टीआरपी डेस्क। उत्तर प्रदेश के 69000 शिक्षक भर्ती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर पात्र अभ्यर्थियों की नई सूची जारी करने का निर्देश दिया है। भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नियमों के उल्लंघन के आरोपों के कारण यह मामला सुर्खियों में बना हुआ है।

आरक्षण नियमों की अवहेलना पर विवाद

69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में आरोप लगे हैं कि आरक्षण नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया, जिससे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के कई योग्य उम्मीदवारों को वंचित कर दिया गया। इसी को लेकर कुछ अभ्यर्थी लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

हाल ही में इन अभ्यर्थियों ने लखनऊ में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का घेराव किया। उनकी मांग थी कि सरकार भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नियमों का पालन सुनिश्चित करे और अनियमितताओं को दूर करे।

सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का पक्ष

इस बीच, सामान्य वर्ग के कुछ अभ्यर्थियों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग की। उनका कहना है कि मेरिट के आधार पर योग्य उम्मीदवारों का चयन होना चाहिए, और आरक्षण नियमों के तहत उन्हें भी बराबर का अवसर मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और आदेश

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान, अदालत ने पाया कि भर्ती प्रक्रिया में कई अनियमितताएं हैं, जिनसे निपटने के लिए समयबद्ध कार्रवाई की आवश्यकता है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर पात्र अभ्यर्थियों की नई सूची जारी करे, ताकि इस मामले में पारदर्शिता बनी रहे।