रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में एरियर्स के नाम पर प्रोफेसर्स और वैज्ञानिकों को ‘रेवड़ी’ बांटे जाने के मामले की जांच रिपोर्ट मिलने के बाद कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने कहा है कि इस मामले में आवश्यक कार्यवाही की जाएगी। यह घोटाला लगभग 12 करोड़ रूपये का है, और मामला उजागर होने के बाद, अब भी अपात्र प्रोफेसरों को बढ़ा हुआ वेतन बांटा जा रहा है।

ICAR के नियमों का उल्लंघन

इस घोटाले में 54 सहायक प्राध्यापकों और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की भर्ती और उन्हें समय-समय पर दिए गए वित्तीय लाभ में गंभीर अनियमितताएं पाई गई हैं। दरअसल कृषि विश्वविद्यालय में 2003, 2005 और 2007 में सहायक प्राध्यापकों और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की भर्ती की गई थी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भर्ती नियमों के अनुसार, इन शिक्षकों को दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि के भीतर ‘नेट’ परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी, लेकिन कई शिक्षकों ने आठ से नौ वर्षों तक यह परीक्षा पास नहीं की। इसके बावजूद, उनकी परीवीक्षा अवधि लगातार बढ़ाई जाती रही और उन्हें न केवल सेवा में बनाए रखा गया।

कृषि विश्वविद्यालय में 2003, 2005 और 2007 में सहायक प्राध्यापकों और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की भर्ती की गई थी। भर्ती नियमों के अनुसार, इन शिक्षकों को दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि के भीतर नेट परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी। लेकिन कई शिक्षकों ने आठ से नौ वर्षों तक यह परीक्षा पास नहीं की। इसके बावजूद, उनकी परीवीक्षा अवधि लगातार बढ़ाई जाती रही और उन्हें न केवल सेवा में बनाए रखा गया, बल्कि उन्हें एरियस का भुगतान भी कर दिया गया। इतना ही नहीं, नियमों के विपरीत जाकर इन शिक्षकों को पदोन्नति देकर प्राध्यापक (प्रोफेसर) और वरिष्ठ वैज्ञानिक बना दिया गया। जबकि नियमानुसार, अगर कोई सहायक प्राध्यापक दो वर्षों में नेट परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करता, तो उसकी सेवा स्वतः समाप्त मानी जानी चाहिए थी।

अपात्र होते हुए भी मिल रहा लाखों का वेतन

इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय में सालों से चल रहे इस घोटाले की जानकारी सभी को थी मगर किसी ने भी शिकायत नहीं की। मामले में विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एस.के. पाटिल और वर्तमान कुलपति गिरीश चंदेल ने भी अनदेखी की। आखिरकार जब राज्य शासन के कृषि मंत्रालय तब यह बात पहुंची तब जांच का आदेश जारी किया गया। विश्व विद्यालय के दो वरिष्ठ अफसरों की अगुवाई में इस मामले की जांच की गई तब पता चला कि पूरा मामला ही गोल-मोल है।

IGKV में हुए इस घोटाले पर गौर करें तो यह नजर आता है कि पूर्व में भर्ती हुए सहायक प्राध्यापकों और कनिष्ठ वैज्ञानिकों को नेट क्वालीफाई किये बिना ही पदोन्नति दे दी गई, साथ ही इसके एवज में उन्हें एरियर्स दिया गया और उनका वेतन बढ़ा दिया गया। आज इनमें से कई प्रोफेसर बन गए हैं और उन्हें 3 लाख रूपये से भी अधिक का वेतन मिल रहा है। इस तरह अब भी इन्हें अपात्र होते हुए भी बढ़े हुए वेतन का लाभ दिया जा रहा है। मामले की जांच से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि इस घोटाले में शासन को अब तक लगभग 12 करोड़ रुपयों का नुकसान हो चुका है।

जांच रिपोर्ट में ये हैं प्रस्ताव

राज्य सरकार के निर्देश पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की गई जांच के रिपोर्ट में कहा गया है कि वरीयता सूची में संशोधन किया जाए, पदोन्नत शिक्षकों को पुनः उनके पुराने पद पर लाया जाए और असफल परीवीक्षाधीन अवधि को कुल सेवा अवधि में शामिल न किया जाए। घोटाले में शामिल शिक्षकों से तीन लाख रुपये से लेकर 38 लाख रुपये तक की वसूली करने की सिफारिश की गई है।

अफसरों पर भी हो कार्यवाही

इस घोटाले के जानकारों का तो यह भी कहना है कि इस तरह की वित्तीय गड़बड़ी में केवल शिक्षकों से वसूली करना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि जिन अफसरों ने नियमों को ताक पर रखकर यह सब कुछ किया, उनके खिलाफ भी कार्यवाही होनी चाहिए।

क्या कहना है कृषि मंत्री रामविचार नेताम का

विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा इस पूरे मामले की जांच रिपोर्ट एक पखवाड़े पूर्व कृषि मंत्रालय में प्रस्तुत कर दिया है। इस संबंध में मीडिया से चर्चा करते हुए कृषि मंत्री रामविचार ने कहा है कि नियमों के खिलाफ एरियर्स देने के मामले में जांच प्रतिवेदन के आधार पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। माना जा रहा है कि इस मामले में मंत्रालय से देर-सबेर कार्यवाही का आदेश आ ही जायेगा, और अगर जांच प्रतिवेदन में उल्लेखित प्रस्ताव के आधार पर कार्यवाही का आदेश जारी हुआ तो IGKV में तहलका मचना स्वाभाविक है। फिलहाल सभी की नजरें कृषि मंत्रालय पर टिकी हुई है।