रायपुर। अधिवक्ता और पर्यावरण कार्यकर्त्ता सुदीप श्रीवास्तव ने सवाल उठाया है कि जब राजस्थान के बिजली कारखानों के लिए हसदेव अरण्य की एक खदान से कोयले की पूरी आपूर्ति हो जा रही है तो उसके एक्सटेंशन की जरुरत आखिर क्यों पड़ रही है। उन्होंने आरोप लगाया है कि राजस्थान को कोल माइंस के विस्तार की अनुमति देने के बहाने अडानी को फायदा पहुंचाने और जंगल को उजाड़ने की साजिश की जा रही है।

राजस्थान के पावर प्लांट से हसदेव का कोल ब्लॉक है लिंक

राजस्थान सरकार के पावर प्लांट 4340 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं और इन्हें हसदेव कोल ब्लॉक से लिंक किया गया है। इसी के तहत पहले चरण में हसदेव के परसा ईस्ट केते बासन (PEKB) कोल ब्लॉक राजस्थान की सरकार को दिया गया।

एक ही खदान से जरुरत हो रही है पूरी

अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि राजस्थान में 4340 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए साल भर में अधिकतम 21 मिलियन टन कोयले की जरुरत पड़ती है। वहीं PEKB कोल ब्लॉक की क्षमता भी 21 मिलियन टन वार्षिक है। इस तरह एक ही खदान से राजस्थान को कोयले की आपूर्ति हो जा रही है।

मौजूदा कोल माइंस से 15 साल तक हो सकती है आपूर्ति

सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि राजस्थान के 4340 मेगावाट पावर प्लांट, जो हसदेव कोल ब्लॉक से लिंक है, उनकी जरूरत चालू कोयला खदान PEKB से पूरी हो रही है। इतना ही नहीं अगर पूरी क्षमता के साथ राजस्थान अपने प्लांट चलाए तो भी 15 साल तक नए कोल माइंस की जरूरत नहीं पड़ेगी।

अडानी को फायदा पहुंचाने की हो रही साजिश

उन्होंने कहा कि हसदेव के घने जंगल को उजाड़ना और कोल माइंस को खनन के लिए देने की कोशिश करना किसी भी लिहाज से छत्तीसगढ़ के हित में नहीं हैं। इसे आदिवासी समझ रहे, लेकिन शासन-प्रशासन के लोग नहीं समझ रहे हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। राजस्थान में विद्युत उत्पादन के लिए जितने प्लांट चल रहे हैं, उसका संचालन करने के लिए एक खदान से पर्याप्त कोयला उत्पादन हो रहा है।

श्रीवास्तव ने आरोप लगाते हुए कहा कि राजस्थान को कोल माइंस देने का बहाना करके अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए जंगल को उजाड़ने की साजिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि अडानी के छत्तीसगढ़ में दो पावर प्लांट GMR तिल्दा और कोरबा वेस्ट पावर प्लांट, रायगढ़ संचालित हैं, जिन्हे अडानी ने खरीद लिया है। राजस्थान सरकार से हुए MDO के तहत हसदेव के PEKB कोल माइंस की खुदाई और कोल वाशिंग का काम अडानी को मिला हुआ है। इसके एवज में निर्धारित रकम के अलावा अडानी को 29% रिजेक्ट कोयला मुफ्त में मिलता है। इसी कोयले का इस्तेमाल अडानी छत्तीसगढ़ के अपने दोनों पावर प्लांट के लिए करता है। सुदीप श्रीवास्तव का आरोप है कि अडानी को और लाभ दिलाने के लिए खदान के विस्तार की अनुमति की प्रक्रिया पूरी की जा रही है।

एमपी से कोयला ले तो होगी बचत

सुदीप श्रीवास्तव का कहना है कि राजस्थान को अगर और कोल माइंस की जरूरत भी है, तो उसे मध्यप्रदेश के कोल माइंस से कोयला लेना चाहिए, इससे परिवहन का खर्च भी कम होगा। उनका दावा है कि इससे राजस्थान को परिवहन में 400 रु.टन की बचत होगी।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भी की है गणना

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण भारत सरकार की संस्था है, जो विभिन्न पावर प्लांट में यूनिट साइज के अनुसार कोयले की खपत निर्धारण के मापदंड तय करती है। उसके 20 जुलाई 2021 को इस संबंध में जारी आदेश के अनुसार राजस्थान की कुल अधिकतम वार्षिक आवश्यकता (जब प्लांट 85% क्षमता से चले) गणना करने पर राजस्थान की कोयले की कुल वार्षिक आवश्यकता 21 मिलियन टन आती है। यही चालू कोयला खदान पी इ के बी की उत्पादन क्षमता भी है। अर्थात किसी और खदान की आवश्यता राजस्थान को नहीं है। इस खदान में अभी 310 मिलियन टन खनन योग्य कोयला उपलब्ध है, जो 15 साल चलेगा। इतने सालों में राजस्थान अन्य विकल्प आसानी से विकसित कर सकता है।

जलग्रहण क्षेत्र बचाएं और मानव-हाथी द्वन्द रोकें

उन्होंने कहा कि हसदेव के जंगल और राजस्थान की कोयला आवश्यकता पर लंबे समय से बहस हो रही है। पिछली राज्य सरकार ने हसदेव के एक हिस्से को तो लेमरू एलीफैंट रिज़र्व के रूप में अधिसूचित किया परन्तु काफी बड़ा हिस्सा जिस पर खनन का सर्वाधिक खतरा है, रिज़र्व के बाहर छोड़ दिया। आज इनमें से परसा कोल ब्लॉक और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक पर जंगल खनन की तलवार लटकी है।

उन्होंने अपील की है कि विष्णुदेव साय सरकार परसा और केते एक्सटेंशन को खनन मुक्त रखे। हसदेव जलग्रहण क्षेत्र को बचाना देश और राज्य हित में है, अन्यथा खनन क्षेत्र बढ़ने से मानव हाथी द्वन्द भीषण होगा।

भारत में कोयले का पर्याप्त भण्डार

आखिर में सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि भारत में 300 से भी अधिक कोल ब्लॉक अभी तक किसी को आवंटित नहीं हुए हैं। वहीं कोल इंडिया का उत्पादन शीघ्र ही 1800 मिलियन टन पार कर जाएगा और कोल सरप्लस मार्केट आ जाएगा। उन्होंने कहा कि आने वाले 50 वर्ष में कोयले का उपयोग कम होता जाएगा, इसलिए भी हसदेव का जंगल उजाड़ कर कोयला खनन गलत होगा।