रायपुर। छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में पंडवानी गायन एक अनूठी विधा है, जिसने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। इस विधा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में कई महिला कलाकारों का योगदान रहा है। महिला दिवस के अवसर पर, हम उन प्रेरणादायक महिलाओं की कहानी साझा कर रहे हैं, जिन्होंने अपने संघर्ष और संकल्प के बलबूते पंडवानी को जीवंत बनाए रखा।

तीजन बाई :

छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजन बाई का जन्म 24 अप्रैल 1956 को भिलाई के गनियारी गांव में एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता हुनुकलाल परधा और मां सुखवती परधा थीं। बचपन में वे अपने नानाजी ब्रजलाल से महाभारत की कहानियां सुनती थीं और छुपकर पंडवानी गायन का अभ्यास करती थीं। उस समय समाज में महिलाओं के लिए इस कला को अपनाना वर्जित था, लेकिन उनकी लगन और जुनून ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ाया।

महज 13 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंचीय प्रदर्शन दुर्ग जिले के चंद्रखुरी गांव में किया। उनके गायन की प्रतिभा को रंगकर्मी हबीब तनवीर ने पहचाना और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने प्रस्तुति देने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने न केवल भारत बल्कि फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन सहित कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। 1988 में दूरदर्शन के चर्चित कार्यक्रम भारत एक खोज में भी उन्होंने प्रस्तुति दी।

तीजन बाई को पंडवानी में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1988 में पद्मश्री, 2003 में पद्मभूषण और 2019 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया। इसके अलावा, कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि भी प्रदान की। सामाजिक पाबंदियों के कारण वे स्कूल नहीं जा पाईं, लेकिन साक्षरता अभियान के तहत उन्होंने पांचवीं तक की शिक्षा प्राप्त की।

उनका व्यक्तिगत जीवन संघर्षों से भरा रहा। 12 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी, लेकिन पंडवानी गाने के विरोध के चलते वे अपने पति से अलग हो गईं। इसके बाद उन्होंने दो शादियां कीं, जो सफल नहीं रहीं। अंततः उन्होंने अपनी मंडली के हार्मोनियम वादक तुक्का राम से प्रेम विवाह किया।

उषा बारले :

तीजन बाई की शिष्या उषा बारले ने भी इस विधा को आगे बढ़ाया। महज सात वर्ष की उम्र से पंडवानी गाने वाली ऊषा बारले ने 45 वर्षों के करियर में 12 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनकी कला को देखते हुए सरकार ने उन्हें भी पद्मश्री सम्मान से नवाजा।

पद्मश्री उषा बारले को अब तक छत्तीसगढ़ भुईयां सम्मान, चक्रधर सम्मान, मालवा सम्मान, दाऊ महासिंग चंद्राकर सम्मान, मिनीमाता सम्मान, 2006 गणतंत्र दिवस पर सम्मान, पद्मश्री सम्मान मिल चुके है।

रितु वर्मा :

10 जून 1979 को भिलाई की श्रमिक रूआबांधा में जन्मी कु. रितु वर्मा ने 6 साल की उम्र से ही पंडवानी गायन कर रही हैं। उन्होंने 16 देशों में अपनी प्रस्तुति देकर छत्तीसगढ़ की संस्कृति को वैश्विक मंच पर पहुँचाया। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें उस्ताद बिस्मिल्ला खां पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उन्होंने अगस्त 1989 में विदेशी मंच पर अपना पहला कार्यक्रम दिया। मात्र दस वर्ष की उम्र में जापान में अपना कार्यक्रम देकर रितु ने वह गौरव हासिल किया जो बिरले कलाकारों को मिलता है। रितु छतीसगढ़ की पहली ऐसी प्रतिभा संपन्न कलाकार है जिसने इतनी छोटी उम्र में ऐसा विलक्षण प्रदर्शन दिया। घुटनों के बल बैठकर और एक हाथ में तंमूरा लेकर रितु ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कार्यक्रम दिया। कार्यक्रम में आये जापानी दर्शक गोरी चिट्टी छुई हुई सी लगने वाली इस पंडवानी विधा की गुडिय़ा के प्रदर्शन पर देर तक तालियां बजाते रहे। संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली द्वारा महोत्सव के लिए जापान प्रवास का यह सुअवसर रितु को लगा। तब से वह लगातार विदेश जा रही है। 1991 में आदिवासी लोक कला परिषद भोपाल ने उसे जर्मनी एवं इंग्लैंड भेजा। तब तक रितु की कला और निखर चुकी थी। वहां उसे खूब वाहवाही मिली।

शांति बाई चेलक :

पंडवानी गायन में लोक कलाकार शांति बाई चेलक का एक विशिष्ट नाम है | इनका जन्म 15/12/1968 को हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा तो नहीं हुई है पर इन्होने प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत शिक्षा ग्रहण की है जिसकी वजह से ये songs के lyrics और अन्य चीजे पढ़ पाती है | इन्होने 11 साल की उम्र में रामायण गायन के कार्यक्रम से अपने सफर की शुरुआत की। शुरुआत में उनके परिवार ने इस क्षेत्र में जाने से रोका, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनके पिता भी बाद में उनके सबसे बड़े समर्थक बने। आज वे एक प्रतिष्ठित पंडवानी गायिका हैं और कई सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं।

मीना साहू :

सन उन्नीस सौ सत्तर के दशक के आरम्भ में ही रन चिरई ग्राम की मीना साहू ने पंडवानी के कार्यक्रम देना आरम्भ किया। वे तेली समुदाय की हैं और उन्होंने स्वप्रेरणा से इस क्षेत्र में प्रवेश किया। पांचवी कक्षा तक पढ़ी मीना साहू ने तेरह वर्ष की आयु में पंडवानी कार्यक्रम में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। उनके गांव रन चिरई जिला रायपुर में एक तुलसी राम साहू नामके व्यक्ति थे जो महाभारत की कथा और कुछ गाना -बजाना भी जानते थे ,मीना साहू ने उन्ही से पंडवानी सीखी। वे कहती हैं उस समय सबल सिंह चौहान द्वारा लिखित महाभारत अधिक प्रचलन में थी पर मैंने कल्याण महाभारत , बाल महाभारत , सचित्र महाभारत और व्यास महाभारत भी पढ़ी। आरम्भ में उनके समाज के लोगों ने कुछ विरोध किया परन्तु माता -पिता और परिवारवालों का प्रोत्साहन और सहयोग पाकर वे पंडवानी गायन में जुटी रहीं। उनकी तीजन बाई से बहुत आत्मियता है ,उनके साथ कार्यक्रम भी किये हैं।

प्रभा यादव :

सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक के आरम्भ में प्रभा यादव ने पंडवानी गायकी की दुनियां में कदम रखा। पंडवानी गायकी प्रभा यादव ने पंडवानी गायन की शिक्षा झाडूराम देवांगन से ली। जिला रायपुर के चंदखुरी गांव के एक राउत अहीर परिवार में जन्मी प्रभा ने कक्षा तीन तक पढ़ाई की फिर उसके बाद झाडूराम देवांगन के परिवार में उनके साथ रहकर पंडवानी सीखी। वे अपने गुरु और गुरु परिवार के प्रति समर्पित एवं निष्ठावान शिष्या के रूप में सदैव उनका गुणगान करती हैं। उन्हें इस बात का गर्व है कि वे झाडूराम देवांगन की परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।

छत्तीसगढ़ की अन्य महिला कलाकार

पंडवानी गायन को समृद्ध बनाने में अन्य महिला कलाकारों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनमें कुमारी निषाद, इंदिरा जांगड़े, अमृता साहू, प्रतिमा बारले, कुंती गंधर्व, जाना बाई सतनामी, पूर्णिमा साहू जैसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा से इस कला को जीवंत रखा।