रायपुर। राजधानी स्थित कांग्रेस के मुख्यालय राजीव भवन में वरिष्ठ नेताओं की दो दिनों तक हुई बैठक में उठा एक मुद्दा चर्चा का विषय बन गया है। यहां नेता प्रतिपक्ष के लिए एक कमरा होने की बात एक पूर्व मंत्री ने उठायी, मगर एक वरिष्ठ नेता ने उसे टालने की कोशिश की और आखिरकार इस मामले को दरकिनार कर दिया।

दरअसल कांग्रेस मुख्यालय के इतने बड़े भवन में नेता प्रतिपक्ष को कोई कमरा देना बड़ी बात नहीं थी, मगर बात जिस कमरे को लेकर हो रही थी वो महत्वपूर्ण था। पहले यह मुद्दा कैसे उठा, ये हम आपको बताते हैं। छत्तीसगढ़ में पांच साल तक सत्ता संभालने के बाद अब विपक्ष में कांग्रेस पार्टी किस तरह अपनी भूमिका निभाएगी इस मुद्दे को लेकर मुख्यालय में बैठक हुई। इसी दौरान एक पूर्व मंत्री ने कहा कि राजीव भवन में नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत के लिए एक कक्ष होना चाहिए, ताकि वे समय-समय पर यहां आकर बैठें और भेंट-मुलाकात और समन्वय के साथ काम हो सके।

‘वरिष्ठ’ नेता ने जता दी असहमति

बैठक में जैसे ही पूर्व मंत्री ने नेता प्रतिपक्ष के लिए कमरा होने की बात कही, इस बीच अपनी सरकार में बड़े पद पर रहे पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इस पर असहमति जता दी और कहा कि कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष को कमरा देने की परंपरा नहीं रही है। इस पर उस समय के नेता प्रतिपक्ष ने भी याद दिलाया कि गांधी मैदान स्थित पुराने कांग्रेस भवन और राजीव भवन में भी पहले कमरा था, लेकिन बाद में इसे किसी और को दे दिया गया।

नेता प्रतिपक्ष ने किया हस्तक्षेप

इस मुद्दे पर वरिष्ठ नेताओं के बीच नोंक-झोंक बढ़ने लगी। इस बीच नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत ने खुद हस्तक्षेप किया और कहा कि, सभी मिलकर फैसला कर लें, जो सबको मंजूर होगा वो कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसकी बजाय पार्टी के अन्य मुद्दों पर चर्चा कर ली जाये।

आखिर किस कमरे को लेकर हो रही थी चर्चा..?

दरअसल कांग्रेस के मुख्यालय राजीव भवन में नेता प्रतिपक्ष को जिस कमरे को दिए जाने की बात हो रही थी वो फ़िलहाल पार्टी का कोष संभालने वाले नेता के पास है, जो इन दिनों ‘अन्तर्ध्यान’ हैं। पूर्व की सरकार के दौरान हुए घपलों-घोटालों की आंच उनके ऊपर भी है और इस फेर में वे काफी समय से लाइम लाइट में नहीं हैं। हम बात कर रहे हैं कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल की। सूत्र बताते हैं कि पार्टी के अध्यक्ष और प्रभारी महामंत्री इस बात पर सहमत थे कि नेता प्रतिपक्ष को भवन में कमरा दिया जा सकता है, और इसके लिए उन्होंने कोषाध्यक्ष रामावतार का कमरा दे दिए जाने को सुझाया। मगर यह बात उन नेताओं को पसंद नहीं आयी जिनका राजीव भवन में अब तक दखल रहा है। इनके हस्तक्षेप के चलते बहस होने लगी और नेता प्रतिपक्ष ने बाद में सर्वसम्मति से फैसला कर लिए जाने की बात कही।

वैसे बताते चलें कि राजधानी में नेता प्रतिपक्ष के लिए न तो पुराने कांग्रेस भवन में और न ही राजीव भवन में कोई कमरा उपलब्ध था। पुराने कांग्रेस नेता बताते हैं कि उनकी पार्टी अधिकांशतया सत्ता में ही रही है, इसलिए उनके किसी भी प्रदेश के पार्टी कार्यालय में नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी कमरे का कोई प्रावधान ही नहीं था। वैसे भी नेता प्रतिपक्ष के लिए विधानसभा में कक्ष और दूसरी अन्य सुविधाएं सरकार मुहैया तो कराती ही है।

बहरहाल पार्टी के प्रमुख पदाधिकारी इसके लिए सहमत हैं, मगर देखना है कि क्या आने वाले समय में नेता प्रतिपक्ष को कोई कमरा मिल पता है या नहीं।