रायपुर। न्‍यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर देश के नए लोकपाल बनाये गए हैं। राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 6 सदस्‍यों के साथ उनकी नियुक्ति की है। न्‍यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्‍वामी, न्‍यायाधीश संजय यादव और न्‍यायाधीश रितुराज अवस्‍थी लोकपाल के न्‍यायिक सदस्‍य होंगे। वहीं लोकपाल के अन्‍य सदस्‍य सुशील चंद्र, पंकज कुमार और अजय तिर्की हैं।

रायपुर के कलेक्टर रहे हैं अजय तिर्की

अविभाजित मप्र के IAS अफसर और केंद्र सरकार में सचिव रहे अजय तिर्की भी नवगठित लोकपाल में सदस्य नियुक्त किये गए हैं। वे छत्तीसगढ़ राज्य बनने से ठीक पहले रायपुर के आखिरी कलेक्टर के बतौर पदस्थ रहे हैं। छह सदस्यीय लोकपाल में जस्टिस एएम खानविलकर अध्यक्ष, तीन सदस्य विधिवेत्ता व तीन अधिकारियों को सदस्य बनाया गया है। 1987 बैच के आईएएस तिर्की केंद्र में सचिव भी रहे हैं।

टिर्की 2015 से 2017 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल के प्रधान सचिव थे और उन्हें अपने गृह कैडर नियुक्तियों में चिकित्सा शिक्षा, श्रम और रोजगार और ग्रामीण विकास विभागों को संभालने का व्यापक अनुभव है। वह मध्य प्रदेश के राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) के प्रबंध निदेशक (एमडी) रहे हैं। इससे पहले वे सीधी, होशंगाबाद और रायपुर के जिला कलेक्टर रह चुके हैं

अन्ना हजारे ने छेड़ी थी लोकपाल के लिए मुहिम

साल 2011 का वह जनआंदोलन हर किसी के जहन में है, जिसकी अगुवाई सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने की थी। अन्ना हजारे की अगुवाई वाली विरोध प्रदर्शन में ताकतवर पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक सिस्टम की मांग की गई थी। नतीजतन, ये संस्था 2013 में वजूद में आई, लेकिन भारत के पहले लोकपाल की नियुक्ति में 6 साल और लग गए।

लोकपाल का एक संस्था के तौर पर ये है काम-काज

लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य

लोकपाल एक ऐसी संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष के अलावा और कई सदस्य होता हैं। लोकपाल के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर दूसरे पूर्व जज में से कोई हो सकता है। अध्यक्ष के अलावा 8 सदस्यों की भी व्यवस्था है।

इन 8 सदस्यों में से 4 न्यायिक सदस्य होते हैं और 4 ऐसे लोग होते हैं जिनकी सत्यनिष्ठा पर कोई सवाल न हो। इसके अलावा इन चारों सदस्यों के पास भ्रष्टाचार-विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त (बीमा और बैंकिंग), कानून और प्रबंधन में कम से कम 25 बरस की विशेषज्ञता का प्रावधान है।

लोकपाल कैसे काम करता है?

जब लोकपाल कानून लागू किया गया था, तो इसे भ्रष्टाचार से लड़ने वाले एक अहम संस्थान के तौर पर देखा गया था। इसकी वजह ये थी कि लोकपाल को प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार के मंत्री, सांसदों के साथ-साथ केंद्र सरकार के ग्रुप ए, बी, सी और डी के अधिकारियों के खिलाफ भी शिकायतों देखने का अधिकार था।

इस कानून के तहत लोकपाल के पास किसी भी बोर्ड, निगम, सोसायटी, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय के अध्यक्षों, सदस्यों, अधिकारियों और निदेशकों के खिलाफ शिकायतों को देखने का अधिकार भी था। चाहें वो संस्था संसद के किसी कानून से स्थापित हुई हो या फिर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से फंड होती हो, लोकपास किसी के भी खिलाफ जांच कर सकती थी।

जांच में एजेंसी की ले सकता है मदद

लोकपाल शुरुआती जांच खुद करता है, और फिर वह चाहे तो सीबीआई या किसी और दूसरी एजेंसी की मदद ले सकता है। साथ ही, अगर लोकपाल को केंद्र सरकार के अधिकारियों के संबंध में भ्रष्टाचार की शिकायत मिलती है तो वह केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी को भेज सकता है।

2019 के बाद लोकपाल ने कितने मामले निपटाए

2019-20 में लोकपाल को भ्रष्टाचार की कुल 1,427 शिकायतें मिलीं। 1,427 शिकायतों में से केवल 4 शिकायतें केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को लेकर थीं, जबकि 6 शिकायतों में राज्य के मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इन 1,427 शिकायतों में से 1,217 शिकायतों को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के कारण खारिज कर दिया गया और केवल 34 मामलों में संबंधित अधिकारियों को जरूरी कार्रवाई करने का डायरेक्शन दिया गया।

2020 -21 में शिकायतों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई और सिर्फ 110 भ्रष्टाचार की शिकायतें दर्ज की गईं। इन 110 शिकायतों में से 4 सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित था। इसके अलावा बाकी केंद्र सरकार के अधिकारियों और निगमों को लेकर थी। शुरुआती जांच के बाद 94 शिकायतें बंद कर दी गईं और बाकी के मामलों को जांच और कार्रवाई के लिए अधिकारियों को भेज दिया गया।

अगले वर्ष केवल 30 शिकायतें हुई जमा..!

वर्ष 2021-22 में दिलचस्प बात यह थी कि इस दौरान भ्रष्टाचार की शिकायतों की संख्या घटकर मात्र 30 रह गई। 2021-22 के दौरान किसी सांसद या मंत्री के खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई, सारी शिकायतें अफसरों के खिलाफ थीं। इस तरह अगर देखें तो 2016 में एक भ्रष्टाचार विरोधी संस्थान तो बन गया। मगर दायर किए गए मामलों की घटती संख्या से भी पता चलता है कि इस संस्थान में लोगों का भरोसा अब तक कायम नहीं हो सका है।