रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सतरेंगा को विकसित करने के लिए जिला खनिज न्यास (DMF) का करोड़ों रुपया लगाए जाने की शिकायत के बाद केंद्रीय खान मंत्रालय के अपर सचिव ने प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मामले की जांच का निर्देश दिया है। कोरबा जिले में स्थित यह पर्यटन स्थल कोयला खनन प्रभावित क्षेत्र नहीं है, बावजूद इसके जिले की DMF परिषद की अनुशंसा पर यहां करोड़ों रूपये लगा दिए गए।

DMF की क्या है शिकायत..?

केंद्रीय खान मंत्रालय के अपर सचिव ने प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है, जिसमें DMF की राशि के दुरुपयोग करने की शिकायत की जांच कर कार्रवाई करने को कहा गया है। सतरेंगा पर्यटन केंद्र कोरबा जिले में स्थित है और यहां के इनवायरमेंट एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान ने खान मंत्रालय से लिखित शिकायत में कहा है कि DMF की कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित शासी परिषद ने कोरबा के कोयला खदानों से पूरे जिले को प्रभावित मान लिया जबकि खनन क्षेत्र से सतरेंगा अप्रत्यक्ष रूप से भी प्रभावित नहीं है। इस तरह प्रशासन ने सतरेंगा पर्यटन केंद्र को विकसित करने और विद्युतीकरण के लिए DFM से करोड़ों रुपए खर्च कर दिए।

बता दें कि DMF घोटाला के मामले में कोरबा की पूर्व कलेक्टर रानू साहू और आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त माया वारियर जेल में बंद हैं।

स्पष्ट नियम होने के बावजूद मनमाना खर्च

2015 में बनाए गए केंद्र और राज्य के नियमों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित क्षेत्रों की स्पष्ट परिभाषाएं थीं, लेकिन संचालन में आसानी और मनमाने खर्च के लिए DMFT ने ऐसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित क्षेत्रों को चिन्हित नहीं किया और पूरे जिले को प्रभावित माना गया। ऐसा करके उन क्षेत्रों में अनियमित निधि खर्च हुई जो न तो प्रत्यक्ष और न ही अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं, जैसे सतरेंगा, जो एक पर्यटन स्थल है, वहां भारी मात्रा में DMF की निधि डाली गई। सतरेंगा पर्यटन सर्किट छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के अधीन है, जो स्वयं राजस्व उत्पन्न करने वाली इकाई है और पर्यटक होटल, रिसॉर्ट, बोटिंग आदि का वाणिज्यिक संचालन करती है। क्या ऐसे संगठनों को DMFT फंड का डायवर्जन किसी भी तरह से प्रभावितों के लिए मददगार है, यह अत्यधिक संदिग्ध है?

दूसरे काम के नाम पर ली गई राशि, फिर बना दिया रिसोर्ट

मिली जानकारी के मुताबिक कोरबा जिले के शासी परिषद ने जब
सतरेंगा के लिए राशि स्वीकृत की तब बताया गया था कि यहां प्रशिक्षण कैम्पिंग कक्ष बनाया जाएगा। जहां ग्रामीणों को प्रशिक्षण के दौरान रुकने की व्यवस्था होगी। बाद में जब भवन बनकर तैयार हो गया तो इसका उपयोग रिसार्ट के रुप में शुरु कर दिया गया। करोड़ों रुपए इस फंड से निकाले गए और बाद में उपयोगिता बदल दी गई।

पर्यटन मंडल ने बनाई थी कार्ययोजना

बता दें कि लगभग 5 -6 वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड ने सतरेंगा के साथ ही बुका नामक पर्यटन स्थल के विकास के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाई थी। इसके लिए 13 करोड़ 31 लाख 25 हजार 820 रुपए की मंजूरी दी गई।

इसके तहत सतरेंगा में बोटिंग की सुविधा शुरू हो गई है। ओपन थियेटर, फ्लोटिंग रेस्टोरेंट, गार्डन, जेटी, हेलीपेड तैयार किया गया। यहां पब्लिक टायलेट समेत अन्य विकास कार्य कराए गए। पिकनिक स्पॉट के लिए डुबान के किनारे सड़क बनाई गई।

जानिए इन कार्यों के लिए किस योजना से कितनी राशि की मंजूरी

डीएमएफ – 10.11 करोड़
मनरेगा – 22.63 लाख
सीएसआर – 12.75 लाख

इस तरह सतरेंगा के विकास के लिए सर्वाधिक रकम 10 करोड़ रूपये DMF से ली गई। जबकि यह इलाका खनन प्रभावित ही नहीं है और इसके लिए पर्यटन मंडल से पूरी राशि का प्रावधान किया जा सकता था।

DMF से हुए खर्चों की CAG से ऑडिट की मांग

कोरबा जिले में कोयले की बड़ी खदानें होने के चलते यहां DMF से पूरे प्रदेश से सर्वाधिक राशि मिलती है। शुरू से ही आरोप लगते रहे हैं कि इस रकम को मनमाने तरीके से खर्च किया जा रहा है। एनवॉयरमेंट एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान ने केंद्रीय खान मंत्रालय को लिखे पत्र में केवल सतरेंगा के पर्यटन स्थल पर ही नहीं बल्कि DMF से बीते सालों में किये गए पूरे खर्च की CAG से जांच की मांग की है। उसने यह भी बताया है कि कुछ समय पूर्व ही CAG ने DMF वाले कुछ जिलों की ऑडिट जरूर की, मगर इसमें कोरबा जिले को शामिल नहीं किया गया, जबकि इस जिले में गड़बड़ी की शुरुआत से ही शिकायतें होती रही हैं। इसके अलावा जिले में DMF का सोशल ऑडिट भी अभी तक नहीं कराया गया, जिससे इस बात का पता चलता कि सही तरीके से कार्य हुए हैं या नहीं।

ED की जांच में उजागर हुआ था घोटाला

बता दें कि कांग्रेस के शासनकाल में ED ने प्रदेश में हुए अनेक घोटालों की जांच की थी। इसकी रिपोर्ट में ED ने खुलासा किया है कि DMF में जमकर घोटाला हुआ है और अधिकारियों तथा नेताओं ने बड़े पैमाने पर कमीशनखोरी की है। ED ने अपनी जांच में 600 करोड़ से भी अधिक के घोटाले की बात कही है।

घोटालेबाज कलेक्टरों की फेहरिस्त लंबी

DMF घोटाले के मामले में कोरबा की पूर्व कलेक्टर रानू साहू और सहायक आयुक्त माया वारियर अभी जेल में हैं। मगर एक सच्चाई यह भी DMF का कानून लागू होने के बाद से कोरबा जिले में पदस्थ रहे अधिकांश कलेक्टरों ने DMF की राशि में भारी भ्रष्टाचार किया है, मगर ED ने जांच को केवल रानू साहू के कार्यकाल तक सिमित कर दिया। एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान ने इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की है और मांग की है कि कोरबा जिले में हुए DMF के खर्च की CAG सेव व्यापक जांच कराई जाये और नियम विरुद्ध कार्य करने वाले अफसरों और अन्य लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाये।