बिलासपुर। न्यायमूर्ति बिभुदत्ता गुरु की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस फैसले में कहा गया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजी अधिनियम) के तहत नियुक्त लोकपाल सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के दायरे में आता है। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त के निर्देश को बरकरार रखा, जिसके अनुसार लोकपाल को आरटीआई आवेदक द्वारा मांगी गई कुछ जानकारी का खुलासा करना आवश्यक था।

ये है मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 2016 के डब्ल्यूपीसी नंबर 2874 के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे मनरेगा अधिनियम के लोकपाल द्वारा दायर किया गया था, जो बस्तर जिले में लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के रूप में भी कार्य करता है। दरअसल बीरबल रात्रे ने 19.08.2015 को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक आवेदन प्रस्तुत किया और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत जगदलपुर (छ.ग.) से 1 जनवरी 2015 से आज तक लोकपाल के समक्ष दायर सभी शिकायतों की प्रति, सभी जांच रिपोर्टों, नोटशीट्स और लोकपाल द्वारा जांच के दौरान दर्ज किए गए बयानों की प्रतियों के बारे में जानकारी मांगी, जिसमें जांच पूरी हो गई है।

उक्त आवेदन के अनुसरण में जिला पंचायत सीईओ जगदलपुर ने उक्त आवेदन को 24.08.2015 द्वारा याचिकाकर्ता को अग्रेषित किया। 24.08.2015 को ज्ञापन प्राप्त होने पर याचिकाकर्ता (लोकपाल) ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि मनरेगा अधिनियम के प्रावधानों के तहत वह अपने पास मौजूद सभी सूचनाओं को गुप्त रखने के लिए बाध्य है और किसी भी व्यक्ति को इसका खुलासा नहीं कर सकता। यह भी उत्तर दिया गया कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के प्रावधानों ने ऐसी सूचनाओं को आरटीआई के तहत किसी को भी बताने से छूट दी है।

राज्य सूचना आयुक्त ने दिया ये निर्देश

जब सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई, तब बीरबल रात्रे ने सीईओ जिला पंचायत जगदलपुर के समक्ष अपील दायर की, लेकिन जब उक्त अपील पर निर्णय नहीं हुआ, तब उसने राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष दूसरी अपील दायर की। आवेदन पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने 19.08.2015 के आदेश के तहत जनसूचना अधिकारी जगदलपुर महेंद्र महावर को बीरबल रात्रे द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों की अवधि के भीतर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

लोकपाल ने दी आदेश को चुनौती

लोकपाल ने छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त द्वारा जारी 30 अगस्त, 2016 के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी थी। इस आदेश में लोकपाल को मनरेगा अधिनियम के तहत दायर शिकायतों और जांच रिपोर्टों के बारे में बीरबल रात्रे (प्रतिवादी संख्या 3) द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया।

याचिकाकर्ता ने दिया ये तर्क

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता केशव देवांगन ने तर्क दिया कि लोकपाल एक अर्ध न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है और आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं है। आरटीआई अधिनियम की धारा 8 प्रत्ययी संबंध में प्राप्त जानकारी के प्रकटीकरण से छूट देती है या जो जांच में बाधा डाल सकती है। एमजीएनआरईजी अधिनियम में धारा 27 के तहत शिकायतों और जांच में गोपनीयता की स्पष्ट रूप से आवश्यकता है।

इस मामले में प्रतिवादी की ओर तर्क दिया गया कि मनरेगा अधिनियम के निर्देशों में विशेष रूप से आरटीआई अधिनियम के दायरे में लोकपाल शामिल हैं। मनरेगा की योजनाओं के कार्यान्वयन में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शिता महत्वपूर्ण है।

0 मनरेगा अधिनियम के तहत लोकपाल की स्थापना

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि ‘एमजीएनआरईजी अधिनियम’ की धारा 27 में प्रावधान है कि यदि ‘एमजीएनआरईजी अधिनियम’ के तहत दी गई निधि के अनुचित उपयोग के बारे में कोई शिकायत प्राप्त होने पर, यदि केंद्र सरकार संतुष्ट है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है तो वह अपने द्वारा नामित एजेंसी द्वारा जांच करवाएगी। लोकपाल की स्थापना ‘मनरेगा अधिनियम’ के तहत की गई है, जिसका उद्देश्य ‘मनरेगा अधिनियम’ के कार्यान्वयन से संबंधित शिकायतों के निवारण और निपटान के लिए एक प्रणाली की स्थापना करना है और यह वैधानिक प्रकृति का है। इसलिए जिस आदेश के तहत याचिकाकर्ता को आवेदनकर्ता बीरबल रात्रे को सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है, वह पूरी तरह से अवैध है और अधिनियम 2005 के विपरीत है।

0 सूचना आयुक्त ने आदेश को बताया उचित

इधर सूचना आयुक्त के अधिवक्ता ने कहा कि लोकपाल को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत शामिल किया जाएगा। राज्य सरकार का नोडल विभाग इस उद्देश्य के लिए लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय प्राधिकरण को अधिसूचित करेगा। राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश उचित और न्यायसंगत है।

0 लोकपाल के अधिकार और कर्तव्य

इस संबंध में जारी निर्देश में प्रावधान है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के लोकपाल अधिनियम, 2005 के अधीन होंगे और कोई भी लोकपाल की कार्यवाही या अधिनियम के बारे में जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना चाहने वाले को प्रदान की जा सकती है। एक बार जब विशेष अधिनियम 2005 यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 में अधिनियम, 2005 के तहत लोकपाल शामिल हो जाता हैलोकपाल को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत कवर किया जाएगा, राज्य सरकार का नोडल विभाग इस प्रयोजन के लिए लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय प्राधिकारी को अधिसूचित करेगा। तो RTI के अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी याचिकाकर्ता द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।

0 याचिका खारिज कर दी हाई कोर्ट ने

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि राज्य सूचना आयुक्त का आदेश कानूनी रूप से वैध और लागू करने योग्य था। परिणामस्वरूप, सूचना आयुक्त के आदेश के 30 दिनों के भीतर जानकारी का खुलासा करने के निर्देश की पुष्टि करते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया गया।न्यायलय ने कहा कि जहां तक ​​याचिकाकर्ता का यह तर्क है कि उसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8 से छूट प्राप्त है, सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 के अवलोकन से, यह लोकपाल के अधिनियम के लिए कोई छूट निर्धारित नहीं करता है और लोकपाल/याचिकाकर्ता के पास मौजूद जानकारी को बिल्कुल भी छूट नहीं है। इसलिए, सूचना आयुक्त ने याचिकाकर्ता जनसूचनाअधिकारी को आवेदनकर्ता बीरबल रात्रे द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने का सही निर्देश दिया।