नेशनल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में गुजरात दंगों की पीड़ित बिलकिस बानो से गैंगरेप के दोषियों की रिहाई को खारिज कर दिया है। बता दें कि इसी मामले में दोषियों को गुजरात सरकार ने सजा कम करते हुए रिहा कर दिया था।

क्या था मामला

दरअसल गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो से नृशंस गैंगरेप हुआ था। इसतना ही नहीं उसकी आंखों के सामने ही उसके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद दोषियों को मुंबई की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 2008 में 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगा दी।

मगर गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। जिसके बाद जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गया। इसे लेकर देश में प्रदर्शन भी हुए।

दरअसल, उम्र कैद की सजा में कम से कम 14 साल जेल में बिताने होते हैं। 14 साल के बाद इस फाइल का फिर रिव्यू में उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह के आधार पर सजा कम की जा सकती है। कई बार कैदी को रिहा कर दिया जाता है।

27 फरवरी 2002 को ‘कारसेवकों’ से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग लगा दी गई थी। इसमें 59 लोगों की मौत हुई, जिसके कारण गुजरात में दंगे भड़क उठे। दंगाइयों से बचने के लिए बिलकिस बानो साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और 15 लोगों के साथ गांव से भाग गई। तब वह 5 महीने की गर्भवती भी थी।

03 मार्च 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंचा। जहां वे सभी खेतों में छिपे थे। मगर उन्हें खोज लिया गया। चार्ज़शीट के अनुसार 12 लोगों समेत करीब 30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार पर हमला किया।

बिलकिस और 4 महिलाओं को पहले पीटा गया फिर उनके साथ रेप किया गया। इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं। हमलावरों ने परिवार के कई लोगों उनके आंखों के सामने हत्या भी कर दी। इस हमले में 7 लोग भी मारे गए। ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे। इसमें बिलकिस की बेटी भी शामिल थीं।

इस घटना के बाद बिलकिस कम से कम तीन घंटे तक बेहोश रहीं। होश में आने पर उसने एक आदिवासी महिला से कपड़ा मांगा। बाद में एक होमगार्ड से मिली, जो उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए लिमखेड़ा थाने ले गया। वहां कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने शिकायत दर्ज की। बाद में गोरी को अपराधियों को बचाने के आरोप में 3 साल की सज़ा मिली।

बाद में बिलकिस को गोधरा रिलीफ कैंप पहुंची जहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया। ये मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिया।

जब पुलिस ने इसकी जांच शुरू की तो उसने सबूतों के अभाव में केस खारिज कर दिया गया। बाद में मामला मानवाधिकार आयोग के पास गया। बाद में देश की सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई से नए सिरे से जांच का आदेश दिया। सीबीआई चार्ज़शीट में 18 लोगों को दोषी पाया गया। इनमें 5 पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी थे। पुलिस और डॉक्टर पर सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगा।

बिलकिस बानो को कोर्ट में सुनवाई और सीबीआई जांच के दौरान बार बार जान से मारने की धमकियां दी गई। उसने दो साल में 20 बार घर बदले। बाद में थक हार कर उसने अपना केस गुजरात से बाहर अन्य राज्य में शिफ्ट किए जाने की अपील की। जिसके बाद यह मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया। जहां सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी करार दिया।

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