रायपुर। प्रदेश में कल से राज्य सरकार धान नीलामी करने जा रही है, छत्तीसगढ़ विधानसभा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने इस मुद्दे पर कहा है कि, खरीफ विपणन वर्ष 2024-25 में समर्थन मूल्य पर कुल 149 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गयी है। भारत सरकार के द्वारा केन्द्रीय पूल में इस पूरे धान का चावल नहीं लिये जाने के कारण 35 लाख मेट्रिक टन धान का विक्रय नीलामी के माध्यम से राज्य सरकार के द्वारा किया जा रहा है। इस नीलामी से लगभग 7 हजार करोड़ रूपये की क्षति राज्य सरकार को होने की संभावना है।

केंद्र ने पंजाब का पूरा चावल लिया, मगर..

नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि, समर्थन मूल्य पर धान की किसानों से खरीदी करने की योजना भारत सरकार की योजना है और राज्य सरकार के द्वारा केन्द्र की एजेंसी के रूप में धान उपार्जन का कार्य किया जाता है। इसलिए केन्द्र सरकार को चाहिए सम्पूर्ण सरप्लस धान का चावल केन्द्रीय पूल में ले। डॉ महंत ने बताया कि पंजाब में इसी सीजन में कुल 172 लाख मेट्रिक टन धान की खरीदी हुई है और इस सम्पूर्ण धान का चावल केन्द्रीय पूल में लिया जा रहा है। पंजाब में तो भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार भी नहीं है जबकि छ.ग. मे डबल इंजन सरकार होने के बाद भी हमारा पूरा सरप्लस चावल केन्द्रीय पूल में नहीं लिया जाना और 7 हजार करोड़ रूपये की क्षति का अनावश्यक आर्थिक भार राज्य के खजाने पर डालना अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है।

नीलामी में बोली लगाने की तैयारी में कारोबारी

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने धान की खरीदी 3100 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से की है। इनमे अन्य खर्चों को जोड़ लिया जाये तो प्रति क्विंटल धान की लागत लगभग 3600 रूपये आती है। सरकार ने मार्कफेड के जरिये बचे हुए 35 लाख मीट्रिक टन चावल की ऑनलाइन नीलामी कराने जा रही है। पता चला है कि दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा सहित कई राज्यों के कारोबारी छत्तीसगढ़ सरकार के बचे हुए धान की क्वालिटी को देखने के लिए पहुंच रहे हैं। इसके बाद वे धान के लिए अपनी बोली लगाएंगे।

उम्मीद से भी कम कीमत पर बोली लगने की संभावना

जानकर बताते हैं कि पिछले अनुभवों और बाजार की हालत को देखते हुए ऐसा नहीं लगता की धान की बोली 2000 हजार रूपये प्रति क्विंटल से ज्यादा लगेगी। वैसे भी कारोबारी चाहेगा कि उसे कम से कम दर पर माल मिले। ऐसे में सरकार क्या दर तय करती है कल के बाद पता चलेगा। मगर यह तय है कि नीलामी से धान की बिक्री के सिस्टम से सरकार को हजारों करोड़ का नुकसान होगा।