रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश की कालका-शिमला रेल मार्ग पर स्थित बड़ोग की (barog) सुरंग भुतहा नहीं है, भूत प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं होता। कर्नल बड़ोग के नाम पर बनी इस सुरंग (टनल) के भुतहा होने संबंध में कुछ स्थानीय लोगों व मीडिया के द्वारा फैलाई गई अफवाह तर्कहीन है, यह स्टेशन विश्व हेरिटेज यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में है, फिर भी समय-समय पर इसके संबंध में अन्धविश्वास, भ्रम फैलाया जाता रहा है। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के दल ने बड़ोग में जाकर इसकी सच्चाई जानी।

सुरंग का नाम बड़ोग कैसे पड़ा..?

डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया कि मिली जानकारी के मुताबिक 20वीं सदी की शुरुआत में कालका-शिमला रेलवे के निर्माण के दौरान सोलन के नजदीक एक छोटा सी बस्ती है। जिसका नाम एक इंजीनियर कर्नल बड़ोग के नाम पर रखा गया है, जिसने 1903 में उस क्षेत्र में रेलवे लाइन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कर्नल बड़ोग एक ब्रिटिश रेलवे इंजीनियर थे, जो पहाड़ों में रेलवे के लिए सुरंग बनाने का काम करते थे। बड़ोग से पहाड़ में सुरंग बनाने के नापजोख में कुछ त्रुटि हो गई जिससे वजह से दोनों तरफ से बनने वाली सुरंग कभी मिल ही नहीं पाई, जिस से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा उन पर कार्यवाही करते हुए एक रुपये का जुर्माना लगाया गया था। बड़ोग से यह अपमान सहन नहीं हुआ और उसी स्थान पर बड़ोग ने आत्महत्या कर ली। बाद में उन्हें एक अधूरी सुरंग के पास दफना दिया गया। इस स्थान को बाद में बड़ोग के नाम से जाना गया, यह सुरंग मार्ग की सबसे लंबी सुरंग है।

रोमांचक स्टोरी के फेर में भुतहा बन गया टनल

डॉ दिनेश मिश्र ने इस सन्दर्भ में कहा कि कभी-कभी सिर्फ रोमांचक स्टोरी बनाने के फेर में मीडिया भी अंधविश्वास फैलाने का एक माध्यम बन जाता है, जब मैंने इस सुरंग के बारे में जानकारी प्राप्त की, तब मुझे देश के बड़े-बड़े समाचार पत्रों में इस सुरंग के बारे में सिर्फ एक तरफा स्टोरी ही सुनाई व दिखाई दी यहां तक कि देश के प्रतिष्ठित अख़बार और कुछ चर्चित चर्चित टी वी चैनलों तथा कुछ वेबसाइट में सिर्फ एक तरफ तरफा खबरें ही दिखाई और सुनाई पड़ी, कि इस सुरंग में कर्नल बड़ोग का भूत रहता है, वहां लोग आने से डरते हैं, शाम को कर्नल बड़ोग की चीखें सुनाई पड़ती हैं, रात में रहस्यमयी वातावरण हो जाता है आदि आदि। इस प्रकार की अफवाहें फैलती चली गई, कि बड़ोग स्टेशन को भुतहा (हॉन्टेड) स्टेशन के नाम से दुष्प्रचारित कर दिया गया, जबकि यह स्टेशन पहाड़ियों व जंगलों के बीच अपनी प्राकृतिक छटा के कारण यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है।

सच्चाई जानने के लिए पहुंच गए बड़ोग

डॉ दिनेश मिश्र ने कहा कि बड़ोग के संबंध में इस प्रकार की जानकारी होने के बाद हमने तय किया कि अपने साथियों के साथ वहां जा कर, परीक्षण कर कर्नल बड़ोग स्टेशन के संबंध में और इस स्टेशन के बारे में फैलाई जा रही अफवाहों के बारे में कुछ सही बातें और तार्किक की बातें लोगों को बताई जाए। पिछले दिनों जब उनका हिमाचल जाना हुआ, तब दिल्ली से चंडीगढ़ होते हुए हम कसौली गए, और फिर वहां से दूसरे दिन सालोन नामक स्थान पर पहुंचे, जिसके जुड़ा हुआ ही बड़ौद स्टेशन है, स्टेशन से नीचे उतरने के लिए काफी कच्चा रास्ता है, काफी ढलान है, सकरी पगडंडी है, लेकिन आसपास के दृश्य अत्यंत सुंदर और प्राकृतिक हैं, चीड़ और देवदार के पेड़ों से भरे इस क्षेत्र में उन साथ में डॉ. सुभाष अग्रवाल डॉ अतुल तिवारी डॉ. मोनिका अग्रवाल, शताक्षी तिवारी और सुजाता को मिलाकर छह लोगों का दल इस मुहिम में शामिल हुआ।

बड़ोग स्टेशन मुख्य सड़क से करीब डेढ़ किलोमीटर नीचे है, जहां से स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंचे। सुबह 11 बजे भी प्लेटफार्म पर न कोई यात्री था और न ही कोई कर्मचारी और न कोई वेंडर।
वर्ल्ड हेरिटेज साइट का शिलालेख मौजूद

बड़ोग का प्लेटफार्म लंबा साफ सुथरा और सुंदर है, जहां यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल करने का शिलालेख निर्मित है। बड़ोग सुरंग जो दूर से ही दिखाई देता है। वहां लिखा हुआ है 33 नंबर, इसके बारे में मीडिया के काफी हिस्से ने रहस्यमई सुरंग, भुतहा सुरंग कर्नल बड़ोग के भूत वाली सुरंग के नाम से प्रचारित किया है, सुरंग के द्वार पर ही बड़ोग सुरंग के संबंध में जानकारी अंकित है। यह पुरानी वास्तुकला से निर्मित सुरंग है, जिसमें से पटरिया गुजराती दिखती हैं,अंदर लाइटें भी लगी हैं, इसे सबसे लंबी सुरंग माना जाता है, उसका सिग्नल भी वहीं है। सुरंग के मुहाने व सुरंग के अंदर भी दूरी तक जाकर के हमने देखा, हमें कोई भी भय, डर की बात नहीं लगी। इस दौरान बड़ोग के स्टेशन मास्टर कुलदीप भाया से मुलाकात हुई, जो पिछले 8 वर्षों से बतौर स्टेशन मास्टर कार्यरत हैं, चर्चा के दौरान उन्होंने अपने इतने लंबे कार्यकाल के दौरान किसी भूत को या भुतहा चीख की आवाज नहीं सुनी, उनसे काफी देर तक उनके अनुभव सुने। हम प्लेटफार्म से कुछ ऊंचाई पर बने कैंटीन पर भी गए, वहां मैनेजर, कर्मचारी से बातचीत हुई, जो नियमित रूप से वहां ड्यूटी करते हैं, कैंटीन में काम करने वाले कर्मचारी बड़ोग के समीप गांव से वहां पर काम करने आते हैं। उन्होंने भी कोई चीख नहीं सुनी, उन्हें कभी नहीं लगा कोई वहां पर भूत या आत्मा रहती है।

यहां है कर्नल बड़ोग की कब्र

प्लेटफार्म के नजदीक एक और पुरानी सुरंग है, जिसे बंद कर दिया गया। टीम वहां तक भी पहुंची और कर्नल बड़ोग की कब्र भी देखी।
डॉ. मिश्र ने बताया स्टेशन मास्टर ने जानकारी दी कि वहां पर शिमला जाने वाली ट्रेन जब आती है, तब कुछ लोग उतरते हैं, क्योंकि वह शिमला जाती है, वह पटरी कालका शिमला रूट है इसलिए स्टेशन पर उतरने वालों की संख्या बहुत ही कम होती है, लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी के दौरान कभी भी किसी भी भूत प्रेत असामान्य बातों के न दर्शन हुए उन्होंने कभी ऐसा महसूस हुआ।

बड़ोग स्टेशन के पास ही गांव में बच्चों का स्कूल है, जहां आसपास के गांव से बच्चे पढ़ने आते हैं. वहां पर वैक्सीनेशन के लिए जाती हुई एक मितानिन से भी बातचीत हुई, जो बच्चों के लिए वैक्सीन लेकर जा रही थी। चर्चा के दौरान उसने बताया कि वह नजदीक के गांव से आना जाना करती है लेकिन उसे भी कभी वहां पर कोई भूत प्रेत नहीं दिखे और न डर लगा।

चूक की वजह से करनी पड़ी आत्महत्या

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि भूत प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है। यह बात सही है कि उस सुरंग के निर्माण में कुछ चूक हुई होगी जिसके कारण इंजीनियर कर्नल बड़ोग को आत्महत्या करनी पड़ी, और यह भी सही कि उनको वहां पर दफना दिया गया, उस स्टेशन का नाम भी बड़ोग के नाम पर रख दिया गया है। स्टेशन में उनके संबंध में जानकारी भी वहां लिखी हुई है लेकिन इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि स्टेशन बड़ोग में उनका भूत है, जिसकी चीखने- चिल्लाने की आवाज रात में आती है, वह लोगों को तंग करता है, लोगों को नहीं वहां जाना चाहिए इत्यादि इत्यादि।

भूत वाली बात पूरी तरह से काल्पनिक, अफवाह हैं। आम लोगों को ऐसे अंधविश्वासों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। साथ ही मीडिया को भी इस प्रकार की स्टोरी, जो सिर्फ लोगों में अफवाह और अंधविश्वास फैलाती है, ऐसी स्टोरी प्रसारित करने से भी बचना चाहिए। जिस बड़ोग स्टेशन का नाम यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है, ऐसे प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थान को आम पर्यटकों को देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि पर्यटन बढ़े.

बताते चलें कि कालका शिमला मार्ग पर सौ से अधिक सुरंग हैं, इसके आसपास दर्शनीय स्थल भी हैं, यदि अफवाहों के आधार पर यदि दर्शनीय स्थलों को इस प्रकार से दुष्प्रचारित किया जाएगा तो लोग हमारे प्राकृतिक स्थलों को देखने क्यों आएंगे।

डॉ दिनेश मिश्र ने बताया कि रात में ऐसे सुनसान स्थानों में आने वाली रहस्यमय आवाजों के सन्दर्भ में यही कहना है कि ऊंचे पहाड़ों व जंगलों में आने वाली हवाओं की सरसराहट, शोर अकेले व अंधेरे में रहस्यमयी जरूर लग सकता है, पर उसे डरावना या भुतहा कहना उचित नहीं। वहां जिस स्थान पर हम रात्रि में रुके थे ,वहीं कमरे की खिड़कियों के कांच पूरी तरह बंद न होने से हवाओं की आवाज, सरसराहट, सीटी जैसी आवाज कमरों में गूंज रही थी, जो खिड़कियों के कांच पूरी तरह बंद करने पर बंद हो गईं।

डॉ .मिश्र ने कहा, आज इस वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास फैलाने की नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की जरुरत है। यदि कोई व्यक्ति,चैनल, मीडिया का कोई हिस्सा वहां पर जाकर हमारे साथ में रहना, देखना चाहता है, रात में रुकना चाहता है तो हम दोबारा भी बड़ोग पर जाने और उस स्थान पर रहने उस पर चर्चा करने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।