नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय और 10 प्रभावित राज्यों की “व्यापक” समीक्षा के बाद, विशेष एसआरई वित्त पोषण योजना के तहत आने वाले देश के वामपंथी (नक्सल) उग्रवाद प्रभावित जिलों की संख्या 72 से घटकर 58 रह गई है। आधिकारिक सूत्रों और रिकॉर्ड से यह जानकारी दी गई है।

वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से संबंधित गृह मंत्रालय के विभाग ने इस सप्ताह की शुरुआत में इन राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को एक पत्र जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि नया वर्गीकरण एक अप्रैल को नया वित्त वर्ष शुरू होने से प्रभावी होगा।

दो साल पहले 72 जिले थे प्रभावित

गृह मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि मंत्रालय और राज्य सुरक्षा और विकास से संबंधित कई कदम उठा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप वामपंथी परिदृश्य में “उल्लेखनीय सुधार” हुआ है। गृह मंत्रालय ने सुरक्षा संबंधित व्यय (एसआरई) योजना के तहत वामपंथी या माओवादी हिंसा प्रभावित जिलों की आखिरी बार 2021 में समीक्षा की थी, और उस समय, 10 राज्यों में ऐसे 72 जिले थे। तब केंद्र सरकार ने जानकारी दी थी कि ऐसे सबसे अधिक 16 जिले झारखंड में हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में 14, बिहार एवं ओडिशा में 10-10 जिले, तेलंगाना में छह, आंध्र प्रदेश में पांच, केरल और मध्य प्रदेश में तीन-तीन जिले नक्सल प्रभावित रहे।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार ताजा समीक्षा के बाद यह संख्या घटकर 58 रह गई है। उन्होंने कहा कि इन जिलों को वामपंथी उग्रवाद से “समग्र रूप से” निपटने के लिए राष्ट्रीय नीति व कार्य योजना के अंतर्गत एसआरई योजना के तहत विभिन्न अनुदान प्रदान किए जाते हैं।

इन जिलों को दो व्यापक शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है – वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित और लीगेसी एंड थ्रस्ट जिले (एलटी जिले)।

नए वर्गीकरण के अनुसार कुल 38 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में से सबसे अधिक संख्या छत्तीसगढ़ (15) में है, जिसके बाद ओडिशा (7), झारखंड (5), मध्य प्रदेश (3), केरल, तेलंगाना और महाराष्ट्र दो-दो और पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश एक-एक हैं।

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