नई दिल्ली। हसदेव अरण्य को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की सिफारिश के हिसाब से खनन मुक्त करने और संरक्षित करने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार, राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम और अडानी समूह की दो कंपनियों को नोटिस जारी किया है।

परसा ब्लॉक में खनन रोकने के आवेदन पर भी नोटिस

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भूयान की खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव की याचिका पर यह नोटिस जारी किए हैं। आज सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका के अलावा परसा परसा कोल ब्लॉक में खनन प्रारंभ न करने के आवेदन पर भी नोटिस जारी किए हैं जिसमें यह बताया गया है कि पहले से चालू खदान PEKB का उत्पादन राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के कोयले की वार्षिक आवश्यकता को पूरा कर रहा है और इस कारण भी किसी नए खदान को खोलने की आवश्यकता नहीं है।

गौरतलब है कि हाल ही में इस नई परसा कोयला खदान को खोलने के सरकारी प्रयास के विरोध में हसदेव क्षेत्र के आदिवासियों ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया था।

NO GO एरिया में खनन की अनुमति पर आपत्ति

आज हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने खंडपीठ को बताया कि उक्त पूरा क्षेत्र केंद्र सरकार के द्वारा ही नोगो क्षेत्र घोषित किया गया था बाद में केंद्र सरकार द्वारा ही इस क्षेत्र को खनन के लिए निश्चित क्षेत्र इन वायलेट भी घोषित किया गया इसके बाद भी राजस्थान विद्युत उत्पादन और अडानी समूह के खनन के लिए यहां खदानें आवंटित की गई।

आज सुनवाई के दौरान खंडपीठ को बताया गया कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के द्वारा भी इस क्षेत्र को खनन मुक्त रखने की सिफारिश की गई है उसके बाद भी छत्तीसगढ़ की सरकार और केंद्र सरकार में पी ई के बी खदान के चरण दो और परसा कोयला खदान की अनुमतियां जारी की है जिसे इस याचिका में चुनौती दी गई है। इस क्षेत्र में खनन होने से चार लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे।

सुनवाई के दौरान राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नादकर्णी और अडानी समूह की कंपनियों की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका के औचित्य पर सवाल उठाया। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए उस आवेदन पर भी नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया है कि पी ई के बी खदान से कोयले की पूरी सप्लाई होने के बाद भी नई खदान बिना किसी वजह खोली जा रही है। उत्तर वादियों को जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया है, जिसके बाद इस मामले की आगे सुनवाई की जाएगी।

मामले में एक और याचिका है लंबित

गौरतलब है कि इस याचिका के साथ अंबिकापुर के अधिवक्ता दिनेश सोनी की याचिका भी लंबित है जिसमें राजस्थान और अडानी समूह के बीच हुए अनुबंधों को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि राजस्थान को अपने ही खदान का कोयला बाजार दर से महंगे में मिल रहा है और पूरा मुनाफा और लाभ अदानी समूह ले जा रहा है, जो कि सरकारी कंपनियों को कोल ब्लॉक दिए जाने की पॉलिसी के उद्देश्यों के खिलाफ है, साथ ही साथ राजस्थान के द्वारा कुल उत्पादन का लगभग 29% तक कोयला अदानी समूह को मुफ्त में दिए जाने को भी एक बड़ा घोटाला बताया गया है। ऐसे ही अनुबंधों को सुप्रीम कोर्ट पहले कोल ब्लॉक घोटाले वाले मुख्य मामले के समय निरस्त कर चुका है, फिर भी इस प्रकरण में केंद्र सरकार ने राजस्थान और अडानी के बीच पुराने अनुबंध को चालू रखने की छूट दी है जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और स्वयं सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून के खिलाफ है।

बहरहाल हसदेव अरण्य को बचाने के प्रयास में जुटे संगठनों के प्रयास को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए स्वीकार किये जाने से थोड़ा बल मिला है। देखना है कि इस मामले में संबंधितों का क्या जवाब आता है और कोर्ट इसमें क्या फैसला करता है।