0 शिक्षक दिवस पर विशेष

रायपुर। शिक्षक दिवस का दिन है, और इस मौके पर हम अच्छा काम करने वाले शिक्षकों के बारे में बात करते हैं। ऐसे ही कई शिक्षकों को आज के दिन बड़ा पुरस्कार भी मिलता है, सभी स्कूलों में शिक्षकों का सम्मान भी होता है, मगर उन शिक्षकों का क्या, जो अपने सम्मानजनक पेशे से हटकर ऐसा काम कर जाते हैं, जिसके चलते इनकी खुद की बदनामी तो होती ही है, शिक्षक जगत भी इनसे आहत होता है।

गुरु-शिष्य के रिश्ते को कर रहे दागदार

शिक्षक दिवस के दिन हम गुरु-शिष्य के पवित्र रिश्ते की भी चर्चा करते हैं। मगर छत्तीसगढ़ के विद्यालयों से जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसने इस रिश्ते को दागदार बना दिया है। आये दिन शिक्षकों द्वारा छात्राओं से छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाएं सामने आ रही हैं। ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई और पॉक्सो एक्ट के तहत जेल भेजे जाने के बावजूद ऐसे मामले कम नहीं हो रहे हैं। दरअसल पहले भी इस तरह की घटनाएं होती थीं मगर भय और बदनामी के चलते पीड़िता और उनके अभिभावक सामने नहीं आते थे, मगर आज ऐसे मामलों में जिस तरह की कार्रवाई हो रही है और पॉक्सो जैसे कठोर कानून बन गए हैं, तब से पीड़ित आगे आने लगे हैं। हालांकि यह चिंता का विषय है कि अब भी ऐसे मामले कम नहीं हो रहे हैं।

सोशल मीडिया के आने के बाद सामने आ रही हरकतें

दरअसल जब से आम आदमी के हाथ में एंड्रॉयड का मोबाइल आया है और सोशल मीडिया के तरह-तरह के एप्स अस्तित्व में आये हैं, ऐसे शिक्षकों की हरकतें भी उजागर होने लगी हैं। पिछले कुछ सालों से लगभग हर रोज ऐसे शिक्षकों के VIDEO वायरल होते हैं, जो शराब पीकर स्कूल में पढ़ाने पहुंचते हैं और उटपटांग हरकतें करते हैं। डिजिटल मीडिया और अखबारों में इनकी खबरें काफी प्रमुखता से लगती हैं। इन खबरों को संज्ञान में लेकर जिले के कलेक्टर जांच कराते हैं और अंततः शिक्षक निलंबित हो जाता है। छत्तीसगढ़ के किसी न किसी जिले में इस तरह की कार्यवाही लगभग रोज हो रही है।

बच्चे और अभिभावक हो रहे जागरूक

पूर्व में शिक्षकों के नशे में स्कूल आने या किसी शिक्षक द्वारा बच्चों से मारपीट की शिकायतें कम होती थीं, बच्चे भयवश इसकी शिकायत नहीं करते थे, मगर जब से ऐसे मामले सोशल मीडिया और खबरों के जरिये प्रकाश में आने लगे हैं और त्वरित कार्रवाइयां हो रही हैं, बच्चे और अभिभावक खुद ही आगे बढ़कर ऐसे शिक्षकों की शिकायत कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व तो एक स्कूल में नशे में स्कूल पहुंचने वाले शिक्षक को बच्चो द्वारा चप्पल मारते हुए भगाने का वीडियो जमकर वायरल हुआ था।

हम आपको कल का ही एक ऐसा वीडियो दिखा रहे हैं, जिसमें रायगढ़ जिले के दूरस्थ अंचल स्थित एक विद्यालय के प्रधान पाठक के शराब पीकर आने की खबर बच्चों ने स्थानीय पत्रकारों तक पहुंचा दी। इसके बाद कुछ पत्रकार जा पहुंचे स्कूल। यहां पूछे जाने पर इस शिक्षक ने स्वीकार किया कि उसने शराब पी रखी है। इस हालत में कैसे पढ़ा रहे हैं, इस सवाल का कोई जवाब शिक्षक के पास नहीं था। पत्रकार जैसे ही वहां से हटे, शिक्षक ने गुस्से में बच्चों को पीटना शुरू कर दिया। इसकी जानकारी मिलने पर पत्रकारों ने पिटाई का वीडियो भी शूट कर लिया। बच्चों की पिटाई की खबर मिलते ही बच्चों की माएं स्कूल पहुंच गईं और शिक्षक को जमकर खरी-खोटी सुनाई।

यह वीडियो जैसे ही डिजिटल मीडिया के जरिये खबरों में वायरल हुआ, जिला शिक्षा अधिकारी तुरंत सक्रिय हुए। उन्होंने प्रारंभिक जांच के बाद प्रधान पाठक को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। यह वाकया धरमजयगढ़ विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला, नेवार का है, जहां के प्रधान पाठक (एलबी) शंभू राठिया को उसकी हरकतों के चलते निलंबित कर दिया गया।

शिक्षकों की नेतागिरी का असर पढ़ाई पर

पिछले दिनों शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण का मामला काफी चर्चा में रहा। यह मामला तब प्रकाश में आया जब पिछले विधानसभा सत्र में एक सवाल के जवाब में जानकारी दी गई कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कुल कितने शिक्षक पदस्थ हैं और कितने स्कूलों में शिक्षक ही नहीं हैं। सरकार ने स्कूलों की संख्या के औसत के हिसाब से बता तो दिया कि शिक्षकों की संख्या संतोषजनक है और जितनी कमी है उसके लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाएगी। मगर जब नीर-क्षीर विवेचना शुरू हुई तब पता चला कि शहरी इलाकों और आसपास के स्कूलों में शिक्षक जरुरत से ज्यादा पोस्टेड हैं, और कई स्कूलों में तो बच्चे कम और शिक्षक ज्यादा हैं। इस विसंगति को दूर करने के लिए सरकार ने शिक्षकों को युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के तहत शिक्षकों को जरुरत वाले स्कूलों में भेजने का आदेश जारी किया। इस पर अमल शुरू होते ही विरोध शुरू हो गया और शिक्षकों तथा कर्मचारियों के संगठनों ने अपनी शर्तें रखनी शुरू कर दी और हड़ताल की भी घोषणा कर दी। सरकार के साथ वार्ताओं का दौर शुरू हुआ और आखिरकार शिक्षक जो चाहते थे, वही हुआ। सरकार ने यह प्रक्रिया फ़िलहाल स्थगित कर दी। बताया जा रहा है कि आने वाले समय में स्थानीय चुनाव हैं, और सरकार के इस कदम का असर ‘वोट’ पर न पड़े इस फेर में सरकार ने यह प्रक्रिया फ़िलहाल रोक दी है।

बच्चों की चिंता किसी को नहीं

युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया का विरोध करते समय न तो शिक्षकों और उनके नेताओं ने और न ही इस प्रक्रिया को स्थगित करते समय सरकार ने भी बच्चों की पढ़ाई की चिंता की। शिक्षकों को चिंता इस बात की है कि उन्हें फिर से शहर से दूर संचालित स्कूलों में जाना पड़ेगा, वे यह नहीं सोच रहे हैं कि उन स्कूलों के बच्चों का क्या होगा जहां शिक्षक ही नहीं है, या फिर कम शिक्षक हैं।

प्रदेश में शिक्षा का स्तर बहुत ही बुरा

प्रदेश में जब से शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ और 14 वर्ष की उम्र तक परीक्षाएं खत्म हुईं, सरकारी स्कूलों में बच्चों के पठन-पाठन पर बुरा असर पड़ा। चूंकि इससे पूर्व शिक्षकों के ऊपर बच्चों के अच्छे परिणाम लाने का दबाव रहता था, जो अब नहीं रहा। शिक्षक अब मनमाने हो गए हैं। दूरस्थ इलाकों में स्थित प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में आलम यह है कि शिक्षक अदला-बदली करके स्कूल आते हैं और नाममात्र को पढ़ाई होती है। ऐसे में जब बच्चों में शिक्षा की नींव ही मजबूत नहीं होगी, वे आगे की कक्षाओं में कैसे अच्छी पढाई कर सकेंगे।

बहरहाल जरुरत इस बात की है कि सरकार और शिक्षकों के मन में बच्चों की पढाई का स्तर ऊँचा करने की इच्छाशक्ति हो और वे इसके लिए समग्र प्रयास करें, अन्यथा शिक्षकों की नेतागिरी और सरकार की वोट नीति के चलते बच्चों की पढ़ाई और भी गर्त में चली जाएगी।