रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में राज्य कैबिनेट की बैठक कराने की मांग जोर पकड़ रही है। 1981 में तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने बस्तर के जगदलपुर में मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित की थी, और इसके बाद से राज्य कैबिनेट की बैठक राजधानी से बाहर शायद ही कभी हुई हो।

अर्जुन सिंह ने रखी थी परंपरा की नींव

अर्जुन सिंह ने अपने कार्यकाल में राजधानी भोपाल के बाहर पचमढ़ी और बस्तर के जगदलपुर में कैबिनेट की बैठक आयोजित कर नई परंपरा की शुरुआत की थी। उन्होंने 16 और 17 नवंबर 1981 को जगदलपुर में बैठक की, जहां विकासखंडों को तहसीलों का दर्जा देने और नई तहसीलों के गठन जैसे बड़े फैसले लिए गए। यही नहीं, उन्होंने बस्तर को अलग संभाग का दर्जा देकर क्षेत्रीय विकास को प्राथमिकता दी।

अर्जुन सिंह ने बस्तर दौरे की शुरुआत भी एक चुनौतीपूर्ण घटना से की थी, जब उनका हेलीकॉप्टर जंगल में रास्ता भटक गया। नक्सलवाद उस समय समस्या नहीं था, लेकिन सुरक्षा के अभाव में उन्हें शरणार्थियों के बीच कई घंटे बिताने पड़े। बाद में प्रशासनिक टीमें उन्हें सुरक्षित लेकर लौटीं।

अजीत जोगी ने जारी रखी परंपरा

छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद, पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी अर्जुन सिंह की परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने राजधानी रायपुर से बाहर सरगुजा के अंबिकापुर में मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित की। यह पहली बार था जब प्रदेश सरकार ने किसी जिले के विकास की रूपरेखा तय करने के लिए राजधानी से बाहर कदम रखा। इस बैठक में जिले के विकास कार्यों को लेकर करोड़ों के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए।

अजीत जोगी ने सरगुजा विकास प्राधिकरण का गठन किया और शक्कर कारखाने एवं सरगुजा विश्वविद्यालय जैसी परियोजनाओं की घोषणा की। उनकी नेतृत्व शैली आक्रामक थी, और उन्होंने अंबिकापुर दौरे के दौरान खस्ताहाल सड़कों के कारण कुछ अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था।

बस्तर में फिर क्यों नहीं?

अब 44 साल बाद सवाल उठ रहा है कि बस्तर में कैबिनेट बैठक क्यों नहीं हो सकती। अर्जुन सिंह और अजीत जोगी ने क्षेत्रीय विकास पर जोर देते हुए राजधानी से बाहर बैठकें कीं, लेकिन वर्तमान सरकारें यह परंपरा क्यों नहीं दोहरा रहीं?

आज से 44 साल पहले बस्तर में सुविधाओं का अभाव था इसके बावजूद सरकार की इच्छा शक्ति के कारण उस दौरान कैबिनेट बैठक बस्तर जैसे आदिवासी अंचल में की गई। आज जब विकास की पहुंच दूर-दूर तक है। बस्तर पहले से काफी बदल चुका है। सड़के दुरुस्त हैं, पहले की तुलना में यातायात की बेहतर सुविधाएं भी हैं फिर ऐसी कौन सी अड़चन है कि सरकार अपने कदम बस्तर की ओर नहीं बढ़ा रही?