नई दिल्ली। अडानी समूह की केन्या में निवेश की योजना एक अदालत के फैसले के चलते अधर में लटक गई है। हालांकि, अडानी समूह इस मामले में कानूनी रास्ता अपनाने पर विचार कर सकता है, और अगर अदालत का निर्णय उनके पक्ष में आता है, तो यह निवेश योजना फिर से पटरी पर लौट सकती है। आइए समझते हैं कि यह कितनी बड़ी डील थी और इससे ग्रुप को क्या फायदा होता?

केन्या के जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (JKIA) में भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी के निवेश की योजना को कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ा है। हाल ही में केन्या की एक अदालत ने इस निवेश पर रोक लगा दी, जिससे अडानी समूह की अंतरराष्ट्रीय विस्तार योजना को झटका लगा है।

देश की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर जताई चिंता

एक रिपोर्ट के अनुसार नैरोबी में जोमो केन्याटा इंटरनेशनल एयरपोर्ट को अडानी एयरपोर्ट को लीज पर देने के केन्या सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती दी गई है। केन्या ह्यूमन राइट्स कमीशन के साथ-साथ वकीलों की संस्था ने भी इस कदम को असंवैधानिक बताया है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि स्ट्रैटजिक और प्रॉफिट कमा रहे इस एयरपोर्ट को किसी प्राइवेट कंपनी को लीज पर देने का कोई तुक नहीं है। उनका कहना था कि हवाई अड्डे का संचालन और प्रबंधन किसी बाहरी कंपनी को सौंपना देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर नकारात्मक असर डाल सकता है। यह सुशासन, जवाबदेही, पारदर्शिता और पब्लिक मनी के विवेकपूर्ण और जिम्मेदार उपयोग के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। हालांकि केन्या की सरकार ने डील का बचाव करते हुए कहा है कि JKIA की मौजूदा कैपेसिटी से संबंधी समस्याओं में तत्काल सुधार की जरूरत है।

15 हजार करोड़ रुपए से अधिक का था निवेश

अडानी समूह, जो पहले से ही भारत और दुनिया के कई हिस्सों में हवाई अड्डों का मैनेजमेंट संभाल रहा है, केन्या के इस प्रमुख हवाई अड्डे में भी निवेश करने की तैयारी कर रहा था। अडानी ग्रुप केन्या की सरकार के साथ 1.8 बिलियन डॉलर यानी 15 हजार करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की डील पर आगे बढ़ रहा था। अदालत ने सुनवाई के बाद फिलहाल निवेश प्रक्रिया पर रोक लगाने का निर्णय लिया।

क्या कहना है अडानी ग्रुप का ?

इस मामले में मुख्य विवाद यह है कि क्या हवाई अड्डे जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय ढांचे का नियंत्रण किसी विदेशी कंपनी को सौंपा जाना चाहिए या नहीं। केन्या के स्थानीय अधिकारियों और कार्यकर्ताओं का तर्क है कि इस हवाई अड्डे का प्रबंधन केन्या के पास ही रहना चाहिए, ताकि इसके संचालन में किसी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप न हो। दूसरी ओर, अडानी समूह का तर्क है कि उनके निवेश से हवाई अड्डे का आधुनिकीकरण होगा और यह अफ्रीका के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक के रूप में और बेहतर तरीके से काम कर सकेगा।

कितना फायदेमंद है ये डील?

अडानी समूह पहले से ही हवाई अड्डों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और भारत के कई बड़े हवाई अड्डों का संचालन कर रहा है। अडानी समूह का यह मानना है कि केन्या के हवाई अड्डे में निवेश करने से उन्हें अफ्रीकी बाजार में पैर जमाने का मौका मिलेगा, जिससे उनकी कंपनी की वैश्विक उपस्थिति बढ़ेगी। इसके साथ ही यह निवेश अफ्रीका के अन्य देशों में भी भविष्य के विस्तार की संभावनाओं को खोल सकता है।