समस्या
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राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में जिक्र तक नहीं

नई दिल्ली । देश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण संपन्न होने में कुछ दिन ही शेष है, दोनों प्रमुख दलों ने अपने-अपने घोषणा पत्र को संकल्प पत्र कहा है। जिसमें समृद्ध भारत, विकास, महिलाओं को आत्मनिर्भरता, युवा, किसान को घोषणा पत्र में प्रमुखता से स्थान दिया गया है लेकिन एक एैसा मुद्दा है जो मूलभूत सुविधाओं में पहली प्राथमिकता में होने के बाद भी किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में शुद्धपानी की उपलब्धता को स्थान ही नहीं दिया है।

गर्मी का मौसम आते ही पानी सोने जितना कीमती हो जाता है। दुनिया की कुल आबादी का 17% भारत में रहता है, मगर यहां दुनिया के सिर्फ 4% ताजे पानी के स्रोत मौजूद हैं। देश की 140 करोड़ आबादी में से 35 करोड़ लोगों को सुरक्षित पेयजल तक पहुंच नहीं है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि किसी नेता ने ये गंभीर मुद्दा नहीं उठाया है और न ही किसी राजनीतिक पार्टी अपने घोषणापत्र में इस समस्या का जिक्र तक किया है।

NITI आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश में हजारों लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ता है। बारिश पर भारत की निर्भरता इस समस्या को और बढ़ा देती है, क्योंकि मानसून का आना अब अनिश्चित हो गया है। जलवायु परिवर्तन से भी पानी की कमी की समस्या गंभीर हो रही है।

बेंगलुरु में दिखने लगा है जल संकट

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु बीते एक महीने से जल संकट से जूझ रहा है। यहां बारी-बारी से लोगों को टैंकर के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है। यहां पानी का स्‍तर पिछले 5 सालों में मार्च महीने में सबसे कम था। बेंगलुरु आईटी हब है। यहां गूगल जैसी कंपनियां हैं, यहां पहले से ही पानी की सप्लाई कम कर दी गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार बेंगलुरु के 14,700 बोरवेलों में से 6,997 सूख चुके हैं।

इंडस्ट्रियल राज्य जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कृषि प्रधान राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब में पानी का स्तर 10 साल के औसत से भी कम है। पिछले साल मानसून बहुत कमजोर रहा था। पिछले 100 सालों में अगस्त का महीना सबसे सूखा रहा था, ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त एल निनो मौसम पैटर्न हावी था. वहीं कई इलाकों में बारिश कम हुई थी, जबकि कुछ इलाकों में ज्यादा बारिश हुई थी। एक ऐसी समस्या जिससे देश के 35 करोड़ लोग प्रभावित मगर चुनाव से मुद्दा ही गायब, घोषणापत्रों में जिक्र तक नहीं

आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना ऐसे कैसे होगा पूरा

महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में गन्ना और धान जैसी ज्यादा पानी वाली फसलों को उगाया जाता है। पानी की ज्यादा जरूरत होने के बावजूद महाराष्ट्र देशभर का 22% गन्ना अकेला उगाता है, जबकि बिहार सिर्फ 4% ही उगा पाता है। इसी तरह, पंजाब में धान के खेतों को सींचने के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी का 80% भूजल स्रोतों से ही आता है। साथ ही विदेशों में ज्यादा पानी वाली फसलें निर्यात करने से भी देश का काफी मात्रा में पानी खर्च होता है।

मतलब है कि फसल को उगाने में जितना पानी लगता है, उतना ही पानी निर्यात के साथ देश से बाहर चला जाता है। अगर देश में पानी की कमी बनी रहती है, तो इससे उद्योग-धंधे और शहरीकरण भी प्रभावित होंगे, जो भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने को पूरा करने में बाधा डाल सकते हैं।

राजनीतिक दलों को ध्यान देना क्यों है जरूरी?

सरकार और राजनीतिक दलों के लिए भारत में जल संकट पर गंभीरता से ध्यान देना बेहद आवश्यक है क्योंकि पानी ही जीवन का आधार है। पानी की कमी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों में इच्छाशक्ति की कमी दिख रही है। पानी की कमी से लोगों की सेहत, कृषि और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। सामाजिक अशांति और विस्थापन हो सकता है। अगर इस समस्या को नहीं सुलझाया गया तो देश का आर्थिक विकास भी प्रभावित हो सकता है।

घोषणापत्र में राजनीतिक क्या-क्या ऐलान कर सकते थे?

देश में जल संकट से निपटने के लिए राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में बहुत से ऐलान कर सकते थे. जैसे नए जलाशय यानी कि डैम बनाने का ऐलान करना. बारिश के पानी को स्टोर करके उसे सही तरीके से इस्तेमाल करने पर जोर दे सकते थे। कम पानी वाली खेती की तकनीकें अपनाने पर जोर देने का वादा कर सकते थे। प्रदूषित पानी को साफ करके पुनः इस्तेमाल में लाने की संकल्प ले सकते थे। पानी की बर्बादी रोकने के लिए कोई ठोस फैसला लेने की बात कर सकते थे।

अगर राजनीतिक दल इन अहम बातों को अपने घोषणा पत्र में शामिल करते और इस ओर गंभीरता से ध्यान देते, तो भविष्य में जल संकट से निपटना आसान हो सकता है। जल संकट एक बहुत बड़ी चुनौती है लेकिन सरकार की ठोस इच्छाशक्ति और कोशिशों से इसका समाधान किया जा सकता है।

चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने का आग्रह

भारत सरकार के पूर्व सचिव शशि शेखर ने बीते महीने सभी राजनीतिक दलों से अपने चुनावी घोषणापत्र में ‘जल संकट’ का मुद्दा शामिल करने का आग्रह किया था. मुंबई में 21 मार्च को आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने ये आग्रह किया था।

शशि शेखर ने कहा था, महाराष्ट्र सूखे और पानी की कमी की समस्या से साल दर साल जूझ रहा है। इस संकट को लेकर सभी राजनीतिक दलों की जवाबदेही होनी चाहिए। हर विधायक और सांसद को इस बारे में काम करना चाहिए। महाराष्ट्र में 4000 बांध सूख चुके हैं, जिससे नदियां सूख गई हैं। जलाशयों में तो खरबों लीटर पानी जमा है लेकिन खेतों तक कितना पानी पहुंच रहा है? महाराष्ट्र में पहले कभी गन्ने की खेती नहीं होती थी, यह बिहार की फसल थी. गन्ना सूखे वाले इलाकों के लिए उपयुक्त नहीं है। किसानों को सूखा सहन करने वाली फसलों की खेती की ओर रुख करना चाहिए।

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