0 अदालत ने की टिप्पणी – हत्या का प्रयास गंभीर जरूर है, पर जघन्य अपराध नहीं
बिलासपुर। कोरबा जिले के एक 17 साल के किशोर को हत्या के प्रयास (धारा 307) में वयस्क मानकर उम्रकैद की सजा दी गई थी। अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस फैसले को गलत करार देते हुए सजा को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि धारा 307 (हत्या का प्रयास) गंभीर अपराध तो है, लेकिन जघन्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि इसमें न्यूनतम 7 साल की सजा अनिवार्य नहीं है।
यह फैसला जस्टिस संजय के अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने दिया। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस संबंध में स्पष्ट कर चुका है कि किसी अपराध को जघन्य तभी माना जाएगा जब उसमें कम से कम 7 साल की सजा तय हो। चूंकि धारा 307 में ऐसा प्रावधान नहीं है, इसलिए यह जघन्य नहीं, गंभीर अपराध माना जाएगा।
आरोपी को वयस्क मानकर सुनाई थी उम्रकैद की सजा
दरअसल, किशोर पर हत्या की कोशिश का आरोप था और किशोर न्याय बोर्ड ने उम्र 16 से 18 साल के बीच मानकर प्रारंभिक मूल्यांकन के बाद केस बाल न्यायालय को भेज दिया था। वहां उसे वयस्क मानकर ट्रायल किया गया और 27 सितंबर 2017 को उम्रकैद और 2000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई।
हाई कोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी
किशोर ने हाईकोर्ट में अपील कर बताया कि उसे प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट की कॉपी तक नहीं दी गई, न ही अपनी बात रखने का मौका मिला। कोर्ट ने माना कि यह कानूनी प्रक्रिया की गंभीर चूक है।
हाईकोर्ट ने कहा कि जेजे एक्ट की धारा 21 के मुताबिक किसी भी किशोर को ऐसी सजा नहीं दी जा सकती, जिससे उसकी रिहाई की संभावना खत्म हो जाए। बाल न्यायालय ने यह गलती की है।