बिलासपुर। हाईकोर्ट में जस्टिस ए.के. प्रसाद की एकलपीठ ने डीकेएस अस्पताल के डॉक्टर प्रवेश शुक्ला की सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बिना विभागीय जांच और सुनवाई का अवसर दिए सेवा पर ऐसा धब्बा लगाने वाला (स्टिग्माटाइज्ड) आदेश पारित करना अवैध है, चाहे डॉक्टर संविदा नियुक्ति पर ही क्यों नहीं हो।

डॉक्टर ने इस तरह दी थी चुनौती
यह मामला रायपुर के दाऊ कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (DKS) का है, जहां गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर प्रवेश शुक्ला ने अपनी सेवा समाप्ति को अधिवक्ता संदीप दुबे के जरिये हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। डॉ. शुक्ला ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार ने बिना किसी विभागीय जांच और सुनवाई के उनके खिलाफ आरोप लगाकर उनके सेवामुक्ति का आदेश जारी किया, जो उनके करियर को बर्बाद कर सकता है।
अनवर ढेबर के इलाज से जुड़ा है प्रकरण
यह विवाद 8 जून 2024 को तब शुरू हुआ जब शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर को रायपुर सेंट्रल जेल से इलाज के लिए अस्पताल लाया गया। अस्पताल में लोअर एंडोस्कोपी मशीन खराब होने के कारण डॉक्टर शुक्ला ने उन्हें एम्स रेफर कर दिया। राज्य सरकार ने इसे अनुशासनहीनता और सेवा में कमी मानते हुए डॉक्टर की सेवा समाप्त कर दी और गोलबाजार थाने में FIR दर्ज कराई।
डॉ. शुक्ला ने अपनी याचिका में कहा कि वे सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और चिकित्सा क्षेत्र में सेवा के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ लौटे हैं। उन्होंने बताया कि लोअर जीआई एंडोस्कोपी (कोलोनोस्कोपी) के लिए आवश्यक उपकरण अस्पताल में उपलब्ध नहीं थे और यह जांच प्रक्रिया आमतौर पर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट द्वारा की जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं हैं और इसलिए उन्होंने मरीज को अन्य अस्पताल रेफर किया।
याचिका में उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अनुशासनात्मक जांच समिति गठित करने की उनकी मांग को नजरअंदाज कर दिया गया और उनके खिलाफ बिना किसी उचित जांच के उन्हें कलंकित करने वाला आदेश जारी कर दिया गया।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का हुआ उल्लंघन
जस्टिस प्रसाद की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार ने सेवा समाप्ति का आदेश जारी करते समय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया। जस्टिस प्रसाद ने अपने आदेश में लिखा कि ‘यह आदेश स्टिगमैटाइज्ड है और इसमें विभागीय जांच और सुनवाई का पालन नहीं किया गया है।’ अदालत ने इसे अवैध मानते हुए रद्द कर दिया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि संविदा नियुक्ति के मामलों में भी, अगर कोई सेवा समाप्ति जैसा आदेश आरोप लगाते हुए जारी किया जाता है तो यह उचित जांच और सुनवाई के बाद ही किया जाना चाहिए।