टीआरपी डेस्क। छत्तीसगढ़ में 15 साल का राजनीतिक वनवास काटने के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो पार्टी में मुख्यमंत्री चुनने को लेकर भारी विवाद की स्थिति पैदा हुई। हालांकि वर्चस्व की इस लड़ाई में भूपेश बघेल ने बाजी तो मारी लेकिन इस बीच एक और बड़ा नाम मुख्यमंत्री पद का दावेदार दिखा जो थे टी एस सिंहदेव।

एक लंबे आरसे बाद कांग्रेस ने सत्ता का स्वाद चखा था। इस वजह से एक बंद कमरे में ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला अपनाकर दो मुख्यमंत्री बानाए जाने पर चर्चा हुई। जिसमें पहले ढाई साल भूपेश बघेल मुखिया के रूप में राज्य संभालेंगे और बचे ढाई साल में टी एस सिंहदेव को राज्य की बागडोर सौंपी जाएगी। लेकिन इतिहास गवाह है सत्ता का स्वाद जिसने चखा है उसने कभी अपनी कुर्सी खुद नहीं छोड़ी है। छत्तीसगढ़ में ऐसा हुआ भी भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद पर तब तक काबिज रहे जब तक राज्य में सरकार नहीं बदली। तब से आज तक छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी खेमे में अंतरकलह की जो स्थिति पैदा हुई वो छत्तीसगढ़ की जनता से भी छुपी नहीं है। और उसका खामियाजा कांग्रेस आज तक छत्तीसगढ़ में भुगत रही है।

राज्य में सरकार गंवाने के बाद सचिन पायलेट को छत्तीसगढ़ कंग्रेस का प्रभारी बनाया गाया। इनके साथ ही चरणदास महंत को नेता प्रतिपक्ष और दीपक बैज को पीसीसी अध्यक्ष बनाया गया जो आज भी पार्टी के लिए अपनी-अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर रहे हैं।

इस बीच सोमवार को छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट दो दिवसीय दौरे पर रायपुर पहुंचे और राजीव भवन में मैराथन बैठकों का दौर शुरु हुआ। ऐसी खबरें सामने आईं कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बैठक में अनुशासनहीनता और राज्य सरकार के विरोध में पार्टी के बड़े नेताओं की निष्क्रियता को लेकर नाराज दिखे। इतना ही नहीं ऐसी भी खबरें आईं कि भूपेश बघेल ने किसी नेता का नाम बिना लिए ही अपनी नाराजगी व्यक्त की बावजूद इसके सचिन पायलेट के सामने ही चरणदास महंत और भूपेश बघेल के बीच तू-तू मैं-मैं हो गई।

देखा जा सकता है मुख्यमंत्री बनने और खासकर सरकार गंवाने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस में ही भूपेश बघेल के विरोधियों फेहरिस्त लंबी होती चली जा रही है जिनमें से ये कुछ बड़े नाम हैं…

टी एस सिंहदेव (पूर्व डिप्टी सीएम)

टी एस सिंहदेव और भूपेश बघेल के बीच के विवाद को छत्तीसगढ़ कांग्रेस में उपजे अंतरकलह का आगाज़ भी कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए शुरू हुई लड़ाई राज्य में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तब से इस विवाद ने भी जन्म लिया। चुनाव के आते तक इस विरोध के स्वर छत्तीसगढ़ से दिल्ली तक जा पहुंचे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भूपेश बघेल का सबसे बड़ा विरोधी अगर कोई है तो वो टी एस सिंहदेव ही हैं। क्योंकि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने और फिर अगले चुनाव में आपसी विवाद के चलते कांग्रेस की बड़ी हार का श्रेय इन्हीं दो दिग्गजों को जाता है।

चरणदास महंत (नेता प्रतिपक्ष छ.ग विधानसभा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष छ.ग)

पूर्व में भूपेश बघेल और चरणदास महंत के रिश्ते बड़े सुगम रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस के शासनकाल में चरणदास महंत को विधानसभा आध्यक्ष बनाने का निर्णय भी भूपेश बघेल का ही था। लेकिन 2023 में राज्य में भाजपा के शासन आने के बाद कांग्रेस ने चरणदास महंत को नेता प्रतिपक्ष चुना। और इस बात की खीझ डेढ़ साल से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद पीएसी की बैठक में सामने आई। जब भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट के सामने नाराजगी जताते हुए ये कहा कि चरणदास महंत नेता प्रतिपक्ष रहते हुए मुख्यमंत्री के किसी भी निर्णय का कोई विरोध नहीं कर रहे हैं। इस बात पर सचिन पायलट के सामने ही दोनों में जमकर कहा सुनी भी हुई।

दीपक बैज (पीसीसी चीफ, छत्तीसगढ़)

कभी भूपेश बघेल के बेहद करीब रहे दीपक बैज से आज भूपेश की दूरियां साफ नज़र आने लगी हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने के बावजूद भूपेश बघेल के निर्णय पर ही दीपक बैज को पीसीसी चीफ बनाया गया था। मगर सोमवार को हुई पीएसी की बैठक में दीपक बैज के प्रति भूपेश के अलग ही तेवर देखने को मिले। भूपेश ने दीपक बैज का नाम लिए बिना ही सभा में यह कह दिया कि राज्य में पार्टी के सभी बड़े नेता निष्क्रीय हैं और अपनी जवाबदारी ठीक तरह से नहीं निभा रहे हैं। हलांकि इस बात पर दीपक बैज की ओर से कोई विरोध देखने को नहीं मिला।

देवेंद्र यादव (विधायक, भिलाई)

कांग्रेस के शासन काल में देवेंद्र यादव और भूपेश बघेल के बीच की नज़दीकियों से सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। ऐसा कहना गलत नहीं होगा की कांग्रेस की सत्ता के दौरान देवेंद्र यादव का औहदा किसी मंत्री से कम नहीं था। लेकिन बलौदाबाजार हिंसा भड़काने के मामले में देवेंद्र यादव की गिरफ्तारी के बाद उनके करीबियों का कहना है कि दोनों के बीच अब दूरियां नजर आने लगी हैं। हालांकि कोई यह स्पष्ट नहीं कर पा रहा की दोनों के बीच आने वाली दूरीयों की प्रमुख वजह क्या है।

अब देखना यह है कि इतने अंतरकलह के बीच क्या कांग्रेस खुद को दोबारा सत्ता के लायक सिद्ध कर जनता का भरोसा फिरसे जीत पाएगी? यदि विपक्ष जनता का भरोसा जीतने में सफल रही भी तो क्या फिर से अकेले भूपेश ही कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे या फिर कांग्रेसी खेमे की अंतरकलह छत्तीसगढ़ कांग्रेस को फिर से ले डूबेगी।