बिलासपुर। पिछड़े वर्ग की एक महिला ने आदिवासी बैगा के नाम पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे टीचर की नौकरी हथिया ली। उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति की रिपोर्ट और हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद शिक्षा विभाग के जॉइंट डायरेक्टर ने महिला टीचर को बर्खास्त करने का आदेश जारी किया है।
उर्मिला बैगा नामक यह महिला वर्तमान में बिल्हा ब्लॉक के गवर्नमेंट मीडिल स्कूल में पदस्थ थी। उसके ऊपर यह आरोप था कि उसने अनुसूचित जनजाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी हासिल की है। इस मामले की शिकायत पर रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की छानबीन समिति ने जांच की, जिसमें उनके पिता रतनलाल के दादा के अभिलेखों से पता चला कि उनकी जाति ‘ढीमर’ है, जो अन्य पिछड़ा वर्ग में आता है। जबकि उसने ‘बैगा’ जाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था।
स्टे लेकर 18 साल और कर ली नौकरी
यह मामला सन 2006 का है। तब जांच के बाद 11 दिसंबर 2006 को समिति ने उर्मिला बैगा के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया। साथ ही कहा कि उनकी नौकरी भी तत्काल प्रभाव से रद्द की जाए। इसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने 7 फरवरी 2007 को सेवा समाप्ति आदेश जारी किया।
DEO के आदेश को चुनौती देते हुए उर्मिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर 1 मार्च 2007 को स्टे मिल गया था। लेकिन बाद में मामले की सुनवाई के दौरान उसने याचिका वापस ली, जिसे हाइकोर्ट ने खारिज कर दिया। साथ ही पूर्व में दिए गए स्थगन आदेश को भी निरस्त कर दिया। उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट और कोर्ट के आदेश के आधार पर संयुक्त संचालक शिक्षा आरपी आदित्य ने उर्मिला बैगा को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है।
दर्जनों मामले कोर्ट में है लंबित
बता दें कि फर्जी जाति के ऐसे ही मामले बड़ी संख्या में आज भी हाई कोर्ट में लंबित हैं, और गलत तरीके से प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने वाले लोग आज भी बड़े ही मजे से शासकीय सेवा कर रहे हैं और मोटी तनख्वाह उठा रहे हैं। संबंधित विभाग के अफसर भी ऐसे लोगों को संरक्षण देते हैं और कोर्ट में लंबित ऐसे मामलों पर ध्यान नहीं देते। आलम यह है कि ऐसे कई लोग तो रिटायर भी हो चुके हैं। ऐसे लोगों के मामलों की जल्द सुनवाई करने की जरुरत है, ताकि इन्हें नौकरी से बाहर करने के बाद किसी दूसरे पात्र बेरोजगार नौकरी पर रखा जा सके।