नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिजनेसमैन शिव शंकर अग्रवाल पर 454 पेड़ काटने के लिए 4 करोड़ 54 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने इसे हत्या से भी जघन्य अपराध बताया और पर्यावरण संरक्षण में सख्ती बरतने की बात कही। अदालत ने कहा कि दोषी को पौधारोपण करने की अनुमति दी जानी चाहिए। और तभी उसके खिलाफ अवमानना याचिका का निपटारा किया जाएगा। अधिवक्ता ने अदालत से जुर्माने की राशि कम करने की अपील की लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे ठुकरा दिया।

ताज ट्रैपेजियम जोन में हुई पेड़ों की अवैध कटाई

सुप्रीम कोर्ट ने उत्‍तर प्रदेश स्थित ताज ट्रैपेजियम जोन में अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई के मामले में सख्‍त रुख अख्तियार करते हुए एक बिजनेसमैन पर हर पेड़ के बदले एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। इस व्‍यापारी पर कुल 454 पेड़ काटने का आरोप है। इस हिसाब से उसे 4 करोड़ 54 लाख रुपये की कुल रकम बतौर जुर्माना देनी होगी। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि यह अपराध तो किसी की हत्‍या से भी ज्‍यादा जघन्‍य है। ऐसे लोगों के साथ कोई दया भावना नहीं बरती जा सकती, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।

हरित क्षेत्र को फिर से बनाने में लगेंगे 100 साल

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा, “बिना अनुमति के 454 पेड़ काटना निंदनीय है। इस हरित क्षेत्र को फिर से बनाने में कम से कम 100 साल लगेंगे। यह 2015 से लागू कोर्ट के प्रतिबंध का खुला उल्लंघन है।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटा जाएगा।

एक ही रात में काट दिए सारे पेड़

केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 18 सितंबर की रात को वृंदावन चटीकारा रोड पर डालमिया फार्म नामक निजी जमीन पर 422 पेड़ और उससे सटी सड़क किनारे संरक्षित वन क्षेत्र में 32 पेड़ अवैध रूप से काटे गए। कोर्ट ने इस रिपोर्ट को चौंकाने वाला और न्यायालय के आदेश का खुला उल्लंघन करार दिया।

कंपनी की दया की गुहार खारिज

कंपनी के मालिक शिव शंकर अग्रवाल ने कोर्ट में दलील दी कि जुर्माने की राशि कम किया जाए। कहा गया कि मैं गलती को स्वीकारता हूं और माफी मांगता हूं। उसी जमीन पर नहीं, बल्कि पास के क्षेत्र में पौधरोपण की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने जुर्माना कम करने से इनकार कर दिया, हालाँकि पास के क्षेत्र में पौधरोपण की अनुमति दे दी।

CEC ने की यह सिफारिश

पेश मामले में कोर्ट ने CEC की सिफारिशों को स्वीकार किया, जिसमें प्रत्येक पेड़ के लिए 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाने की बात कही गई थी। समिति ने सुझाव दिया कि वन विभाग को यूपी प्रोटेक्शन ऑफ ट्रीज एक्ट, 1976 के तहत जुर्माना वसूलना चाहिए और संरक्षित वन में काटे गए 32 पेड़ों के लिए इंडियन फॉरेस्ट एक्ट, 1972 के तहत कार्रवाई करनी चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण में कोई ढील नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने अग्रवाल के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी शुरू की और सीईसी से उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए सुझाव मांगे। कोर्ट ने कहा कि यह मामला कानून और पर्यावरण की अवहेलना का स्पष्ट उदाहरण है। कोर्ट में सहायक के रूप में नियुक्त वरिष्ठ वकील एडीएन राव ने सुझाव दिया कि अपराधियों को सख्त संदेश देना जरूरी है। न तो कानून और न ही पेड़ों को हल्के में लिया जा सकता है। बेंच ने इस सुझाव को स्वीकार करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण में कोई ढील नहीं बरती जाएगी।

शीर्ष अदालत ने अपने 2019 के उस आदेश को भी वापस ले लिया जिसमें ‘ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन’ के भीतर गैर-वन और निजी भूमि पर पेड़ों को काटने के लिए अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता को हटा दिया गया था।