गोल्डमैन अवार्ड से सम्मानित आलोक शुक्ला एक दशक से लड़ रहे आदिवासियों के हक की लड़ाई
रायपुर। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला को इस साल का ग्रीन नोबल कहे जाने वाले प्रतिष्ठित ‘गोल्डमैन अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। यह अवार्ड दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को दिया जाता है। हसदेव अरण्य में पिछले एक दशक से आदिवासियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रहे आलोक शुक्ला और उनके साथियों के प्रतिरोध के कारण राज्य सरकार को इस भूभाग को लेमरु एलिफेंट रिजर्व घोषित करना पड़ा, जिसके कारण जंगल का एक बड़ा इलाका संरक्षित हो सका है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे इस संघर्ष की शुरुआत हुई, और कहा कि हसदेव को उजड़ने से बचाने का बड़ा संघर्ष अभी बाकी है :


सवाल : बतौर एक्टिविस्ट आपने शुरुआत कहां से की?
जवाब : मैं साइंस कॉलेज दुर्ग से जब पास आउट हुआ, तब उस समय शिवनाथ नदी के निजीकरण के मुद्दे पर एक आंदोलन काफी चल रहा था, नदी घाटी मोर्चा संगठन इस मुहिम में लगा हुआ था। तब नदी घाटी मोर्चा से जुड़ने का अवसर मुझे मिला, और छत्तीसगढ़ में नदियों के प्रदूषण और नदी के निजीकरण के खिलाफ संघर्ष में मैं जुड़ा। शुरुआती 2 साल जांजगीर में रहकर हसदेव नदी के प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष में जुड़ा रहा। उसके बाद स्पंज आयरन के प्रदूषण के खिलाफ किसानों के संघर्ष में रायपुर के पास के गांवों में हो रहे आंदोलन में इन फक्ट्रियों को रोकने की लड़ाइयों में शामिल रहा। 2008 के बाद वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर आदिवासी इलाकों में काम किया। 2010 में हम लोगों ने मिलकर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, प्रदेश के जनवादी संघर्षों का एक संगठन बनाया। हसदेव पहली बार मैं 2011 में गया। दादा हीरासिंह मरकाम जी और बी डी शर्मा जी के साथ, हीरसिंह मरकाम जी ने बुलाया कि यहां पर खदाने आ रही हैं, लोगों को जानकारी नहीं है, कानून का काम करो। जब देखा, इतना खूबसूरत जंगल खतम हो रहा, उजड़ रहा है और लोगों को कोई जानकारी नहीं है, तो लगा कि अगला पूरा समय हसदेव को बचाने के लिए देंगे, और तब से हसदेव के लिए मैंने काम करना शुरू किया।

सवाल : हसदेव को बचाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ रहा है ?
जवाब : देखिये निश्चित तौर पर यह लड़ाई एक तरफ कॉर्पोरेट के मुनाफे और लूट, और दूसरी तरफ लोगों के जीवन के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है। किसी भी कंपनी से लड़ना और सरकार से लड़ना कठिन है, और यहां तो कंपनी और सरकार एक साथ है। खदान राज्य सरकार की है और दुनिया के सबसे ताकतवर कॉर्पोरेट अडानी हैं, तो यह निश्चित तौर पर कठिन है। हर कोशिश होती है उस आंदोलन को तोड़ने के लिए, आपको खरीदने के लिए, डराना, धमकाना, लालच देना, फर्जी केस दर्ज कर देना, जो आपको एक मानसिक रूप से परेशान करने की कोशिशें होती हैं, वो सारी कोशिश हुई हमारे आंदोलन के साथ और हमारे ऊपर हुईं। चाहे वो केंद्रीय जांच एजेंसी हों, उसकी बात करें, वह सारी संकट हम झेलते आये हैं और अभी भी झेल रहे हैं, लेकिन हमारे सामने एक ही लक्ष्य है कि हसदेव जंगल बचना चाहिए, क्योंकि हसदेव इस मध्य भारत का सबसे समृद्ध साल का वन इलाका है। इस जंगल को पीढ़ियों से हसदेव के आदिवासी बचा कर रखे हुए हैं, जो विविधता से परिपूर्ण है। जिससे निकलने वाली हसदेव नदी ‘जीवनदायिनी’ नदी है, जिससे जांजगीर इलाके में 4 लाख हेक्टेयर इलाके में सिंचाई होती है। जो जंगल हाथियों का रहवास है, हम देख रहे हैं मानव-हाथी संघर्ष इतना व्यापक हो गया है कि 5 सालों में 200 से ज्यादा लोग और 40 से ज्यादा हाथी मारे जा चुके हैं। ऐसी परिस्थिति में ऐसे जंगल के विनाश की कीमत शायद हम लोग कभी नहीं चुका पाएंगे। उस जंगल को बचाने का लक्ष्य दिखता है, तो ये संकट और ये चुनौतियां छोटी लगने लगती हैं।

सवाल : हसदेव आंदोलन का स्वरुप क्या है, लोगों को कैसे तैयार कर पाए आप ?
जवाब : कोई भी व्यक्ति अपने घर अपने गांव को नहीं छोड़ सकता। वो मजबूरी में छोड़ता है, जिस जंगल में पीढ़ियां बीत गई हैं, वो कैसे उस जंगल को और गांव को छोड़ देगा। यह लोगों के मन में ही था और लोग विरोध कर ही रहे थे। हमने जाकर लोगों को संगठित करने का काम किया। हमने लोगों को कानून की जानकारी दे दी, ये लोगों को बताया कि इस देश का संविधान उनके साथ है और जब तक वे नहीं चाहेंगे, उनकी ग्रामसभा नहीं चाहेगी, क्योंकि पांचवीं अनुसूची का इलाका है, और ग्रामसभा नहीं चाहेगी, तो कोई आपका जल-जंगल-जमीन नहीं ले सकता। संविधान के अधिकारों को लोगों तक पहुंचाना, पेसा वन अधिकार के तहत ग्राम सभाओं के अधिकारों को स्थापित करना और सबसे महत्वपूर्ण कि ये स्थानीय स्वायत्त इकाई ग्राम सभाओं के ‘हमारे गांव में हमारे राज’ की जो बात है, ये संवैधानिक लड़ाई है, ग्रामसभाओं की लड़ाई है। तो उसको केंद्र बिंदु बनाकर लोकतांत्रिक तरीके से, शांतिपूर्ण तरीके से इस संघर्ष को आगे बढ़ाया है और सामूहिक नेतृत्व के तरीके से, और जो आज भी जारी है। अभी भी देखें कि लेमरू हाथी रिजर्व तो बना है लेकिन अडानी के मुनाफे के लिए 3 कोयला खदानों को बहाल रखा गया है, जिसके खिलाफ हमारा अभी भी आंदोलन जारी है। हसदेव में 800 दिनों से लोग धरने पर बैठे हैं और अभी भी चिंता है कि चुनाव के बाद से वहां पेड़ कटाई की प्रोसेस शुरू की जाएगी। हालांकि निश्चित तौर पर 17 कोयला खदानों का एक बड़ा हिस्सा बचा है, लोगों के संघर्ष से, जो खुशी की बात है, जो दुनिया में अपना एक उदहारण है, और जहां पर अभी संकट है, उसको बचाने की पूरी ताकत से हम लोग कोशिश कर रहे हैं।

सवाल : हसदेव नाम है एक जंगल का, इसका क्या स्वरुप है, कितना क्षेत्र आता है, कितना बड़ा इलाका है यह ?
जवाब : देखिये जो हसदेव का जंगल है वो 1879 वर्गकिलोमीटर का इलाका है। और इसमें छत्तीसगढ़ का 9%, लगभग 5600 मिलियन टन कोयले का भंडार है, जिसमें 23 कोल ब्लॉक आइडेंटिफाई हैं। 2012 में जब मैं हसदेव में काम शुरू किया, उससे पहले परसा ईस्ट केते बासन (PKEB) जो राजस्थान की खदान है, वह शुरू हो चुकी थी, 22 अन्य COAL BLOCK हैं, जिनमें खनन नहीं हुआ है, उसके बगल में परसा कोल ब्लॉक है, जहां पर फर्जी तरीके से ग्राम सभाओं की स्वीकृति हासिल करके खनन को चालू करने की कोशिश हो रही है, लेकिन उसमें कंपनी अभी तक सफल नहीं हो पाई है, समुदाय के संघर्ष के कारण। हम लोग जब पैदल चल रहे थे 2 अक्टूबर से 14 अक्टूबर 2021 के दरम्यान, 7 अक्टूबर को राज्य सरकार ने लेमरू हाथी रिजर्व को नोटिफाई किया, इससे 1995 वर्ग किलोमीटर एरिया में 23 कोल ब्लॉक्स में से 17 कोल ब्लॉक उस लेमरू हाथी रजर्व के अंदर आ गए। जिसके कारण जो पतुरिया के आबंटित खदान हैं, मदनपुर साउथ आबंटित खदान है, उसको रोक दिया गया। नए जो कोल ब्लॉक हैं उनकी नीलामी हो रही थी, उसे रोक दिया गया। तो कहीं न कहीं एक बड़ा हिस्सा उससे संरक्षित तो हुआ है।

सवाल : हसदेव क्षेत्र में किन जाति समुदायों के लोग निवास करते हैं और क्या उनमें संघर्ष का माद्दा अभी भी है ?
जवाब : हसदेव का जो एरिया है, वहां गोंड आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं, आदिवासी बाहुल्य इलाका है, वहां की 90% आबादी आदिवासी है। पिछले दिनों ‘भारतीय वन्य जीव संस्थान’ ने एक अध्ययन किया था, उसकी रिपोर्ट में उल्लेख है कि वहां रहने वाले जो लोग हैं, उनकी 60% आय जंगल से होती है। एक तरह से जंगल उनकी समृद्ध आजीविका का केंद्र है। और यदि वह चला गया तो कुछ बचेगा ही नहीं। जहां वे पैदा हुए हैं, कैसे उस घर को, उस गांव को वो छोड़ सकेंगे संघर्ष की प्रेरणा तो उस समुदाय की अपनी है, उस गांव को, संस्कृति को, अपनी आजीविका को बचाने का संघर्ष तो उनका अपना है।
सवाल : क्या लगता है आपको, अभी कितना संघर्ष बाकी है ?
जवाब : दााउबड़ा संघर्ष है, क्योंकि जब तक हसदेव की सभी खदानें निरस्त नहीं होंगी, तब तक हसदेव को बचाने की लड़ाई जारी रहेगी। और सिर्फ हसदेव ही नहीं, हम तो ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ से भी जुड़े हैं। इस प्रदेश के अंदर जहां भी अन्याय है, समुदाय के साथ, जो सोशल जस्टिस का सवाल है, जो पर्यावरण विनाश का सवाल है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के दौर में आज के समय हमारे प्राकृतिक संसाधनों को बचाना जरुरी है, तभी हम जलवायु परिवर्तन के संकट से बच सकते हैं। जहां पर भी अन्याय हो रहा है, जल-जंगल-जमीन को छीना जा रहा है, दमन हो रहा है, उन जगहों पर संघर्ष में हम अपनी भूमिका देखते हैं, और हम समुदाय के साथ रहेंगे।

सवाल : हसदेव बचाओ आंदोलन का जो संघर्ष अभी चल रहा है, उसमें राजनितिक दलों की क्या भूमिका रही, कितना सपोर्ट रहा ?
जवाब : देखिये, मुझे लगता है कि पहली बार इस देश के अंदर कोई मुद्दा राजनैतिक मुद्दा बना है। सत्ता में आकर सरकार कुछ भी कहे, लेकिन राजनितिक दल, कोई भी दल रहा हो उसमें ये कहने की हिम्मत नहीं है कि हसदेव में खनन होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा उदहारण ये है कि मुझे याद नहीं है कि किसी राज्य की विधानसभा ने किसी आंदोलन के समर्थन में प्रस्ताव किया हो। तमाम सरकारी और अपनी सीमा से परे जाकर राजनितिक दलों ने एक पवित्र सदन में प्रस्ताव पारित किया सर्वसम्मति से, कि हसदेव की सभी खदानें निरस्त होनी चाहिए। ये अलग मुद्दा है कि सरकारें उस प्रस्ताव का सम्मान नहीं कर रही हैं, जो अपने आप में दुखद और दुर्भाग्यजनक है। लेकिन हसदेव आज के समय में एक बड़ा राजनितिक मुद्दा हैं और जिससे परे कोई राजनितिक दल नहीं जा सकता है। यही BJP है, जो विपक्ष में रहकर आंदोलन को समर्थन कर रही थी, लोगों के बीच में जा रही थी, और कह रही थी कि हसदेव का विनाश नहीं होना चाहिए, आज सत्ता में बैठ कर वही डिफ़ॉरेस्टेशन की अनुमति दे रही है। ये विडम्बना है इस देश की, कि जब आप विपक्ष में हैं तो आप कुछ और बोलते हैं और सरकार में आकर कुछ और करते हैं। देखिये, निश्चित तौर पर मैं यह मानता हूं कि लेमरू हाथी रिजर्व नोटिफाई हुआ उसमें राहुल गांधी की बड़ी भूमिका रही है। राहुल जी के सतत संवाद और हस्तक्षेप तथा लोगों के संघर्ष के कारण छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार को लेमरू हाथी रिजर्व बनाना पड़ा, जो रिजर्व 2005 से अटका पड़ा हुआ था। जब 2005 में भी ये प्रस्ताव आया था तो खनन कंपनियों के दबाव में उसको हटा दिया गया था। तो 500 स्क्वैयर किलोमीटर से बढ़कर 2000 स्क्वैयर किलोमीटर तक का ये सफर, इसमें लोगों का संघर्ष और राहुल जी का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहा है। निश्चित तौर पर कांग्रेस सरकार की ये भूमिका रही, लेकिन ये भी सच्चाई है कि हसदेव के एक हिस्से को सिर्फ एक कंपनी के मुनाफे के लिए जानबूझ कर कांग्रेस ने बाहर रखा, जो दुखद है, जो उनको नहीं करना चाहिए था।

सवाल : जो पुरस्कार मिला, उसके लिए आपके चयन की क्या प्रक्रिया रही और उस पुरस्कार का कितना महत्व है, बताएंगे ?
जवाब : मैंने ग्रीन नोबेल अवार्ड कहे जाने वाले गोल्डमैन अवार्ड के बारे में सुना भर था, मगर चयन की कोई जानकारी हमें नहीं थी, हमें तो एक दिन फोन आता है और कहा जाता है कि एशिया से इस बार आपको यह अवार्ड दिया जा रहा है। तब पहले तो मुझे लगा कि मजाक कर रहा है, फिर उन्होंने कहा कि यह सही है आपका चयन किया गया है। निश्चित तौर पर यह बहुत बड़ा सम्मान है, ये दुनिया का पर्यावरण का सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड है। इसीलिए इसे ग्रीन नोबेल कहा जाता है। एशिया महाद्वीप से प्रतिनिधित्व करना अपने आप में बड़ा है। हर महाद्वीप से एक व्यक्ति को चुना जाता है। एशिया विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है, और इतने बड़े महाद्वीप में पर्यावरण को बचाने के लिए कई संघर्ष चल रहे हैं, उनमें से आपका चुनाव अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। ये सम्मान विशुद्ध रूप से हसदेव के आदिवासियों का सम्मान है, उस आंदोलन से जुड़े हर एक नागरिक का सम्मान है, जिसने हसदेव को बचाने में भूमिका निभाई है। चाहे वो पत्रकार के रूप में लिखते हुए, चाहे वो रायपुर शहर में धरना करते हुए या देश के किसी भी कोने में जिसने सोशल मीडिया में लिखकर भूमिका निभाई है, उन सभी लोगों का ये सम्मान है। हसदेव का आंदोलन आज अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहुंचा है। हम तो उम्मीद करेंगे कि राज्य और केंद्र सरकार इसे एक अपॉर्च्युनिटी के रूप में देखे, मुझे लगता है कि हसदेव से बेहतर कोई उदहारण नहीं है, जब आप अपने प्राकृतिक समृद्ध जंगल को बचाएं और दुनिया के सामने उदहारण प्रस्तुत करें, कि देखिये हमने कोयला खनन को रोक कर हसदेव के जंगल को बचाया है, और भारत एक नजीर पेश कर सकता है दुनिया के सामने। तो इस अपॉर्च्युनिटी को हम इस रूप में देखते हैं, लेकिन सरकारें कैसे देखेंगी यह तो पता नहीं।