नागपुर। माओवादी लिंक मामले में हाई कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस विनय जोशी और वाल्मिकी एसए मेनेजेस ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बरी कर दिया है। इसी के साथ ही उनकी उम्रकैद की सजा को भी रद्द कर दिया गया है।

आज बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत माओवादी समूहों के साथ संबंध का आरोप लगाने वाले एक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य की सजा को पलट दिया है।

बता दें जीएन साईबाबा और उनके सह-आरोपियों को 2014 में माओवादी गुटों से जुड़े होने और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। साईबाबा और अन्य लोगों को महाराष्ट्र में गढ़चिरोली पुलिस ने 2013 से 2014 के बीच गिरफ्तार किया था। उन सब पर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) और उसके सहयोगी संगठन रेवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य होने का आरोप था।

पुलिस ने दावा किया था कि साईबाबा के घर से कई दस्तावेज, एक हार्ड डिस्क और कुछ पेन ड्राइव बरामद हुई थीं, जिनमें माओवादी साहित्य, चिट्ठियां, रिसाले और सीपीआई (माओवादी) की बैठकों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग थी।

साईबाबा और महेश करीमन तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, पांडु पोरा नारोते और प्रशांत राही को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। विजय तिर्की को 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई।

लंबे समय से बीमार हैं साईबाबा

54 साल के साईबाबा 80 प्रतिशत विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर ही कहीं जा पाते हैं। कुछ मीडिया रिपोर्टों में उन्हें 99 प्रतिशत विकलांग बताया गया है। उनके परिवार ने बार-बार अदालत से अपील की कि स्वास्थ्य आधार पर उन्हें जमानत दे दी जाए।

मई 2015 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे भी दी, लेकिन जल्द ही उन्हें फिर से जेल भेज दिया गया। सितंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी और तब वो जेल से निकल पाए और मुकदमा चलता रहा।

पूर्व में भी हुए थे बरी

अक्टूबर, 2022 में उन्हें बरी करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि उनके मामले में कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं हुआ है. दरअसल उन्हें ‘अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) ऐक्ट’ (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था.

सबूत देने में विफल रहा अभियोजन पक्ष

जस्टिस विनय जोशी और वाल्मिकी एसए मेनेजेस की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ सबूत जुटाने में विफल रहा। पीठ ने आगे कहा कि कानून के अनिवार्य प्रावधानों के उल्लंघन के बावजूद गढ़चिरौली सत्र अदालत द्वारा मुकदमा चलाया जाना न्याय की विफलता के समान है। पीठ ने कहा कि सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अमान्य मंजूरी के कारण पूरा अभियोजन मामला खराब हो गया था। अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के खिलाफ कोई कानूनी जब्ती या कोई आपत्तिजनक सामग्री स्थापित करने में विफल रहा है।

कौन हैं जीएन साईं बाबा

जीएन साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक थे, जब तक कि जिस कॉलेज, राम लाल आनंद कॉलेज, में उन्होंने काम किया, उसने पिछले साल अपनी सेवाएं समाप्त नहीं कर दीं।

लड़नी पड़ी लंबी लड़ाई…

वह 2003 में कॉलेज में भर्ती हुए और अंग्रेजी विभाग में सहायक प्रोफेसर बने। माओवादी संबंधों के संदेह में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद उन्हें 2014 में निलंबित कर दिया गया था।

2014 में उनके निलंबन के बाद से, उनके परिवार को उनके पद के लिए केवल आधा वेतन मिला। अंततः 31 मार्च, 2021 को कॉलेज के प्रिंसिपल ने उनकी सेवाओं को “तत्काल प्रभाव से” समाप्त करने के लिए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने उन्हें और एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र सहित अन्य को कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था।