श्याम वेताल
इसमे तनिक भी संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में बड़े पैमाने पर बड़े -बड़े लोगों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है लेकिन यह भी सच्चाई है कि यह अंकुश सिर्फ उन्ही पर लग पाया है जो सत्ता में बैठे थे या सत्ता के करीबी थे। कानून के हाथ अभी तक मात्र ऐसे ही सफेदपोशों तक पहुंच सके हैं जो अपने भ्र्ष्ट आचरण से करोडो – अरबों रुपये अपनी तिजोरियां में भर रहे थे क्योकि सरकार के कायदे – कानून उनकी जेब में थे।

नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी प्राथमिकताओं में भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था। वे अपने इस संकल्प को पूरा करने में जुटे हुए हैं लेकिन दिल्ली अभी बहुत दूर है। ई डी और आई टी विभाग के जरिये जो लोग अभी तक कानून की ज़द में आये हैं उनकी संख्या बहुत कम है इसलिए मोदी जी को बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है।


प्रधानमंत्री मोदी ने अभी हाल में ही संसद में कहा था कि देश को लूटने नहीं दिया जायेगा और जो लूटा है उसे लौटाना पड़ेगा। मोदी जी का पहला लक्ष्य ऐसे ही भ्रष्ट आचरण वाले बड़े लोग थे जो देश की बड़ी संपत्ति को लूट रहे थे और जिन पर हाथ डालने से सरकार का दबदबा बनता हो ,सनसनीखेज़ ख़बर बनती हो और जिसकी पूरे देश में चर्चा हो।


….. लेकिन मोदी जी भ्रष्टाचार सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं है। भ्रष्टाचार ऊपर है तो नीचे भी है और ऊपर और नीचे के बीच में भी है। छोटे -छोटे सरकारी दफ्तरों तक में भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है और उसे ऐसे नज़रअंदाज़ किया जाता है मानो वह शिष्टाचार हो। ये सरकारी दफ्तर पुलिस थाना भी हो सकता है , नगर निगम का कार्यालय भी हो सकता है , सरकारी अस्पताल या आम जनता की आवश्यकता का कोई भी सरकारी महकमा हो सकता है। भ्रष्टाचार इन सभी दफ्तरों में कुंडली मार कर बरसों से बैठा हुआ है और न जाने कब तक बैठा रहेगा ? सिस्टम को कितना भी ऑनलाइन कर दिया जाय , भ्रष्टाचार के आचार्य एवं पंडित काली – कमाई का रास्ता बना ही लेते हैं।


वास्तव में देखा जाय तो आम जनता को इस खबर से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि अमुक नेता के यहाँ छापे में 100 करोड़ या हज़ार करोड़ मिले। यह खबर आम आदमी के लिए मात्र सनसनी है या चर्चा का विषय हो सकती है। चर्चा भी भी सिर्फ दो तीन दिनों की , चौथे दिन तो वह भूल जायेगा और चर्चाएं भी ख़त्म हो जाएँगी।

इसके अलावा , क्या मोदी जी राजनीति में भ्रष्टाचार को ख़त्म कर पाएंगे ? चुनाव कितने महंगे हो गए हैं , और दिन प्रति दिन महंगे ही होते जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने खर्च सीमा भले तय कर रखी हो , कोई प्रत्याशी उसका पालन करता है ? जो प्रत्याशी चुनाव में जितना खर्च करता है जीत जाने के बाद खर्च से 50 गुना ज्यादा कमाने की इच्छा रखता है और उसे पूरा करने की पूरी कोशिश भी करता है। क्या महात्मा बनकर ये संभव है ? कदाचित नहीं। वह बेईमानी करेगा , भ्रष्टाचार करेगा। मोदी जी ! आपसे तो यह संभव है लेकिन औरों का क्या ? आज राजनीति व्यापार बन चुका है और यह मामूली व्यापार नहीं बल्कि हज़ार परसेंट मुनाफ़े का व्यापार।

अब बड़ा सवाल है कि क्या मोदी जी अपने प्रधानमंत्री रहते भ्रष्टाचार के पेड़ के तने और जड़ पर प्रहार कर इसका उन्मूलन कर सकेंगे क्योंकि अभी तक आपने इस पेड़ ऊपरी हिस्से के सड़ रहे फलों को ही साफ किया है , तने और जड़ को हाथ भी नहीं लगाया है। आपका ध्यान भी उस ओर ही है जिससे नाम हो , प्रसिद्धि मिले और वाहवाही हासिल हो क्योंकि इससे राजनीति में बहुत फायदा होता है।

Hindi News के लिए जुड़ें हमारे साथ हमारे
फेसबुक, ट्विटरयूट्यूब, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, टेलीग्रामकू
 पर