गौरेला पेंड्रा। प्रदेश में धान की खरीदी 1 नवंबर से जारी है जो 31 जनवरी तक चलेगा। धान खरीदी की अंतिम तिथि नजदीक आते ही खरीदी केंद्रों में धान की बंपर आवक हो रही है जिससे खरीदी केंद्रों में अव्यवस्था का आलम है। बिलासपुर संभाग के गौरेला-पेंड्रा मरवारी क्षेत्र में हमालों की भारी कमी हो रही जिसके चलते धान बेचने आए किसानों से खरीदी केंद्रों में कर्मचारियों द्वारा हमालों जैसा काम कराया जा रहा है।

ताजा मामला मरवाही के दानीकुंडी, के बंसीताल गांव स्थित खरीदी केंद्र का है जहां पर किसानो से उनके द्वारा लाए गए धान की तुलाई , बोरा सिलाई, बोरा जमाने, और छल्ली लगवाने का काम कराया जा रहा है। जबकि इन सब कार्यों के लिए ₹9 प्रति क्विंटल की दर से शासन से सहकारी समितियां को भुगतान किया जा रहा है पर समिति के जिम्मेदार अधिकारी किसानों द्वारा स्वेक्षा से किया गया काम बताकर पूरे मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं।

दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार किसानों का धान खरीदने एवं उसकी व्यवस्था बनाने के लिए सहकारी समितियां को ₹11 प्रति क्विंटल की दर से भुगतान व्यय के रूप में करती है जिसमें सहकारी समितियां को बरसात से बचने के लिए त्रिपाल रस्सी के साथ-साथ चौकीदारी, और किसानों के द्वारा धान खरीदी केंद्र में लाए गए धान के बोरे भर कर देने के बाद से धान को तौलने (तौलाई) बोरा जमाने, बोरा सिलाई और छल्ली लगाने का काम सम्मिलित है पर जिले के धान खरीदी केंद्रों में सहकारी समितियां और उनके प्रबंधक शासन द्वारा मिलने वाले इन पैसे को हजम कर जाते हैं।

जब किसान अपना धान लेकर समिति में पहुंचता है तो किसानों के मजदूरों से ही खरीदी केंद्र प्रभारी धान की तूलाई से लेकर छल्ली लगाने तक का काम करवा लेते है,खरीदी केंद्र में पहुंचे किसानो का कहना हैं कि वह धान बेचने के लिए 8 से 12 मजदूर तक लेकर आते हैं जिन्हें ₹200 प्रतिदिन की दर से भुगतान भी किसान ही करता है और यही मजदूर सारा काम करते हैं। समिति के मजदूर तो सिर्फ खाली बोरा देने का ही काम करते हैं इस तरह प्रति किसान लगभग 2 से ₹3000 हजार रुपए प्रतिदिन की दर से सिर्फ अपने मजदूरों का ही भुगतान करता है जबकि इस कार्य का भुगतान समिति को करना होता है।