ते थे।

सुप्रसिद्ध समाजवादी राजनेता व चिंतक रघु ठाकुर ने आज विजयदेव नारायण साही की जन्मशती के अवसर पर रायपुर के प्रेस- क्लब में आयोजित समारोह में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए यह विचार रखे।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा,प्रसिद्ध पत्रकार व माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व- कुलपति जगदीश उपासने, जाने- माने साहित्यकार गिरीश पंकज, संपादक- पत्रकार हिमांशु द्विवेदी, दिवाकर मुक्तिबोध, शिव शर्मा, साही जी के विद्यार्थी अशोक तोमर ने जन्मशती पर वैचारिक आवेग व आत्मीयता के साथ डा . साही को याद किया। पुष्पा बल्यानी इस आयोजन में मंच पर उपस्थित रहीं।

रघु ठाकुर जी ने साही जी के सामाजिक सरोकार को याद करते हुए कहा कि उनके साहित्य व संघर्ष में डा . राममनोहर लोहिया के विचार साकार होते दिखाई देते हैं। उनकी कविता में अज्ञातकुलशील व वंचितो की पीड़ा है। कविता ‘ लाक्षागृह ‘ इसका प्रमाण है। उनकी लेखों पर आधारित कृति की भूमिका मधु लिमये ने लिखी। साही जी द्वारा लोकतंत्र को बचाने के प्रयासों का जिक्र करते हुए रघु ठाकुर ने कहा चुनाव जब पांच सौ रूपये में हो जाते थे तब बस्तर से पांच – पांच समाजवादी विधायक जीत कर आते थे। सामान्य लोगों में लोकतंत्र के प्रति आस्था जगाये रखने के लिए साही जी भदोही- मिर्जापुर से चुनाव लडते थे। आज पूंजी पर आधारित चुनावों का जवाब देने के लिए जनता के प्रति आस्थावान लोगों को चुनाव में भागीदारी करनी चाहिए।
जगदीश उपासने ने कहा कि साहित्यकारों की स्मृति को कैसे सुरक्षित रखा जाये यह हम इंग्लैंड जैसे पश्चिम के देश से सीख सकते हैं। देश का सार्वजनिक जीवन ऐसा बने जिसमें देश के किसी भी क्षेत्र के नायक का पुण्यस्मरण करने व स्मृति को सुरक्षित रखने में विचारधारा आड़े न आये।

साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि डॉ साही की कथनी- करनी में अंतर नहीं था। अंग्रेजी के अध्यापक होकर हिन्दी को उन्होंने अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। उन्हें साहित्य मे बहस करता हुआ आदमी माना जाता है। वे सदैव वंचितों , साहित्यकारों व महिलाओं के पक्ष में खड़े हुए। जायसी सहित साठोत्तरी कविता पर उनकी गवेषणा मील का पत्थर है। दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा कि साही जी ने लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति जगाई।

हिमांशु द्विवेदी ने साही जी को यह श्रेय दिया कि ‘ पद्मावत ‘ के रचनाकार जायसी को भारतीय कवि के रूप में देखा। सांस्कृतिक मूल्यों व परम्परा को बनाये रखने के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित किया। डॉ नामवर सिंह व डॉ साही को आलोचना के क्षेत्र के ‘ दो बांके ‘ माना गया है।

पूर्व – मंत्री झावरमल्ल शर्मा ने साही जी की स्मृति में आयोजन के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया। अध्यापक डॉ अनूप सिंह, पत्रकार शिव शर्मा, सरिता दुबे ने भी साही जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर अपने व
कार्यक्रम का संचालन जयन्त सिंह तोमर ने धन्यवाद ज्ञापित अशोक पंडाने किया।

अतिथियों का स्वागत शिव नेताम, मातामणि, श्याम मनोहर सिंह, फेकन सिंह, रामसिंह छत्री, गुरदयाल बनजारे ने किया।