टीआरपी डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसे देश की आर्थिक स्थिरता और जनता के विश्वास के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि सरकार और राजनीतिक दलों के उच्च पदों पर बैठे भ्रष्ट तत्व समाज के लिए किराए के हत्यारों से भी अधिक घातक हैं।

भ्रष्टाचार मुक्त समाज के लिए कठोर कदम आवश्यक

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ब्रिटिश राजनेता एडमंड बर्क के कथन का हवाला देते हुए कहा कि भ्रष्ट लोगों के बीच स्वतंत्रता लंबे समय तक नहीं टिक सकती। अदालत ने अफसोस जताते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के स्पष्ट दुष्परिणामों के बावजूद यह अनियंत्रित रूप से फल-फूल रहा है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी अभियुक्त को स्वतंत्रता से वंचित करने से भ्रष्टाचार मुक्त समाज की दिशा में बढ़ा जा सकता है, तो न्यायालयों को इस पर कोई संकोच नहीं करना चाहिए।

रिश्वत का वास्तविक आदान-प्रदान आवश्यक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा कि रिश्वत लेने के लिए वास्तविक नकद लेन-देन की आवश्यकता नहीं है। यदि कोई सरकारी कर्मचारी बिचौलियों या दलालों के माध्यम से रिश्वत लेता है या फिर किसी भी रूप में महंगे उपहार स्वीकार करता है, तो उसे भी दंडनीय अपराध माना जाएगा।

भ्रष्टाचार से बढ़ती है आर्थिक अशांति और अविश्वास

अदालत ने कहा कि यदि समाज की समृद्धि और प्रगति को रोकने वाले सबसे बड़े कारण को पहचाना जाए, तो नि:संदेह वह भ्रष्टाचार ही होगा। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि भ्रष्टाचार को अक्सर दंडमुक्ति मिलती है, जिससे जनता का विश्वास कमजोर पड़ता है और देश में आर्थिक अस्थिरता पैदा होती है।

सच्चाई से बहुत दूर नहीं होती आम धारणा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के बारे में जनता की आम धारणा पूरी तरह गलत नहीं होती। उच्च पदों पर बैठे प्रभावशाली लोग जब दंड से बचकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, तो यही आर्थिक अस्थिरता और अविश्वास का मूल कारण बनता है। अदालत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया और इसे देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा करार दिया।