रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए एक महिला की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें बच्ची की इच्छा को प्राथमिकता दी गई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रायपुर की एक बच्ची अपनी दादी के साथ रहना चाहती है, और उसके हितों को ध्यान में रखते हुए यह उचित निर्णय है।

यह मामला एक महिला की 2006 में पुलिस फिजिकल इंस्ट्रक्टर से हुई शादी से जुड़ा है, जिसके बाद 2010 में उनकी बेटी का जन्म हुआ। जनवरी 2015 में माता-पिता के बीच तलाक हो गया, जिसके बाद कोर्ट ने पहले बच्ची की कस्टडी मां को सौंपी थी। लेकिन 2018 में, बच्ची के एथलीट बनने के सपने को ध्यान में रखते हुए, यह सहमति बनी कि वह अपने पिता के साथ रहेगी।

अप्रैल 2024 में, बच्ची के पिता ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का प्रयास किया, लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी असामयिक मौत हो गई। इसके बाद, बच्ची को बाल आरक्षक नियुक्त किया गया और वह अपनी दादी के साथ रहने लगी।

जून 2024 में, मां ने बच्ची की कस्टडी के लिए आवेदन दिया, लेकिन बच्ची ने स्पष्ट रूप से अपनी दादी के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की।

इस पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु शामिल थे, ने मामले की सुनवाई करते हुए मां की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बच्चे का सर्वांगीण विकास सबसे महत्वपूर्ण है और बच्ची की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उसे दादी के साथ रहने देना ही उचित होगा।

प्रारंभिक सुनवाई के दौरान, पुलिस अधीक्षक ने शपथ पत्र देकर बताया कि बच्ची अपने पिता के साथ रहती थी और अब दादी के पास रह रही है। बाल कल्याण समिति ने भी बच्ची के हितों को ध्यान में रखते हुए उसे दादी की कस्टडी में रखने की सिफारिश की थी।