टीआरपी डेस्क। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के चलते बीजेपी ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को कुछ समय के लिए टाल दिया था। लेकिन अब ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के साथ सीजफायर के बाद यह कवायद फिर से शुरू हो गई है। पार्टी जल्द ही जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी के नाम का ऐलान कर सकती है।

किसके नाम पर मुहर?
सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान इस दौड़ में सबसे आगे हैं। दोनों ही अनुभवी और प्रभावशाली ओबीसी नेता हैं, जो न सिर्फ पार्टी संगठन को मजबूती देंगे, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों में जातीय समीकरणों को भी साधने में मदद कर सकते हैं।
यूपी-बिहार में बन सकता है बड़ा समीकरण
मोदी सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना के फैसले के बाद अगर बीजेपी किसी ओबीसी चेहरे को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाती है, तो इसका सीधा लाभ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मिल सकता है। इन दोनों राज्यों में यादव वोटबैंक अब तक समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का मजबूत आधार रहा है। ऐसे में धर्मेन्द्र प्रधान या भूपेंद्र यादव जैसे नेताओं को कमान सौंपना, एक बड़ा रणनीतिक कदम माना जा रहा है।
कब होगा ऐलान?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया नागपुर यात्रा के बाद पार्टी के संगठनात्मक चुनावों में तेजी आई थी, लेकिन 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद सारी गतिविधियां रोक दी गईं। अब जब हालात सामान्य हो रहे हैं, तो खबर है कि मई के अंत तक नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम का ऐलान संभव है। चूंकि अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं, ऐसे में नए अध्यक्ष को तैयारियों के लिए करीब 100 दिन का समय मिलेगा।
अनुभवी जोड़ी फिर एक साथ?
पार्टी सूत्रों का मानना है कि भूपेंद्र यादव और धर्मेन्द्र प्रधान की जोड़ी पहले भी कई राज्यों में बतौर प्रभारी बेहतरीन प्रदर्शन कर चुकी है। हालांकि अनुभव के लिहाज से धर्मेंद्र प्रधान की दावेदारी ज्यादा मजबूत मानी जा रही है। शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने संगठन और सरकार दोनों में संतुलन का अच्छा उदाहरण पेश किया है।
हालांकि, सूत्रों का यह भी कहना है कि भूपेंद्र यादव को प्राथमिकता दी जा सकती है। दरअसल पार्टी इस बार हिंदी पट्टी के सामाजिक समीकरणों को प्राथमिकता देना चाहती है। ऐसा होता है तो प्रधान को भविष्य में संगठन या सरकार में कोई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।
दरअसल बिहार में 2025 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली भाजपा इस बार अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने और सरकार में अपनी स्थिति को और मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। भूपेंद्र यादव को अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला इस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। यादव ने बिहार में पहले भी संगठनात्मक स्तर पर काम किया है और वहां के सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों से अच्छी तरह वाकिफ हैं।