बिलासपुर। पांच साल पहले एक बैंक कैशियर की हत्या के मामले में निचली अदालत में दोषी पत्नी और उसके प्रेमी की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी है। अदालत ने मृतक की 6 साल की बेटी के बयान को विश्वसनीय माना है।

पत्नी ने ही दी थी मौत की सूचना

मिली जानकारी के मुताबिक बाराद्वार के स्टेट बैंक में कैशियर राम प्रकाश की पत्नी साक्षी ने पुलिस में 22 सितंबर 2018 को सूचना दी कि वह दिन में वह अपने 4 साल की बेटी के साथ बाराद्वार में ही अपने मायके आ गई थी। शाम को जब उसने पति ने बार-बार रिंग करने के बावजूद फोन नहीं उठाया, तब घबराकर वह रात 11 बजे वापस ससुराल पहुंची। घर का दरवाजा बाहर से बंद था और भीतर पति रामप्रकाश की लाश पड़ी थी।

जांच में प्रेम-प्रसंग आया सामने

पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू की। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि रामप्रकाश की हत्या की गई है। उसका गला दबाया गया है तथा धारदार हथियार से हमला किया गया है। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर जांच की और सेशन कोर्ट में केस डायरी पेश की। अभियोजन की ओर से बताया गया कि आरोपी साक्षी का दूसरे आरोपी कुलदीप साहू के साथ अवैध संबंध था। वह अक्सर साक्षी से मिलने के लिए उसके घर जाता था। राम प्रकाश को जब इस बारे में पता चला तो उसने कुलदीप को घर आने से मना कर दिया। इससे नाराज होकर उसकी पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की योजना बनाई। दोनों ने गला दबाकर तथा धारदार हथियार से हमला कर उसकी हत्या कर दी।

मासूम बच्ची ने दिया यह बयान…

इस मामले की अदालत में दो साल तक सुनवाई चली। इस दौरान मृतक की 6 साल की हो चुकी बेटी ने कोर्ट में बयान दिया कि जब मां उसे साथ लेकर मायके जाने के लिए निकली तो वह उसे बाहर छोड़कर वापस घर के भीतर गई। यह कहते हुए कि वह पानी लेकर आ रही है। जब काफी देर तक मां बाहर वापस नहीं आई तो उसने घर के भीतर जाकर देखा। वहां दोनों ने पिता को जमीन पर लिटाकर दबोच लिया था। पिता के दोनों पैरों को मां ने हाथों से दबा रखा था, जबकि कुलदीप गला दबा रहा था। वह घबरा गई तो मां ने डरा कर चुप कराया और उसे मायके में छोड़कर रिपोर्ट लिखाने चली गई।

ट्रायल कोर्ट ने सुनाई सजा..

ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के तहत दोनों आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने की।

‘बच्चे मन के सच्चे’

कोर्ट ने दोनों की सजा बरकरार रखी और कहा कि मासूम बच्चे मन के साफ होते हैं, उनसे बनावटी बयान नहीं दिलाए जा सकते। साक्ष्यों व बच्ची के बयान के आधार पर दी गई सजा में कोई खामी नहीं है।