रायपुर। 17 चौसिंगा की मौत के मामले में चर्चा में आये पशु चिकित्सक डॉक्टर राकेश वर्मा के खिलाफ जंगल सफारी का एक और प्रकरण उजागर हुआ है। इस मामले में जांच अधिकारी ने डॉ वर्मा के खिलाफ प्रतिवेदन तैयार कर कार्यवाही की अनुशंसा की थी, लेकिन इस फाइल को भी दबाकर रख दिया गया।

सफारी को बना दिया था ‘प्रजनन केंद्र’

दरअसल जंगल सफारी में ‘सिंहनी’ वसुधा ने 6 जून 2018 को चार शावकों को जन्म दिया। तब संचालक, जंगल सफारी ने डॉ. राकेश वर्मा को वसुधा को भविष्य में ‘सिंह’ से समागम हेतु छोड़े जाने के लिए समस्त स्टाफ के सामने मना किया था। तब संचालक ने कहा था जंगल सफारी “प्रजनन केंद्र” नहीं है। बावजूद इसके ठीक एक माह बाद डॉ वर्मा ने 6 जुलाई से 10 जुलाई 2018 तक वसुधा को वासु नामक ‘सिंह’ के साथ रखा। जिससे वह पुनः गर्भवती हो गई और बाद में चार शावकों को और जन्म दिया जो मर गए। इससे पहले जन्मे चार शावकों में से दो को छोड़कर बाकी सब मर गए।

नियम के मुताबिक अनुसूची एक के वन्य प्राणी को किसी वरिष्ठ कार्यालय के आदेश के बिना जू में ना तो एक साथ रखा जा सकता है और ना ही जू क्षेत्र से बाहर रखा जा सकता है। मगर डॉ राकेश वर्मा ने जंगल सफारी को प्रजनन केंद्र की तरह चलाया। इस संबंध में जंगल सफारी प्रबंधन ने पहले जांच की, बाद में आरोप पत्र बना कर कार्यवाही के लिए मुख्यालय भेज दिया।

मामले में इस तरह की कूटरचना हुई..

डॉक्टर वर्मा 20 अगस्त 2018 से 4 सितंबर तक कुल 16 दिवस का अर्जित अवकाश लेकर छुट्टी पर चले गए थे, परंतु वापस आने के बाद 26 अगस्त और 31 अगस्त की सिंहनी वसुधा की डेली रिपोर्ट में प्रिस्क्रिप्शन और गर्भधारण की संभावनाओं को लिखा, जबकि उस अवधि में डॉक्टर वर्मा अर्जित अवकाश पर थे। बाद में दस्तखत पर सफेदा लगा दिया। इस संबंध में रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि अर्जित अवकाश में रहते हुए डॉक्टर वर्मा द्वारा महत्वपूर्ण शासकीय अभिलेख में इंद्राज किया जाना डॉक्टर वर्मा की कूट रचना है, वरिष्ठ कार्यालय को दिग्भ्रमित करने का प्रयास है।

PCCF में लंबित है आरोप पत्र

संचालक जंगल सफारी ने डॉक्टर राकेश वर्मा के विरुद्ध आरोप पत्र बनाकर मुख्यालय भेजा, जिसमें उल्लेख है कि 20 अगस्त 2018 से 4 सितंबर के दैनिक रिपोर्ट में अपने स्वयं के हस्ताक्षर पर कूट रचना कर अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, सफेदा लगाकर शासन के साथ धोखा करने का कुकृत्य किया। आरोप पत्र मुख्यालय को भेजा गया था जिसे बार-बार सुधारने के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) कार्यालय, संचालक, जंगल सफारी को वापस भेज देता था। अंत में अप्रैल 2023 को पुनरक्षित आरोप पत्र भेजा गया जो कि जानकारी के अनुसार प्रधान मुख्य वन संरक्षक(वन्य प्राणी) के यहां अटका हुआ है।

डॉक्टर की चलती थी मनमर्जी

जांच रिपोर्ट में लिखा गया है कि डॉ राकेश वर्मा नंदन वन जू एंड सफारी में अपनी मर्जी से समस्त कार्य संपन्न करते रहे हैं, जबकि वह किसी भी कार्य को करने के लिए सक्षम (अधिकृत) नहीं थे। जांच रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि डॉक्टर वर्मा सैंपल का परीक्षण करने के लिए ऐसे संस्थानों को भेज देते थे, जहां परीक्षण की सुविधा भी नहीं होती थी। वन्य प्राणी ‘सिंह’ अनुसूची एक का वन्यप्राणी है। अनुसूची एक के वन्य प्राणी को किसी वरिष्ठ कार्यालय के आदेश के बिना किसी भी अंग का नमूना लेकर किसी भी संस्थान में परीक्षण हेतु नहीं भेजा जा सकता है।

अधिकारियों की मांग के बावजूद नहीं हटाए गए डॉ वर्मा

मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) एव क्षेत्र संचालक उदंती सीता नदी टाइगर रिज़र्व ने भी 14 जनवरी 2019 डॉ वर्मा पर अनुशासत्मक कार्यवाही करते हुए जंगल सफारी से हटाने का पत्र लिखा था, मगर कार्यवाही नहीं हुई।

वेटनरी से वन विभाग में कराया संविलियन

गौरतलब है कि डॉ राकेश वर्मा पहले वेटनरी विभाग में कार्यरत थे परंतु बाद में उन्होंने अपना संविलियन वन विभाग में करा लिया। तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) ने 15 नवंबर 2018 को डॉ राकेश वर्मा के संविलियन को निरस्त करते हुए अनुशासत्मक कार्यवाही करते हुए उन्हें मूल विभाग में वापस करने के लिए शासन को अनुरोध किया था, परंतु उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस तरह वन विभाग में दोषी अधिकारियों को संरक्षण देकर मुख्यालय के अधिकारियों ने अपनी मनमानी की है। चाहे वन भैंसे का मामला हो या फिर चौसिंगा की मौत का। ख़बरें प्रकाश में आती हैं, जांच में गड़बड़ी उजागर होती है, कार्रवाई की अनुशंसा भी होती है, मगर मुख्यालय में बैठे अधिकारी पहल करने की बजाय फाइल दबाकर बैठ जाते हैं। अब देखना यह है कि जंगल सफारी और चौसिंगा की मौत के मामले में की गई कूटरचना में भी ‘अरण्य भवन’ कोई कार्यवाही करता है या फाइल यूं ही घूमती रहेगी।