छत्तीसगढ़ की बड़ी खबर: कलेक्टर DMF के होंगे अध्यक्ष, प्रभारी मंत्री नहीं सांसदों को मिलेगी परिषद में जगह, संशोधित परिषद को लेकर राजपत्र में हुआ प्रकाशन

टीआपी डेस्क। दंतेवाड़ा डीएमएफ मद में कांग्रेस शासनकाल में हुई गड़बड़ी अब अधिकारियों के पसीने छुड़ाने वाला है। एंटी करप्शन ब्यूरो ने दंतेवाड़ा में डीएमएफ मद से वर्ष 2019 से 2023 के बीच हुए विभिन्न विकास कार्यों की विभागवार जानकारी मांगी है। अब इन कार्यों के दस्तावेजों को इकट्ठा करना अफसरों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। दर्द तो होगा ही क्योंकि कुछ तत्कालीन अधिकारी इसकी जद में आ सकते हैं। साथ ही विभिन्न प्रोजेक्ट में काम करने वाले ठेकेदार और मटेरियल सप्लाई करने वाली एजेंसियों की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं।

एसीबी ने डीएमएफ फंड की जानकारी मांगते हुए जिला प्रशासन से पिछले पांच वर्षों में जारी निविदाओं, किन प्रयोजनों के लिए निविदाएं मंगाई गई, कितनी राशि आबंटित हुई और भुगतान का डिटेल मांगा हैं। मामले की गहराई से जांच करने के लिए हर एक निविदा में शामिल समितियों के सदस्य का नाम-पदनाम, निविदा फाइनल करने की प्रक्रिया, जिसमें टेंडर निर्धारण, आबंटन के मानक, निविदा दस्तावेजों के निरीक्षण की रिपोर्ट और इनसे संबंधित नोटशीट की अटेस्टेड कॉपी मांगी गई।

साथ ही डीएमएफ से जितने टेंडर जारी हुए उनके निविदाकर्ताओं के नाम सहित पूरी जानकारी, टेंडर लेने वाली फर्म और उसकी पूरी विस्तृत जानकारी एसीबी द्वारा मांगी गई हैं। इतना ही नहीं, सरकार बदलते ही दंतेवाड़ा में ईडी की एंट्री पहले ही हो चुकी है। ईडी को जिला प्रशासन करीब ढाई हजार पन्नों में मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराई हैं। ईडी और एसीबी की एंट्री से जिले में बड़ी कार्रवाई के आसार नजर आ रहे है।

कांग्रेस शासनकाल के दौरान दंतेवाड़ा में पहले कलेक्टर के रूप में टोपेश्वर वर्मा को पदस्थ किया गया। वहीं, दूसरे कलेक्टर के रूप में दीपक सोनी को जिले की कमान सौंपी गई फिर विनीत नंदनवार पदस्थ हुए। अधिकारी बदलते रहे लेकिन कार्यशैली सबकी एक समान ही रही। नंदनवार के कार्यकाल में सबसे ज्यादा शिकायतें आई, जिसमें सबसे बड़े कार्य मां दंतेश्वरी मंदिर कॉरिडोर निर्माण में अनियमितता के आरोप लगे। इस पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों ने जांच भी की लेकिन कोई ठोस रिपोर्ट नहीं मिली।

सूत्रों के अनुसार जब से दंतेवाड़ा को डीएमएफ फंड मिलना शुरू हुआ, तब से 2023 तक फंड के ब्याज की राशि भी किसी कलेक्टर ने उपयोग नहीं किया लेकिन इस राशि का कॉरीडोर निर्माण में नियम विरूद्ध उपयोग जरूर किया गया। करीबी फमों को वर्कऑर्डर जारी करने की होड़ में टेंडर के नियम-शर्तों का पालन भी नहीं किया गया। बताया जा रहा है कि ब्याज की राशि खर्च करने के दिशानिर्देश और उसकी प्रक्रिया काफी जटिल है, इस वजह से किसी भी कलेक्टर ने इस राशि का उपयोग नहीं किया।