0 लेजर लाइट का उठा मुद्दा
0 डीजे संचालकों ने भी लगाया आवेदन

बिलासपुर। डीजे और साउंड बॉक्स से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। इस बार याचिकाकर्ताओं ने इसे ध्वनि प्रदूषण मानते हुए इसे अल्ट्रा वायरस घोषित करने की मांग की।

सरकार पर सख्त कार्रवाई नहीं करने का आरोप

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि इस मामले में लगातार कार्रवाई की जा रही है, लेकिन याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ध्वनि अधिनियम पर्याप्त सख्त नहीं है। एक या दो बार 500 से 1000 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है। न तो उपकरण जब्त होते हैं और न ही कड़े नियम बनाए गए हैं।

इस मौके पर अदालत ने सवाल किया कि पहली बार डीजे की तेज आवाज पर कार्रवाई के बाद यदि वही व्यक्ति फिर से नियम तोड़ता है, तो सरकार क्या कदम उठाती है। अदालत ने डीजे के साथ लेजर और बीम लाइट से हो रही समस्याओं पर भी चिंता जताई। अदालत ने कहा कि ये लाइटें आमजन की आंखों और दिल दोनों के लिए खतरनाक हैं। राज्य सरकार को इसे रोकने के प्रयास तेज करने चाहिए।

इस दौरान दो हस्तक्षेप याचिकाएं भी दाखिल की गईं, जिनमें बताया गया कि आपातकालीन नंबर 112 पर शिकायत देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। महाधिवक्ता ने सरकार की ओर से हुई कार्रवाई की जानकारी दी और बताया कि डीजे और अन्य वाहनों पर लगे साउंड सिस्टम में लेजर लाइट पर पहले से ही प्रतिबंध है। नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना और दोबारा उल्लंघन पर वाहन जब्त किए जा रहे हैं।

अदालत ने कहा कि वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण जरूरी है। तय मानकों से अधिक आवाज में संगीत बजाने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही, ध्वनि अधिनियम के साथ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत भी अलग से कार्रवाई की जानी चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने पर पांच साल की सजा या एक लाख रुपये का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। यदि नियमों का उल्लंघन जारी रहता है, तो 5000 रुपये प्रतिदिन का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है।

इधर, जनहित याचिका के साथ डीजे ऑपरेटरों ने भी एक हस्तक्षेप याचिका दायर की। इसमें आरोप लगाया गया कि पुलिस कई जगहों पर डीजे संचालकों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई कर रही है। अदालत ने सरकार से इस मामले में भी जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 19 दिसंबर को होगी।