रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि देश मे सिर्फ चार ही जातियां होनी चाहिए और ये हैं – गरीब , किसान , महिला और युवा । निश्चित रूप से , प्रधानमंत्री का यह कथन स्वागतयोग्य है लेकिन जातियों का यह वर्गीकरण अस्तित्व में आ गया तो हमारा भारत सोने की ही नही हीरे की चिड़िया बन जायेगा ।

जहां तक देश की मौजूदा राजनीति की दशा और दिशा प्रश्न है , यह असंभव लग रहा है । देश की अधिकांश जनता प्रधानमंत्री के जाति वर्गीकरण से सहमत हो सकती है लेकिन क्या राजनेता इसे मानने के लिए तैयार हो सकेंगे ? यहां तक कि प्रधानमंत्री की पार्टी भाजपा को भी यह बात नही सुहायेगी । भाजपा के विरोधी दल प्रत्यक्ष रूप से इसका विरोध नही करेंगे क्योंकि यह वर्गीकरण प्रधानमंत्री ने किया है लेकिन सदियों से चली आ रही जाति व्यवस्था को ही मान्यता देंगे और उसी पर चलेंगे ।

सभी राजनीतिक दल पुरानी वर्ण व्यवस्था ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र के अलावा हर राज्य मे बसी तमाम उपजातियों को लेकर चुनावी गणित अपनाते हैं । इसी जाति – गणित के आधार पर टिकट बांटते हैं , मंत्री बनाते हैं , मुख्यमंत्री बनाते हैं । इतना ही नही , तमाम पार्टियां अपने संगठन का ढांचा भी जातियों के संख्या – बल केआधार पर ही खड़ा करते हैं । मौजूदा व्यवस्था और नेताओं की मनःस्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री का जाति फार्मूला उन लोगों के वोट कमाने का एक जरिया ही लगता है जिन्हें उन्होंने नये जाति – वर्गीकरण में शामिल किया है । कहने का तात्पर्य यह है कि प्रधानमंत्री किसान , गरीब , महिला और युवा वर्ग के वोट को भाजपा की ओर आकर्षित करना चाहते हैं ।

अब यदि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी भाजपा वास्तव में किसान ,गरीब , महिला एवं युवा वाली जाति व्यवस्था को मानने के लिए तैयार हैं तो उन्हें कई स्तर पर समझौते करने पड़ेंगे ।

इससे पहले पार्टी को निम्न सवालों का जवाब देना होगा
– क्या भाजपा को यह मंजूर होगा कि चुनावों में टिकट उसी को मिले जो योग्य हो , जाति बहुल का नही ?
-क्या भाजपा को यह स्वीकार होगा कि केंद्र और राज्य के मंत्री एवं मुख्यमंत्री का चयन जाति के आधार पर नही बल्कि काबिलियत के स्तर पर हो ?
– क्या मनोनीत किये जाने वाले पदों पर किसी का चयन जाति – विशेष को खुश करने के लिए नही होगा ?

ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब राजनीतिज्ञों के पास नही है । ऐसी स्थिति मे, जाति को लेकर प्रधानमंत्री का विचार भले बहुत अच्छा हो लेकिन आज की तारीख में कतई व्यावहारिक नही है । ऐसा नही है कि स्वयं प्रधानमंत्री इस सच्चाई से अनभिज्ञ हैं लेकिन वे भी वोटों की ही राजनीति करने को विवश हैं । उन्हें और उनकी पार्टी को किसानों , गरीबों , महिलाओं और युवाओं के वोट चाहिए क्योंकि आज सबसे बड़ा वोट – बैंक इन्हीं चार नव – जातियों का है । प्रधानमंत्री के यह लुभावना जाति – वर्गीकरण आज की राजनीति में महज चुनावी प्रलोभन ही है ।

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