मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और मंत्रीगण होंगे शामिल
रायपुर। बालोद के राजाराव पठार में आदिवासी कुंभ का आयोजन 8, 9 और 10 दिसंबर को होगा। सर्व आदिवासी समाज जोरों से इसकी तैयारी में जुटा हुआ है। इस वर्ष कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आने की संभावना हैं। वहीं, आरएसएस के सामाजिक समरसता प्रमुख रामलाल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। वहीं, 10 दिसंबर को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को आमंत्रित किया गया है और 8-9 दिसंबर को मंत्री, विधायक और समाज के वरिष्ठजन समेत अन्य सदस्य शामिल होंगे। साथ ही सर्व आदिवासी समाज इस कुंभ में अपने लंबित मांगों पर विशेष चर्चा करेगा।
कौन है रामलाल…?
रामलाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। वे 13 वर्षों तक भाजपा के महासचिव (संगठन) रहे और पार्टी के सबसे लंबे समय तक महासचिव रहने वाले व्यक्ति थे। वे भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों जैसे ABVP के भीतर अपने संगठनात्मक कौशल और समन्वय के लिए जाने जाते थे। उन्होंने भाजपा के कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर मजबूती प्रदान करने के लिए ‘बूथ जीता-चुनाव जीता’ का नारा दिया। उन्होंने 2022 में केरल का दौरा किया।
रामलाल आपातकाल के दिनों से ही संघ में सक्रिय रहे हैं। उस दौरान वे 8 महीने से ज्यादा समय तक जेल में भी रहे। भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में उनकी एक अलग पहचान है। उनके कार्यकाल के दौरान भाजपा ने दो आम चुनावों और कई विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की। जुलाई 2019 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख के तौर पर वापस आ गए।
राजाराव पठार पर हर साल होता है आदिवासी कुंभ
छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक धरोहर, त्योहारों और परंपराओं के लिए देशभर में प्रसिद्ध है, जिसमें मेला मड़ई का विशेष महत्व है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में मड़ई का आयोजन अलग-अलग रूपों में किया जाता है, लेकिन बालोद जिले में हर साल आयोजित होने वाला वीर मेला खास महत्व रखता है। यह मेला आदिवासी समाज के नेतृत्व में राजाराव पठार ग्राम करेंझर में आयोजित होता है, जिसे वीर मेला या देव मेला भी कहा जाता है।
राजाराव पठार में बालोद, धमतरी और कांकेर जिलों के आदिवासी समाज द्वारा आयोजित किया जाने वाला यह मेला आदिवासी संस्कृति और परंपरा को जानने का एक बड़ा केंद्र है। यहां आकर लोग आदिवासी समाज की वेशभूषा और संस्कृति से परिचित हो सकते हैं। इसे आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला माना जाता है, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी शामिल होते हैं। तीन दिवसीय इस मेले में ध्रुव, गोड़, बैगा, कमार समाज के आदिवासी भी शामिल होते हैं।
शहीद वीर नारायण को श्रद्धांजलि
इस मेले के माध्यम से शहीद वीर नारायण सिंह की श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है। 2013 में इस मेले से शहीद वीर नारायण सिंह का नाम जुड़ा और उनकी शहादत दिवस पर 10 दिसंबर को मेले का समापन होता है। आदिवासी समाज के सभी देवी-देवताओं का एक विशाल मिलन होता है, और उनके सम्मान में विशेष पूजापाठ किया जाता है। यह माना जाता है कि गांव के देवी-देवता भी इस मेले में शामिल होते हैं। बाबा राजाराव के साथ-साथ लिंगो बाबा और चरवाहा देव भी यहां स्थापित किए गए हैं, जिसके कारण इसे देव मेला भी कहा जाता है।
बाबा राजाराव की पूजा का महत्व…
बाबा राजाराव की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन यह कहा जाता है कि जब भी क्षेत्र में संकट आता है, तब बाबा राजाराव की पूजा की जाती है। पहले यह मेला करेंझर में होता था, लेकिन बाबा के महत्व को जानने के बाद इसे अब राजाराव पठार में आयोजित किया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि बाबा राजाराव के साथ शेर भी निवास करते हैं, और जब भी कोई संकट आता है, तो शेर की दहाड़ से इसकी सूचना मिलती है। बाबा राजाराव के मुख्य स्थान पर महिलाओं को आने की अनुमति नहीं होती है।