रायपुर/हैदराबाद : देश के दो प्रमुख नक्सल प्रभावित राज्यों – छत्तीसगढ़ और तेलंगाना – में गुरुवार का दिन सुरक्षा बलों के लिए बड़ी उपलब्धियों से भरा रहा। एक ओर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में सात लाख रुपये के इनामी नक्सली दंपति ने हथियार डालकर समाज की मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया, वहीं दूसरी ओर तेलंगाना में प्रतिबंधित माओवादी संगठन के 14 सदस्यों ने आत्मसमर्पण किया।

कबीरधाम में आत्मसमर्पण ने दी नई उम्मीद
राजनांदगांव रेंज के कबीरधाम जिले में सक्रिय नक्सली दंपति रमेश उर्फ आटम गुड्डू और सविता उर्फ लच्छी पोयम ने गुरुवार को पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। दोनों पिछले आठ वर्षों से एमएमसी जोन और टांडा एरिया कमेटी के तहत सक्रिय थे। रमेश एक समय प्लाटून नंबर 1 का हिस्सा था और सविता एरिया कमेटी में प्रमुख भूमिका निभा रही थी।
आत्मसमर्पण का कारण संगठन के भीतर का आंतरिक संघर्ष, आदिवासियों पर अत्याचार और जंगलों में बेहद कठिन जीवन बताया गया है। दोनों के पास पहले घातक हथियार थे – रमेश के पास 12 बोर बंदूक और सविता के पास 8 एमएम रायफल हुआ करती थी।
राजनांदगांव रेंज के आईजी अभिषेक शांडिल्य ने इसे नक्सल उन्मूलन अभियान की बड़ी सफलता बताया और सरकार की पुनर्वास नीति की सराहना की। दोनों को मुख्यमंत्री आत्मसमर्पण नीति के तहत तत्काल 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की गई। अब तक कबीरधाम जिले में 11 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जिनमें 10 इनामी हैं।
तेलंगाना में 14 माओवादियों ने छोड़ा हथियार
इधर तेलंगाना के वारंगल में भी नक्सल संगठन को करारा झटका लगा। मल्टी ज़ोन-1 के पुलिस महानिरीक्षक एस. चंद्रशेखर रेड्डी के समक्ष प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के 14 सदस्यों ने आत्मसमर्पण किया। आत्मसमर्पण करने वालों में दो एरिया कमेटी सदस्य (ACM) भी शामिल हैं।
पुलिस के अनुसार, ‘ऑपरेशन चयुथा’ के तहत चल रहे आत्मसमर्पण अभियान और आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए जारी विकास योजनाओं की जानकारी मिलने के बाद, ये माओवादी हिंसा का रास्ता छोड़ने को प्रेरित हुए। चौंकाने वाली बात यह रही कि इनमें से अधिकांश नक्सली छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं, जो तेलंगाना में सक्रिय थे।
नक्सल संगठन पर दोहरा झटका
दोनों राज्यों में हुई ये आत्मसमर्पण घटनाएं नक्सली संगठन के लिए बड़ा झटका हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार की पुनर्वास नीतियां और सुरक्षा बलों का दबाव धीरे-धीरे असर दिखा रहा है। वहीं यह भी सामने आया कि हथियारों के दम पर सत्ता स्थापित करने का सपना अब संगठन के भीतर भी टूट रहा है।