नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा पर विपक्ष ने खूब हंगामा किया था और इसी हंगामे के बीच ‘डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2023’ संसद के दोनों सदनों से पास हो गया। सरकार का कहना है कि इस बिल को लाने का उद्देश्य लोगों की डिजिटल प्राइवेसी को सुरक्षित रखना है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 3 अगस्त 2023 को डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 लोकसभा में प्रस्तावित किया था।

बता दें कि बिल पर चर्चा के बाद इसे 7 अगस्त को लोकसभा और 9 अगस्त को राज्यसभा में पारित कर दिया गया। 12 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस बिल को मंजूरी दे दी और अब यह कानून बन चुका है। हालांकि, इस कानून के नियमों को बनाने की प्रक्रिया अभी जारी है।

क्यों पड़ी इसकी जरूरत?

दरअसल, 24 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार बताया था। पीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद से ही डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पर काम शुरू हुआ था। साल 2018 में डेटा प्रोटेक्शन को लेकर जस्टिस बीएन कृष्णा समिति ने डेटा संरक्षण बिल, 2018 का एक ड्राफ्ट तैयार किया और इसकी रिपोर्ट तत्कालीन आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद को सौंप दी।

इस रिपोर्ट में भारत में डेटा सुरक्षा कानून को मजबूत करने और लोगों को निजता संबंधी अधिकार देने पर जोर दिया गया। इस बिल को साल 2019 में संसद में पेश किया गया।

डेटा संरक्षण बिल को लेकर क्या है चिंताएं

डेटा संरक्षण बिल, 2018 में सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून संबंधी प्रस्तावित संशोधनों को लेकर कुछ चिंताएं जाहिर की गईं और कहा गया कि संशोधन द्वारा आरटीआई कानून के प्रावधानों को कमजोर बनाया जा रहा है, जिसके बाद सरकार से जानकारी हासिल करना और कठिन हो जाएगा।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने भी आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को चिठ्ठी लिख डेटा प्रोटेक्शन कानून की धारा 44(3) पर फिर से विचार करने और उसे समाप्त करने को कहा है। कांग्रेस का कहना है कि ये सेक्शन आरटीआई कानून को नुकसान पहुंचाती है। इससे जनप्रतिनिधियों ही की तरह जनता को हासिल सूचना का अधिकार छिन जाता है।

कानून की धारा 44(3) संशोधन जनहित से जुड़े मुद्दों पर भी जानकारी हासिल करने और उसे जमा कर पब्लिश करने पर रोक लगाती है। आरटीआई को कमजोर करने का दावा केवल कांग्रेस ही ने नहीं, बल्कि वकीलों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के लोगों ने भी किया है।

आखिर सरकार DPDP के जरिए RTI को कैसे कमज़ोर कर रही है?

लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से संसद में RTI कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं, पत्रकारों और विशेषज्ञों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने नए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (New Digital Personal Data Protection Act) द्वारा आरटीआई अधिनियम (RTI Act ) में लाए गए परिवर्तनों पर चर्चा की, जिससे लोगों की सूचना तक पहुंचने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। आरटीआई को लेकर काम करने वालों का कहना है कि इसके लिए आरटीआई में संशोधन कर दिया गया है। जिसके बाद सूचना लेना मुश्किल हो जाएगा। यह बदलाव पत्रकारों के लिए खतरनाक होगा।

विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध?

इस अधिनियम का सबसे ज्यादा विरोध कांग्रेस और टीएमसी ने किया है। इनमें प्रमुख रूप से कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई, मनीष तिवारी, शशि थरूर के अलावा अधीर रंजन चौधरी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सांसद सुप्रिया सुले, तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय और आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन सहित कई विपक्षी नेता शामिल थे।
विपक्ष अपने विरोध के पीछे दो बड़े तर्क दे रहा है-
1- ये बिल आरटीआई कानून को कमजोर करेगा, और
2- डेटा संरक्षण बोर्ड के जरिए केंद्र सरकार के पास सारी ताकत होगी।

निजता के अधिकार को कुचलने जा रही है सरकार – चौधरी

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, “इस बिल के जरिए सरकार ‘सूचना का अधिकार’ कानून और ‘निजता के अधिकार’ को कुचलने जा रही है। इसलिए हम इस सरकार की ओर से प्रदर्शित किए जा रहे, इस तरह के इरादे का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।” चौधरी ने आगे कहा कि इस बिल को स्थायी समिति या किसी अन्य मंच पर चर्चा के लिए भेजा जाना चाहिए।

‘व्यक्तिगत जानकारी के खुलासे पर लगाता है प्रतिबंध’

डेटा प्रोटेक्शन बिल का ये संशोधन व्यक्तिगत जानकारी के खुलासे पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाता है। ये संशोधन पत्रकारों को भी सार्वजनिक हित से जुड़ी जानकारी तक पहुंचने और उसे इकठ्ठा करने से रोकता है। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि इस संशोधन से देश में पारदर्शिता को लेकर छेड़े गए आंदोलन को काफी नुकसान पहुंचेगा। 2005 का आरटीआई कानून लाखों भारतीयों के लिए सार्वजनिक संस्थानों, खासकर सरकारों से जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए काफी अहम साबित हुआ था।

ऐसा किया तो लग सकता है 500 करोड़ का जुर्माना…

एक्टिविस्ट्स का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार कहीं भी किसी से भी सवाल पूछने वाले खोजी पत्रकारों का मुंह बंद करने के लिए सरकार डेटा प्रोटेक्शन एक्ट लाई है। अगर आप सरकार के भ्रष्टाचार की नीतियों को उजागर करते हैं कहीं से जानकारी हासिल करते हैं तो आपके ऊपर 500 करोड़ रुपये तक का जुर्माना होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि नए संशोधन के लागू होने से एक पत्रकार जो भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारियों तक पहुंचता है, वह भी संबंधित अधिकारियों का नाम नहीं छाप सकेगा, अगर वह संबंधित से बिना अनुमति लिए ऐसा करता है तो उस पर 500 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।

सरकार की दलीलें ये हैं

बता दें कि 30 से ज़्यादा सिविल सोसाइटी ने भी इस बारे में चिंता जताई है। ऐसा नहीं है कि इस पर केंद्र सरकार का अपना पक्ष नहीं है। अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि निजता के अधिकार वाले सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले ने वैसे भी आरटीआई की धारा 8(1)(j) निर्रथक हो गई थी।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट में है क्या?

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 डिजिटल पर्सनल डेटा और लोगों की प्राइवेसी के संरक्षण का प्रावधान दिया गया है। अगर आप फोन इस्तेमाल करते हैं तो आपकी निजता पर हर वक्त खतरा मंडरा रहा होता है। जब आप मोबाइल में कोई ऐप इस्तेमाल करते हैं तो वह आपसे कुछ परमिशन मांगता है, जैसे- कैमरा, GPS, माइक्रोफोन, गैलरी आदि। और जब आप उस ऐप को ये एक्सेस दे देते हैं तो वो आपकी जानकारी अपने सर्वर में सुरक्षित रख लेता है, लेकिन वह ऐप आपकी जानकारी को कहां-कहां इस्तेमाल करता है या करेगा, इस पर शायद कभी ध्यान नहीं देते।

हो सकता है वो ऐप आपकी जानकारी का गलत इस्तेमाल करे या फिर किसी थर्ड पार्टी को बेच दे, जो उसका गलत इस्तेमाल करे। इस कानून के आने के बाद अगर कोई ऐप आपके डेटा का गलत इस्तेमाल करती है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। इस बिल में ऐप पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट की खासियत

इस कानून की विशेषताएं जानने से पहले दो चीजों- पर्सनल डेटा और इस डेटा की प्रोसेसिंग के बारे में जानना जरूरी है। पर्सनल डेटा किसी व्यक्ति का वह डेटा होता है, जिससे वह व्यक्ति पहचाना जाता है। वहीं, इस डेटा को कलेक्ट, स्टोर, इस्तेमाल या शेयर करने की जो प्रक्रिया होती है उसे प्रोसेसिंग कहते हैं।

किन परिस्थितियों में लागू होगा यह कानून?

1- यह कानून भारत के अंदर डिजिटल पर्सनल डेटा की प्रोसेसिंग पर तब लागू होता है, जब यह डेटा या तो ऑनलाइन जमा किया जाता है या फिर ऑफलाइन जमा किया जाता है। इसके बाद उसे डिजिटलाइज कर दिया जाता है।

2- यह कानून भारत के बाहर पर्सनल डेटा प्रोसेसिंग पर उस स्थिति में लागू होगा, जब यह प्रोसेसिंग भारत में वस्तुओं और सेवाओं को ऑफर करने के लिए की जाती है।

सजा का प्रावधान

कानून का उल्लंघन करते पाए जाने पर जुर्माने का प्रावधान भी है। बच्चों से संबंधित दायित्वों को पूरा न करने पर 200 करोड़ रुपये और डेटा ब्रीच को रोकने के लिए सुरक्षात्मक उपाय न करने पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।