नेशनल डेस्क। इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने हाल ही में यह सुझाव दिया था कि देश के आर्थिक प्रगति के लिए युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा था कि भारत को विकसित देशों के बराबर पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता है। वहीं, 70 घंटे काम करने का सुझाव युवाओं के काम में उत्पादकता बढ़ाने और भारत को एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनाने के उद्देश्य से दिया गया था। अब उनके सुझाव को उद्योगपति और राजनेता दूसरी दिशा में डायवर्ट करने में जुट गए हैं।

जोहो कॉरपोरेशन के सीईओ श्रीधर वेम्बु ने सोशल मीडिया पर इस सुझाव पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि 70 घंटे काम करने के तर्क को आर्थिक विकास के लिए आवश्यक बताया जाता है। जापान, साउथ कोरिया, ताइवान और चीन जैसे देशों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यहां कठिन परिश्रम से आर्थिक उन्नति हुई हैं। वहीं, अब ये देश कम जनसंख्या की संकट से जूझ रहे हैं, सरकार लोगों से बच्चे पैदा करने की अपील कर रही हैं।
अपने पोस्ट में उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या आर्थिक विकास के लिए इतना कठिन परिश्रम जरूरी है? दूसरा सवाल यह कि क्या ऐसा विकास उस अकेले बुजुर्ग जीवन के लायक है, जो बड़ी संख्या में लोगों का भविष्य बन सकता है?
अपने पहले सवाल पर वेम्बु ने कहा कि हर किसी के लिए अत्यधिक मेहनत करना आवश्यक नहीं है। अगर देश की केवल 2 से 5 प्रतिशत की आबादी कड़ा परिश्रम कर ले तो बहुत है और बाकी लोग संतुलित जीवन का निर्वहन कर सकते हैं।
दूसरे सवाल पर उन्होंने चीन के आर्थिक मॉडल को अपनाने से सावधान किया, जो जनसंख्या में गिरावट का मुख्य कारण बन रहा है। वेम्बु ने कहा कि भारत पहले से ही जनसंख्या प्रतिस्थापन स्तर पर है और इसे पूर्वी एशियाई स्तरों तक गिराना अच्छा नहीं होगा। मेरा मानना है कि हम विकास कर सकते हैं, बिना खुद को जनसंख्या संकट की ओर धकेले।
अदाणी ने कहा- आठ घंटे काम करने से बीवी भाग जाएगी
70 घंटे काम करने की बहस के बीच अदाणी समूह के चेयरमैन का बयान आया है। उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति अपना पसंदीदा काम करता है तब जाकर वह संतुलित महसूस करता है। अगर व्यक्ति यह मान ले कि जीवन नश्वर है, तो उसके लिए जीवन जीना भी मुश्किल हो जाता है।
अदाणी ने कहा कि आपका कार्य जीवन संतुलन मुझ पर थोपा नहीं जाना चाहिए और न ही मेरा कार्य जीवन संतुलन आप पर थोपा जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अपने परिवार के साथ चार घंटे समय बिताकर खुश है या फिर कोई आठ घंटे समय बिता कर खुश है तो यह उनका संतुलन है। मजाकिया अंदाज में उन्होंने कहा कि अगर आप अपने काम पर आठ घंटे बिताते हैं तो आपकी बीवी भाग जाएगी।
उन्होंने आगे कहा कि आपका कार्य जीवन तब संतुलित होता है जब आप वह काम करते हैं, जिसे करने में आपको मजा आता है। हमारे लिए या तो परिवार है या काम। इससे बाहर कोई दुनिया नहीं है। हमारे बच्चे भी इसी पर ध्यान देते हैं। जो लोग यह समझ जाते हैं, उनका जीवन आसान हो जाता है।
घंटों की संख्या पर फोकस करना ठीक नहींः मित्तल
शादी डॉट कॉम के फाउंडर और सीईओ अनुपम मित्तल ने कहा कि काम किए गए घंटों की संख्या पर फोकस करना ठीक नहीं है। मुझे लगता है कि इस पीढ़ी से कहा जाने वाला यह सबसे बड़ा झूठ है। आप अपने जीवन में कुछ भी असाधारण हासिल नहीं करेंगे अगर आप केवल यह गिनते रहें कि आप कितने घंटे काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वर्क-लाइफ बैलेंस पूरी पीढ़ी को नष्ट कर रहा है और इस पर जोर दिया कि सफलता और संघर्ष हमेशा एक साथ चलते हैं। उनके अनुसार युवा प्रोफेशनल्स को अपने करियर के शुरुआती वर्षों में चरित्र निर्माण और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए खुद को प्रेरित करना चाहिए। शुरुआती वर्षों में कठिनाई और संघर्ष सहना जरूरी है क्योंकि यह सफलता की ओर एक कदम और बढ़ने में मदद करता है।
फाउंडर्स और रेग्यूलर कर्मचारियों की स्थिति अलग-अलगः नमिता थापर
एमक्योर फार्मास्यूटिकल्स की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर नमिता थापर ने मित्तल की राय पर असहमति जताते हुए कहा कि यह बकवास है। उन्होंने कहा कि फाउंडर्स और रेगुलर कर्मचारियों के लिए स्थिति बहुत अलग है। थापर ने बताया कि उनके जैसे फाउंडर्स के पास अपने बिजनेस में अहम वित्तीय हिस्सेदारी होती है और इसलिए वे लंबे समय तक काम करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं, जो नियमित कर्मचारियों के लिए संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि इसलिए, मुझे लगता है कि फाउंडर्स और हाई स्टेकहोल्डर्स, जो बहुत सारा पैसा कमाते हैं, इसके लिए आगे बढ़े। हमेशा के लिए दिन में 24 घंटे काम करें। लेकिन मुझे लगता है कि आम आदमी और महिला के काम करने के लिए एक निश्चित घंटे तय होने चाहिए, और निश्चित रूप से जब डिलीवरेबल्स होते हैं लोग लंबे समय तक काम करते हैं, लेकिन यह नॉन-स्टॉप, स्टेंडर्ड नंबर के आधार पर नहीं होता है।
70 घंटे काम करने का फॉर्मूला बेकारः चिदंबरम
कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने मूर्ति के सप्ताह में 70 घंटे काम करने वाले सुझाव को बेकार बताया है। उन्होंने कार्य कुशलता और प्रोडक्टिविटी पर जोर डालते हुए कहा कि हमें सप्ताह के चार दिन काम की ओर बढ़ना चाहिए। लोगों को लंबे समय तक काम करने के बजाय कुशलता पर फोकस करना चाहिए। लंबे समय तक काम करना फायदेमंद नहीं है बल्कि कुशलता और प्रोडक्टिविटी पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है। रोजमर्रा की जिंदगी पहले से ही एक संघर्ष है, जहां हमें खराब बुनियादी ढांचे और सुविधाओं से जूझना पड़ता है। वर्क-लाइफ बैलेंस एक अच्छे सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य के लिए बहुत जरूरी है।